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Updated: 06 अगस्त, 2017 01:40 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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जिंदगी की दौड़ में कोई भी आगे-पीछे नहीं होता, हमारी प्रतियोगिता ग़र है भी, तो अपने-आप से ही है. हमें स्वयं को ही कल से बेहतर सिद्ध करना होता है. कटु अनुभवों से सीख लेकर और सुनहरी स्मृतियों को अपनी मुस्कान बनाकर आगे बढ़ना होता है. हैरानगी की कोई बात नहीं कि इस यात्रा के हर बढ़ते कदम के साथ, साथी कम होने लगते हैं. अंत तक वही साथ देते हैं जो वाकई आपके आगे बढ़ते रहने से प्रसन्न हैं, जिनकी शुभकामनाएं हर पल आपके साथ चलती हैं और जो आपके दर्द में आपका हाथ थाम जीना आसान कर देते हैं. यही सच्ची मित्रता है. यदि आपके पास ऐसे एक-दो भी मित्र हैं तो जीवन सफल समझिये. उनसे क्या गिला, जिन्हें आपकी उपस्थिति-अनुपस्थिति से कोई फर्क ही नहीं पड़ता!

आभासी दुनिया हो या वास्तविक, लोगों की मानसिकता एक-सी ही होती है. अंतर सिर्फ इतना है कि यहां दिखाई पहले दे जाती है. अच्छे और बुरे लोग हर जगह हैं. सोशल मीडिया पर जो हैं वो भी इसी ग्रह के ही हैं. यह तो खुशी की बात है कि यहां बहती ज्ञान गंगा में सबकी पहचान जल्द हो जाती है.

friendship day, friends

यूं भी सभी औपचारिकताओं और बंधनों से ऊपर होती है, मित्रता. इसमें कोई नियम-कानून नहीं चलते. हास-परिहास, लड़ाई-मारकाट, मस्ती सब जायज है पर जहां कटाक्ष ने प्रवेश किया, इसकी खूबसूरती अपना रंग खोना प्रारम्भ कर देती है.

मित्रता स्वार्थ से ऊपर उठकर बनाया गया रिश्ता है, जहां किसी का किसी पर कोई अहसान नहीं होता, कोई स्वार्थ नहीं...यदि आप मन-ही-मन अहसानों की सूची तैयार कर रहे हैं तो आप कोई भी रिश्ता रख सकते हैं पर एक सच्चे मित्र तो कतई नहीं हैं.

देखिए, आपकी सूची में कहीं ऐसे लोग तो सच्ची मित्रता का दावा नहीं ठोक रहे-

* जो आपकी खुशी में कभी खुश ही न हो सके.

* जो आपकी सफलता पर बधाई देने की बजाय आपसे ईर्ष्या करे और दूरी बना ले. लेकिन अपनी सफलता पर चाहे कि हर कोई आकर उसे बधाई दे.

* जो हर समय वक़्त का रोना रोए, लेकिन आपके अलावा सबके लिए समय निकाल सके. बेहतर हो, आप खुद ही वहां से निकल आएं क्योंकि आप उनकी प्राथमिकता सूची में कभी थे ही नहीं.

* जो आपके हर दुख को जानते, समझते हुए भी अनजान बनने का ढोंग करे और अपनी हर परेशानी में ये उम्मीद रखे कि आप दौड़े चले आएं. वो स्वार्थी और मतलबी इंसान है, इनकी दुनिया, इनके इर्द-गिर्द तक ही होती है.

* जो आपके हर रिश्ते को शक़ की नज़र से देखे, लेकिन यदि आप कोई सवाल करें तो आंखे तरेरकर आप ही पर आक्षेप लगाए.

* जो हर बात पर झूठ बोले और बहाने बनाए.

* जो आपके किसी आरोप का जवाब देने की बजाय, उल्टा आप पर ही आरोप जड़ दे.

* जो आपकी नाराजगी को भांपने के बाद भी अहंकार में भर, सॉरी कहने की बजाय कुछ ऐसी बात कह दे कि आप बात करने को बाध्य हो जाएं.

* जो आपके आंसुओं का मखौल बनाए और उस स्थिति में भी आपको अपमानित करने से बाज न आए.

* जो आपके साथ बदतमीजी और अभद्रता से पेश आए, लेकिन यदि आपने पलटकर कुछ कह दिया तो अपने दुखड़े रोने लगे.

* जिसे आपके अहसासों की कोई परवाह नहीं, लेकिन उसकी हर भावना की उसी वक़्त कद्र करने की उम्मीद रखे.

* जो आपके लिए नियम-क़ानून बनाए, पर खुद उसे कभी भी फॉलो न करे.

* वो हमेशा सही और आप सही होते हुए भी ग़लत. ये स्वयं को 'सर्वश्रेष्ठ' समझने के भ्रम में जीते हैं.

* जो अपने मूड के हिसाब से रिश्तों को जीने में विश्वास रखे और आपसे उससे उसी तरह पेश आने की उम्मीद रखे, भले ही आप उस समय कितनी भी तकलीफ में हों.

* वो आपको जान-बूझकर पीड़ा पहुंचाए.

वस्तुत: ऐसे लोगों को 'सेडिस्ट' कहा जाता है, ये वो लोग हैं जिन्हें 'दोस्त' या 'माशूक' नहीं, एक गुलाम की आवश्यकता होती है.

friendship day, friends

इश्क हो या मित्रता, दोतरफ़ा ही अच्छी लगती है

ऐसा भी क्या इश्क़ कि अगले को कद्र ही नहीं और आप दिन-रात उन्हीं के नाम की माला जप समय और जीवन का सत्यानाश करे जा रहे. जब प्रेम होता है तो विश्वास भी साथ चलता है और न सिर्फ़ आपकी, बल्कि आपकी भावनाओं की भी कद्र होती है. जो रिश्ते सुविधा और मूड के हिसाब से चलते हैं वे औपचारिकता भर ही हैं कि डोर टूटे भी न और छूटे भी न! तकलीफ तो बहुत होती है पर प्रकृति का नियम है.

मित्रता में यदि कोई सबकी हर बात की चिंता करे, सलाह दे, उनकी हर खुशी और गम में शरीक हो पर उसके सुख-दुःख से किसी को कभी कोई वास्ता ही न रहे तो एक दिन यह भी होता है कि ऐसे इंसान मित्र नहीं, धीरे-धीरे सबसे विमुख हो हमेशा के लिए दूर चले जाते हैं.

देखिए, कहीं आपका सबसे करीबी मित्र आपसे दूर जाने के कगार पर उदास न खड़ा हो. हाथ बढाकर रोकिये उसे....गले लगाइये. 'मित्रता-दिवस' पर स्वयं के लिए इससे बेहतर भला और क्या उपहार हो सकता है!

मित्रता-दिवस की अशेष शुभकामनाएं!

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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