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Updated: 01 अप्रिल, 2017 06:33 PM
मनीष दीक्षित
मनीष दीक्षित
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स्मार्ट सिटी की लिस्ट में शामिल राजस्थान के कोटा शहर को सरकार से पहले, कोचिंग के कारोबारी स्मार्ट बनाने में जुट गए हैं. पिछले दिनों छात्रों के सुसाइड करने की घटनाओं से कोटा और कोचिंग का धंधा दोनों ही काफी बदनाम हुए. कोचिंग वालों ने इस दाग को मिटाने के लिए अपने संगठन की बैठक बुलाकर दिलचस्प गाइडलाइंस तैयार कीं. फैसला किया गया कि अब हॉस्टलों में विद्यार्थियों के कमरों में स्प्रिंग और अलार्म वाले पंखे लगाए जाएंगे. खासियत ये होगी कि 20 किलो से ज्यादा वजन लटकने पर पंखा खुद-ब-खुद लटक जाएगा और अलार्म चिल्लाएगा तो हॉस्टल की खैरखबर रखने वाले दौड़ पड़ेंगे और छात्र को बचा लिया जाएगा. बात फिल्मी लगती है पर है नहीं. आत्महत्या करने वाले को जब ये सब पता ही चल जाएगा तो वो लटकने क्यों चलेगा. लेकिन कोचिंग वाले बेवकूफ नहीं, बेहद स्मार्ट हैं.

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करीब दो लाख कोचिंग छात्रों वाले शहर में हजारों छात्रों के कमरों में पंखे लगेंगे. मोटा निवेश होगा और दूसरे ही क्षण निवेश की ये रकम बच्चों के मां-बाप से वसूलेंगे-कैसे? ब्रोशर में पंखे की तस्वीर होगी. दलाल या फ्रंट ऑफिस के चंट कर्मचारी मां-बाप को यकीन दिलाएंगे कि आपका बच्चा इस हॉस्टल में सुरक्षित है क्योंकि यहां सुसाइड निरोधक पंखा लगा हुआ है. बाजार में उपलब्ध नहीं है, इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि 2013 में सुसाइड प्रूफ पंखा बनाने की बात जबलपुर के एक डॉक्टर के हवाले से छपी. साथ ही बंगलूरू की एक स्टार्टअप कंपनी सेफहालो के सुसाइड प्रूफ फैन डिवाइस बाकायदा उतारने की जानकारी मिली. 600 रुपये कीमत के इस उपकरण में चीन से आयातित अलार्म लगाने की बात कही गई है. फिलहाल यह उत्पाद ईकॉमर्स कंपनी के प्लेटफार्म पर उपलब्ध नहीं है. खैर, कोचिंग वाले कहीं न कहीं से लेंगे.

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इसी मुद्दे से जुड़ी एक बात ये है कि सोमवार को संसद ने विधेयक पारित किया है जिसमें कहा गया है कि मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के आत्महत्या के प्रयास करने पर केस नहीं चलेगा. मानसिक रूप से बीमार शख्स को इलाज का अधिकार मिलेगा. मनोविज्ञानी भी आत्महत्या की प्रवृत्ति रखने वालों को मानसिक रोगी मानते हैं और उनका उचित इलाज करते हैं. इस लिहाज से आत्महत्या एक मानसिक रोग हुआ और इसका इलाज डॉक्टर के पास हो सकता है. काउंसलिंग  कराई जा सकती है. लेकिन कोटा के कारोबारियों ने ऐसा नहीं किया.

नहीं माना जा सकता कि इन्हें जानकारी कम है क्योंकि ये भविष्य के डॉक्टर और इंजीनियर तैयार करते हैं. इनके पढ़ाए स्टूडेंट्स एम्स और आईआईटी जैसे संस्थानों में जाते हैं. कोटा वाले चाहते तो कोचिंग में दाखिले से पहले मनोविज्ञानी से छात्र की जांच करा सकते थे और रिपोर्ट के आधार पर मां-बाप से कह सकते हैं कि आप अपना बच्चा ले जाइए. इसके अंदर सुसाइडल टेंडेंसी है. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. कोटा वालों ने अपने कोर्स के दौरान समय-समय पर बच्चों को मनोविज्ञानी की सलाह देने की बात भी नहीं की. इन दोनों ही तरीकों में काफी वक्त लगता और मैनपावर भी. कोटा वालों को एक उपकरण खरीदकर पंखे में लगवाने के तरीके से ज्यादा शॉर्ट कट कुछ समझ में नहीं आया. मनोविज्ञानी वाला तरीका दिखता नहीं है, अमूर्त है. पंखे वाले तरीके की महिमा बताई जा सकती है.

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तीन हजार करोड़ सालाना से ऊपर के बिजनेस में कॉरपोरेट की तरह कोचिंग क्लासेस चलाई जा रही हैं और हॉस्टल के लिए यहां काफी जद्दोजहद होती है. भीड़ में पढ़ाई होती है, इमोशंस की तरफ न तो टीचर का ध्यान होता है और न ही वक्त. बच्चे पर घरवालों के अलावा पढ़ाई का दबाव भी बढ़ता ही रहता है. लेकिन दबाव के हद से गुजर जाने का स्तर विद्यार्थी के अपने लोग आसानी से पहचान सकते हैं. उसे रोका जा सकता है काउंसलिंग से, दबाव कम करके. चीन की एक कंपनी ने अपनी बिल्डिंग के चारों ओर लंबा-चौड़ा नेट लगवा दिया है ताकि अगर कोई कर्मचारी कूदे तो जाली में गिरे और बच जाए. कोटा और चीन की कंपनी दोनों की सोच कारोबारी है. नेट या पंखे से नहीं, माहौल में इंसानियत लाने से बच्चों को बचाया जा सकेगा.

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लेखक

मनीष दीक्षित मनीष दीक्षित @manish.dixit.39545

लेखक इंडिया टुडे मैगज़ीन में असिस्टेंट एडिटर हैं

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