प्लास्टिक की बोतल में मिनरल वॉटर साफ पानी के नाम पर छलावा है
रिपोर्ट के अनुसार 90% पानी की बोतलों में प्लास्टिक के छोटे कण होते हैं जो पानी में मिल जाते हैं. रिसर्चरों ने 259 अलग-अलग बोतलों को टेस्ट किया. इनमें 9 देशों के 11 ब्रांड्स की बोतलों को टेस्ट किया गया है.
-
Total Shares
'भईया नॉर्मल पानी क्यों रखा है. जग कितना गंदा है.. मिनरल वॉटर ले आओ.' अक्सर ऐसा कोई दृश्य होटलों में दिखाई देता है जहां कोई कस्टमर वेटर को नॉर्मल नहीं बल्कि मिनरल वॉटर लाने को कहता है. महंगा मिनरल वॉटर है तो बेस्ट है और उससे सेहत की कोई समस्या नहीं हो सकती है. लेकिन इस धारणा को गलत साबित किया है एक रिपोर्ट ने जो स्टेट यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क की तरफ से आई है. इस रिपोर्ट ने उन सभी दावों को गलत साबित कर दिया है जो ये कहते थे कि मिनरल वॉटर या बड़े ब्रांड का पानी साफ होता है और सेहत के लिए सही होता है.
क्या कहती है रिपोर्ट...
रिपोर्ट के अनुसार 90% पानी की बोतलों में प्लास्टिक के छोटे कण होते हैं जो पानी में मिल जाते हैं. रिसर्चरों ने 259 अलग-अलग बोतलों को टेस्ट किया. इनमें 9 देशों के 11 ब्रांड्स की बोतलों को टेस्ट किया गया है. ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया और अमेरिका से सैंपल लिए गए थे. भारत के 19 शहरों से सैंपल लिए गए थे जिसमें मुंबई, दिल्ली, चेन्नई शामिल थे.
कई टॉप ब्रांड्स जैसे एक्वाफिना, ईवियान यहां तक कि भारतीय ब्रांड बिस्लेरी भी टेस्ट किए गए.
बिस्लेरी का पानी इतना खतरनाक..
सैम्पल टेस्टिंग से पता चला कि बिस्लेरी की एक बोतल में 5000 से ज्यादा प्लास्टिक कण पाए गए हैं. ये प्रति लीटर का हाल है. ये बिस्लेरी सैम्पल चेन्नई से लिया गया था.
प्लास्टिक की बोतल में पानी बेचने वाली कंपनियां हमेशा ये कहती हैं कि इन्हें टेस्ट किया जाता है, लेकिन रिसर्च तो कुछ और ही कह रही है. जो कार्सिनोजेनिक (carcinogenic) कण पाए गए हैं पानी में उससे लंबे समय तक इनका इस्तेमाल करने वाली पब्लिक को लेकर चिंता पैदा हो गई है. बोतलों में Polypropylene सबसे ज्यादा मात्रा में पाया गया है. ये मटेरियल बोतल के ढक्कन बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. दूसरा मटेरियल नायलॉन है जो 16% मात्रा में है.
रिसर्चरों का दावा है कि प्रति लीटर में 10.4 माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल्स प्रति लीटर के हिसाब से होते हैं. ये नल के पानी से दुगनी मात्रा है. ये पार्टिकल बॉटल प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के समय आते हैं. इतना ही नहीं कुछ बोतलों में ये 10 हजार माइक्रोपार्टिकल्स प्रति लीटर के हिसाब से भी पाए गए हैं. 4% पार्टिकल्स में इंटस्ट्रियल ल्यूब्रिकेंट्स हैं.
इसके पहले भी इसी तरह की एक रिसर्च सामने आ चुकी है जो BARC रिसर्चर्स ने की थी. इस में मुंबई से लिए पानी के सैम्पलों का टेस्ट किया गया था. इसमें पाया गया था कि 90 सैम्पलों में WHO द्वारा तय की गई लिमिट से 27% ज्यादा कार्सिनोजेन थे. ये पार्टिकल्स कैंसर का अहम कारण बन सकते हैं. इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर की रिपोर्ट कहती है कि ग्रुप 2B carcinogens कैंसर का एक कारण बन सकते हैं.
भारत और प्लास्टिक वाला पानी...
भारत में प्लास्टिक बॉटल और प्लास्टिक पाउच में पानी बेचने का बिजनेस काफी पुराना है. कुल देखा जाए तो लगभग 7 हजार करोड़ से भी ऊपर का कारोबाल प्लास्टिक के आधार पर होता है. इसकी देखरेख राज्य, केंद्र सरकार और FDA जैसी एंजेंसिया करती हैं. कुल मिलाकर भारत में जहां सबसे ज्यादा प्रदूषित मिनरल वॉटर बॉटल में से एक पाई गई है वहां इस तरह के प्रदूषण का कारोबार बहुत तेजी से चल रहा है. वॉटर बॉटल तो छोड़िए यहां तो प्लास्टिक के पाउच में भी पानी दिया जाता है जो बिलकुल भी सेफ नहीं होता.
टॉयलेट सीट से ज्यादा कीटाणु होते हैं दोबारा इस्तेमाल हुई प्लास्टिक की बोतल में..
TreadmillReviews.net के सौजन्य से पिछले साल एक रिसर्च सामने आई थी. इसमें सामने आया था कि एक प्लास्टिक की बोतल जिसे दोबारा इस्तेमाल किया गया है उसमें कुत्ते के खाने के बर्तन, उसके खिलौने या एक टॉयलेट सीट से ज्यादा कीटाणु होते हैं.
ये बार-बार कहा जाता है कि प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना बहुत खतरनाक साबित हो सकता है. वो जमाना गया जब हैंडपंप का पानी पीकर भी कोई बीमार नहीं पड़ता था, अब तो जनाब महंगी बोतल का पानी भी बीमार कर सकता है. बेहतर होगा कि कांच की बोतल में पानी पिएं और स्वस्थ रहने की तरफ एक और कदम बढ़ाएं.
ये भी पढ़ें-
आपकी राय