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Updated: 18 जनवरी, 2023 09:53 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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लद्दाख में पिछले कई महीनों से जारी तनाव के बीच चीन अब हिमालयी क्षेत्र में पानी को लेकर जंग छेड़ने की कोशिश कर रहा है. वह अब पानी के जरिये भारत को घेरने की तैयारी में है. तत्काल पलटवार करते हुए भारत ने भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की घोषणा कर दी. पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा विवाद के बीच चीन, तिब्बत से निकलती यारलुंग जांगबो (भारत में ब्रह्मपुत्र) नदी की निचली धारा पर भारत से सटी सीमा के करीब बांध बनाने की तैयारी में है. इससे आशंका बनी है कि भारत के पूवरेत्तर राज्यों व बांग्लादेश में सूखे जैसे हालात पैदा हो सकते हैं. चीन के प्रमुख सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने चीन के ऊर्जा उत्पादन निगम के अध्यक्ष के हवाले से यह खबर छापी है. यही नहीं, चीन भारत को घेरने के नजरिये से गुलाम कश्मीर में भी 1.35 अरब डॉलर की लागत से 700 मेगावाट क्षमता की पनबिजली योजना का निर्माण भी करने जा रहा है. यह परियोजना महत्वाकांक्षी चीन-पाकिस्तान आíथक गलियारा (सीपीईसी) का हिस्सा है.

चीनी मामलों के विशेषज्ञों का दावा है कि इस बांध का भारत और बांग्लादेश के लोगों पर काफी असर पड़ेगा. ब्रह्मपुत्र नदी भारत और बांग्लादेश से होकर गुजरती है. इन दोनों देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं. चीन ने इन चिंताओं को खारिज करते हुए कहा है कि वह उनके हितों को भी ध्यान में रखेगा. लेकिन चीन के अंतरमन में जो कटुता है, उसके चलते दोनों ही देश चीन पर विश्वास नहीं करते हैं. यह बांध अरुणाचल प्रदेश की सीमा के एकदम निकट है. इस बांध का निर्माण 2025 में पूरा कर लिया जाएगा. साथ ही परियोजना में शामिल सभी दीर्घकालिक लक्ष्य 2035 तक पूरे कर लिए जाएंगे. जबकि चीन इस योजना के पहले ही एक दशक के भीतर इस नदी के ऊपर 11 पनबिजली परियोजनाएं पूरी करके बिजली व सिंचाई के लिए पानी ले रहा है.

India China Water War, India china standoff, Chinese Dam on Brahmaputra River, Brahmaputra river dam, China, dam, India,  Arunachal Pradesh, China builds dam on brahmaputra river, Dam on Brahmaputra Riverचीनी मामलों के विशेषज्ञों का दावा है कि इस बांध का भारत और बांग्लादेश के लोगों पर काफी असर पड़ेगा

इतना ही नहीं, चीन ने पाकिस्तान को संजीवनी देते हुए भारत में जलापूर्ति करने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी जियाबुकू का पानी रोक दिया है. इस नदी पर चीन 74 करोड़ डॉलर की लागत से जल विद्युत परियोजना के निर्माण में लगा था. यह परियोजना 2019 में पूरी भी हो गई है. एक संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने तिब्बत के पानी पर इसलिए दावा ठोका है, ताकि वह दक्षिण एशिया में बहने वाली सात नदियों सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, ईरावदी, सलवीन, यांगत्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर सके. ये नदियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस और वियतनाम से होकर गुजरती हैं. इन नदियों का लगभग 48 फीसद पानी भारतीय सीमा में बहता है. इस नाते जल विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय नदियों के मामले में चीन को भारत पर रणनीतिक बढ़त हासिल हैं.

भारत ने इसी बढ़त को चुनौती देने की दृष्टि से ब्रह्मपुत्र पर 10 गीगावाट का हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट लगाने का निर्णय लिया है. अरुणाचल में बनने वाली यह परियोजना पूवरेत्तर राज्यों को पानी की कमी और बाढ़ से बचाएगा. जलशक्ति मंत्रलय के अनुसार चीनी बांध के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए अरुणाचल में एक बड़े बांध की जरूरत है. इस बांध के बन जाने के बाद इसमें उस जल का भंडारण किया जा सकेगा, जो चीन भारत को नाहक परेशान करने के लिए छोड़ेगा. इस जल नीति के जरिये चीन की अवांछित हरकतों का जवाब दिया जा सकेगा. दरअसल लद्दाख, डोकलाम और गलवन में हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध बिगड़ चुके हैं. भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि चीन इस बांध से पूवरेत्तर के राज्यों में बाढ़ के हालात पैदा कर सकता है और चीन इसके जरिये जल-युद्ध भी छेड़ सकता है.

ब्रह्मपुत्र एशिया की सबसे लंबी नदी है. इसकी लंबाई करीब 3,850 किमी है. तिब्बत से निकलने वाली इस नदी को यहां यारलुंग जांगबो के नाम से जाना जाता है. इसी की सहायक नदी जियाबुकू है. दुनिया की सबसे लंबी नदियों में 29वां स्थान रखने वाली ब्रह्मपुत्र 1,625 किमी क्षेत्र में तिब्बत में बहती है. भारत में प्रवेश करने के बाद असम में कई जगहों पर तो ब्रह्मपुत्र का पाट 10 किमी तक चौड़ा है. ऐसे में चीन यदि बांध के द्वार बंद रखता है तो भारत के साथ बांग्लादेश को भी जल संकट ङोलना होगा और यदि वह बरसात में एक साथ द्वार खोल देता है तो इन दोनों देशों की एक बड़ी आबादी को विकराल बाढ़ का सामना करना होगा. ये हालात इसलिए उत्पन्न होंगे, क्योंकि जिस ऊंचाई पर बांध बन रहा है, वह चीन के कब्जे वाले तिब्बत में है, जबकि भारत और बांग्लादेश बांध के निचले स्तर पर हैं.

चीन इन बांधों का निर्माण सिंचाई, बिजली और पेयजल समस्याओं के निदान के उद्देश्य से कर रहा है, लेकिन उसका इन बांधों के निर्माण की पृष्ठभूमि में छिपा एजेंडा, खासतौर से भारत के खिलाफ रणनीतिक इस्तेमाल भी है. दरअसल चीन में बढ़ती आबादी के चलते उसके करीब 110 शहर पानी के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं. उद्योगों और कृषि संबंधी जरूरतों के लिए भी चीन को बड़ी मात्र में पानी की जरूरत है. चीन ब्रrापुत्र के पानी का अनूठा इस्तेमाल करते हुए अपने शिनजियांग, ग्वांगझू और मंगोलिया इलाकों में फैले व विस्तृत हो रहे रेगिस्तान को भी नियंत्रित करना चाहता है. चीन की प्रवृत्ति रही है कि वह अपने स्वार्थो की पूíत के लिए पड़ोसी देशों की कभी परवाह नहीं करता है.

चीन ब्रह्मपुत्र के पानी का मनचाहे उद्देश्यों के लिए उपयोग करता है तो तय है कि अरुणाचल में जो 17 पनबिजली परियोजनाएं प्रस्तावित व निर्माणाधीन हैं, वे सब अटक जाएंगी. यदि ये परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं और ब्रrापुत्र से इन्हें पानी मिलता रहता है तो इनसे 37 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा. इससे पूवरेत्तर के सभी राज्यों में बिजली की आपूíत तो होगी ही, अन्य राज्यों को भी बेचा जा सकेगा. चीन अरुणाचल प्रदेश पर जो टेढ़ी निगाह बनाए रखता है, उसका एक बड़ा कारण अरुणाचल में ब्रrापुत्र की जलधारा का ऐसे पहाड़ों व पठारों से गुजरना है, जहां भारत को मध्यम व लघु बांध बनाना आसान है. ये सभी बांध भविष्य में अस्तित्व में आ जाते हैं और पानी का प्रवाह बना रहता है तो पूवरेत्तर के सातों राज्यों की बिजली, सिंचाई और पेयजल जैसी बुनियादी समस्याओं का भी समाधान हो जाएगा.

चीन अपनी नदियों के जल को अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानकर चलता है. पानी को एक उपभोक्ता वस्तु मानकर वह उनका अपने हितों के लिए अधिकतम दोहन में लगा है. चीन परंपरा और आधुनिकता के बीच मध्यमार्गी सामंजस्य बनाकर चलता है. जो नीतियां एक बार मंजूर हो जाती हैं, उनके अमल में चीन कड़ा रुख और भौतिकवादी दृष्टिकोण अपनाता है. इसलिए वहां परियोजना के निर्माण में धर्म और पर्यावरण संबंधी समस्याएं रोड़ा नहीं बनतीं. परिणामस्वरूप एक बार कोई परियोजना कागज पर आकार ले लेती है तो वह आरंभ होने के बाद निर्धारित समयवाधि से पहले ही पूरी हो जाती है. इस लिहाज से ब्रrापुत्र पर जो बांध बनना प्रस्तावित हुआ है, वह 2025 में पूरा बन जाएगा. इसके उलट भारत में धर्म और पर्यावरणीय संकट परियोजनाओं को पूरा होने में लंबी बाधाएं उत्पन्न करते हैं. देश के सर्वोच्च न्यायालय में भी इस प्रकृति के मामले वर्षो लटके रहते हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पानी के उपयोग को लेकर कई संधियां हुई हैं. इनमें संयुक्त राष्ट्र की पानी के उपभोग को लेकर 1997 में हुई संधि के प्रस्ताव पर अमल किया जाता है. इस संधि के प्रारूप में प्रावधान है कि जब कोई नदी दो या इससे ज्यादा देशों में बहती है तो जिन देशों में इसका प्रवाह है, वहां उसके पानी पर उस देश का समान अधिकार होगा. इस संधि में जल प्रवाह के आंकड़े साझा करने की शर्त भी शामिल है. लेकिन चीन संयुक्त राष्ट्र की इस संधि की शर्तो को मानने के लिए इसलिए बाध्यकारी नहीं है, क्योंकि इस संधि पर अब तक चीन और भारत ने हस्ताक्षर ही नहीं किए हैं.

2013 में एक अंतरमंत्रलय विशेष समूह गठित किया गया था. इसमें भारत के साथ चीन का यह समझौता हुआ था कि चीन पारदर्शिता अपनाते हुए पानी के प्रवाह से संबंधित आंकड़ों को साझा करेगा. लेकिन चीन इस समझौते का पालन 2017 में भूटान की सीमा पर डोकलाम विवाद के बाद से नहीं कर रहा है.

वह जब चाहे तब ब्रrापुत्र का पानी रोक देता है, अथवा इकट्ठा छोड़ देता है. पिछले वर्षो में अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में जिस तरह से बाढ़ की स्थितियां बनी हैं, उनकी पृष्ठभूमि में चीन द्वारा बिना किसी सूचना के पानी छोड़ा जाना है. मेकांग नदीं पूर्वी एशिया में 60 मिलियन लोगों की जीवन रेखा है. कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम की मीडिया ने देश में सूखे को लेकर कई रिपोर्ट्स को जारी किया है. जिसमें सूखे के लिए चीन के बांध को दोषी बताया गया है. चीन अपने जलविद्युत परियोजना और सिंचाई के लिए मेकांग नदी के 47 अरब क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग कर रहा है.

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध की डिजाइन को लेकर भारत के साथ संपर्क करने का प्रयास कर सकता है. वर्तमान में भारत के रूख को देखते हुए संभव नहीं है कि दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को लेकर कोई समझौता हो सके. ऐसे में अगर चीन यह बांध बनाता है तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संघर्ष बढ़ सकता है. उधर, विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्‍ट्रीय नदियों के मामले में चीन को भारत पर रणनीतिक बढ़त हासिल है. लोवी इंस्‍टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है, 'चीन ने तिब्‍बत के जल पर अपना दावा ठोका है जिससे वह दक्षिण एशिया में बहने वाली सात नदियों सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावडी, सलवीन, यांगट्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर रहा है. ये नदियां पाकिस्‍तान, भारत, बांग्‍लादेश, म्‍यांमार, लाओस और वियतनाम में होकर गुजरती हैं. इनमें से 48 फीसदी पानी भारत से होकर गुजरता है.'

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लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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