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Updated: 11 दिसम्बर, 2020 08:54 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
  @masahid.abbas
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भारत में हिंदू और मुसलमान (Hindu-Muslim in India) दोनों समाज के लोग हज़ारों साल से साथ में रहते चले आए हैं. लेकिन दोनों ही समुदाय के लोग अभी तक एक दूसरे को न तो समझ सके हैं और न ही समझना चाहते हैं. भारत में हिंदू मुस्लिम एकता (Hindu Muslim Unity) के खूब नारे भी लगते हैं और खूब कोशिशें भी होती हैं. लेकिन नतीजा वही जस का तस रहता है. आप जो माहौल आज देख रहे हैं वह कोई नया माहौल बनकर तैयार नहीं हुआ है बल्कि भारत में हिंदू और मुस्लिम दोनों समाजों के बीच खाई बहुत पहले से है. हिंदू मुस्लिम की एकता का नारा भी कोई आज का नारा नहीं है बल्कि ये तो मुगलों से भी पहले का नारा है. मुगल के बादशाह अकबर हों या मराठा हिंदू सम्राट शिवाजी, दोनों ही राजाओं ने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए बड़ी कोशिशें की थी. दोनों ने ही अपने अपने कार्यकाल में विश्वसनीय पदों पर दोनों ही समुदाय के लोगों को जगह दी ताकि हिंदू मुस्लिम एक साथ नज़र आएं. इनकी यह कोशिश रंग भी लायी और एक दौर ऐसा भी आ गया जब भारत में सिर्फ हिंदू मुस्लिम ही नहीं बल्कि अन्य धर्म के लोग भी एक दूसरे धर्म के लोगों के साथ उठने बैठने लगे और एक दूसरे के त्यौहारों में भी शरीक़ होने लगे. फिर भारत में आगमन हुआ अंग्रेजों का, अंग्रेजों ने सबसे पहले भारत की इसी एकता में फूट डाली. हिंदू को मुसलमान और मुसलमान को हिंदू से लड़वा दिया और एक दूरी पैदा कर दी.

India, Hindu, Muslim, Communal Harmony, Communal, Communal Politics, Hateये अपने में दुखद है कि हिंदू -मुस्लिम के बीच की दूरियां लगातार बढ़ती जा रही हैं

वह लोग इतने पर भी नहीं रुके, हिंदू मुसलमान को अलग-थलग करने के बाद हिंदू समाज में ब्राहमण-दलित और मुस्लिम समाज में शिया-सुन्नी का मतभेद भी पैदा कर दिया, भारतीय नागरिक हमेशा से ही धार्मिक रहे हैं जिसका फायदा अंग्रेज सरकार के अधिकारियों ने खूब उठाया. वर्ष 1857 में भारत की आजादी के लिए पहला युद्ध हुआ जिसे भारतीय विद्रोह कहा जाता है. उस लड़ाई की सबसे ख़ास बात ये रही कि हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय के लोग सिर्फ भारतीय बन गए थे, इसी एकता ने अंग्रेजो के माथे पर पसीना लाकर रख दिया था.

यह एकता आजादी के वक्त तक तो कुछ बनी रही, लेकिन भारत की आजादी वाले दिन ही भारत का एक टुकड़ा पाकिस्तान में तब्दील हो गया. ये एक नया घाव था जिसका असर अब भी मौजूद है. ये एक बहुत बड़ी वजह है भारत में हिंदू और मुस्लिम के बीच बढ़ती नफरतों की. भारत में दोनों ही समुदाय एक साथ तो रहते हैं मगर एक दूसरे के धर्म के बारे में सिवाय झूठ के और कुछ नहीं जानते हैं.

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने कहा था कि भारत के दोनों ही समाज के लोग एक दूसरे के लिए रहस्य बने हुए है. कोई भी दूसरे के धर्म के बारे में न तो कुछ जानता है और न ही जानना चाहता है. बल्कि इसके उलट दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ मनगढंत बातें किया करते हैं और उसी पर लड़-भिड़ जाने को तैयार रहते हैं. हिंदू मुसलमान को बुरा समझता है और मुसलमान हिंदू को बुरा समझता है. दोनों ही समुदायों में एक बहुत बड़ी फौज ऐसी भी है जो एक दूसरे के हाथों का खाना या पानी तक नहीं पीना पसंद करता हैं.

हिंदू कहता है मुसलमान पत्थर दिल का होता है, बेरहम होता है, जानवरों का और बेगुनाहों का खून बहाता है, औरतों को कैद करके रखता है, उसके पास दिल नहीं होता है न ही वह विश्वास के लायक़ होता है.वहीं मुसलमान हिंदू के खिलाफ ये धारणा रखता है कि ये हर किसी को भगवान मानते हैं, पत्थर से लेकर जानवर तक को पूजते हैं, जाति के आधार पर छोटी जातियों को पैर के जूतियों की नोक पर रखते हैं.

ऐसी हज़ारों धारणाएं एक दूसरे के खिलाफ रखते हैं जिसका कोई तात्पर्य ही नहीं है. लेकिन कहा क्या जाए इनकी मानसिकता दिवालियापन को, आखिर ये खाई कैसे बनी हुई है. धर्म लोगों को जोड़ने का काम करता है तो यहां लोग टूटे हुए कैसे हैं. दोनों की ही धार्मिक पुस्तक को अगर पढ़ा जाए तो अहिंसा की शिक्षा दोनों ही किताबों में दी गई है फिर हम हिंसात्मक कैसे हो जाते हैं. भारत में हिंदू 80 प्रतिशत और मुसलमान 15 प्रतिशत हैं, फिर भी हमेशा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच मतभेद और नफरत बढ़ता ही रहता है.

किसी को भी इतनी फुरसत नहीं है कि वह अगले इंसान के धर्म के बारे में जानने की कोशिश करे. बस हवाहवाई बातों पर ही यकीन कर लिया जाता है जो सिर्फ और सिर्फ नफरत को बढ़ावा देता है. जो लोग एक दूसरे के धर्म के बारे में जानते हैं वह लोग एक दूसरे के धर्म की इज्ज़त किया करते हैं. आज हिंदू मुस्लिम एकता के नारे भी लगने बंद हो गए हैं ये एक बहुत चिंताजनक स्थिति है जो आने वाले दिनों में और ख़तरनाक होती जाएगी.

धर्म कोई भी बुरा नहीं होता है बल्कि उस धर्म की चादर ओढ़कर कुछ लोग धार्मिक बंटवारा करते हुए नज़र आते हैं. हिंदू मुस्लिम के बीच बढ़ती नफरत का पैमाना क्या है और इसपर लगाम कब लगेगी इसका तो अभी दूर दूर तक कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. हिंदू मुस्लिम एकता की बात करने वाले भी अब दूर दूर तक दिखाई नहीं देते हैं जबकि कभी हिंदू मुस्लिम भाई भाई का नारा गूंजा करता था. सवाल ये नहीं है कि इस नफरत का अंत क्या होगा बल्कि सवाल यह है कि आखिर ये नफरत बढ़ती क्यों चली जा रही है.

आज दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे के सामने होते हैं तो बाहों में बाहें डालकर घूमते हैं और अलग होने पर ही एक दूसरे के धार्मिक बातों पर एक दूसरे को निशाने पर लेते हैं. ये एक बहुत बड़ा मुद्दा है जो देश को समय समय पर चोंट भी देता है, आपने दोनों समुदायों के बीच दंगे भी देखे हैं, दंगे के समय कोई बाहरी इंसान आपके घर में आग नहीं लगाता है बल्कि आपके क्षेत्र के लोग ही उस दंगे का हिस्सा होते हैं और ऐसा दोनों ही तरफ से होता है.

हाल ही में दिल्ली दंगो के दौरान मैंने खुद महसूस किया कि इंसान कितना बेरहम और क्रूर हो जाता है और कितनी नफरत रखता है एक दूसरे के प्रति, नालों से हफ्तों तक लाशें निकलती रही वह लाश भारतीयों की थी, इंसानों की थी. लेकिन धार्मिक नफरतें हमको कितना ज़ालिम बना देती है कि हम किसी का घर तक बर्बाद कर देते हैं मगर हमारे चेहरों पर कोई पछतावा नहीं होता है. क्या ये आपसी नफरत आपसी लड़ाईयों को खत्म नहीं किया जा सकता है.

क्या सभी धर्म के लोग एक होकर सिर्फ भारतीय होकर नहीं रह सकते हैं. ज़रा सोचिए अगर सभी के बीच एक मोहब्बत होगी तो वह हिंदुस्तान कितना खूबसूरत होगा. हम तरक्की की सीढ़ीयां चढ़ने लग जाएंगें, नजाने हमारे कितने विवाद खुद-बखुद खत्म हो जाएंगें. एकता सब चाहते हैं मगर कोशिशें कुछ ही करते हैं. इस नफरत भरे तूफानी माहौल में मोहब्बत का चिराग जलाने वालों का इंतज़ार है.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास @masahid.abbas

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

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