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Updated: 25 जनवरी, 2017 08:15 PM
सरवत फातिमा
सरवत फातिमा
  @ashi.fatima.75
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कोई लड़की गुणी है या नहीं, इसका पैमाना कुकिंग में उसकी महारत है. लड़की है मतलब खाना बनाना आना ही चाहिए. यहां तक कि लड़की होने का मतलब हमारे देश में शारीरिक संरचना के बाद उसका किचन कौशल होता है.

पिछले महीने मेरी पड़ोसन अपने बेटे को डांट रही थी. बेटे पर चीखते हुए उसने कहा- 'लड़कियों की तरह किचन में बैठा रह'. हम में से अधिकतर लोगों को उसकी इस बात में कुछ भी गलत नहीं लगेगा. आखिर हम सब मानते हैं कि खाना बनाना लड़कियों का काम है- है ना? हम सबने यही सीखा ही है. तो गलत लगेगा भी कैसे!

मेरे साथ इसका उलटा है. मेरे लिए खाना बनाना मतलब एक असंभव काम! हालांकि कई लोगों के मुताबिक ये एक अपराध है. आखिर मेरी शादी की उम्र हो गई है और अभी तक मुझे खाना भी बनाना नहीं आता! बताओ भला!

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भगवान गवाह है कि खाना मैं आलस की वजह नहीं बनाती ऐसा नहीं है. मैंने कई बार कोशिश की कि मजेदार, लज्जतदार खाना बनाऊं पर हर बार प्लेट तक आते आते वो क्या हो गया, भगवान ही जानता है.

मेरी नजर में खाना बनाना, पेंटिंग करना, लिखना जैसा ही एक क्रिएटिव काम है. अगर आपको ये काम पसंद है तो आप कमाल कर सकते हैं नहीं तो फिर कयामत तो है ही! इसका किसी जेंडर से कोई लेना-देना नहीं है.

हालांकि हर दूसरे दिन कोई आंटी आकर मुझे ये ज्ञान जरुर दे जाती हैं कि मुझे खाना बनाना सीख लेना चाहिए. अगर मैं अपने होने वाले पति के लिए खाना नहीं बनाती हूं मतलब मैं उसे प्यार नहीं करती! आखिर मर्दों के दिल का रास्ता पेट से ही तो होकर जाता है. अगर मैंने अपने पति के लिए अच्छा खाना नहीं बनाया तो वो मुझे प्यार नहीं करेगा!

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ये सारे बकवास और बेवकूफाना बातों को सुनकर मुझे गुस्सा आता है. मेरा सिर भन्ना जाता है. ये कोई ऐसी बात नहीं है जिसपर अपनी एनर्जी खर्च की जाए. ये और ऐसी कई बातें बरसों से हमारे समाज में जड़ें जमाए हुए हैं. समय के साथ समाज के रवैये और सोच में भी महिलाओं के प्रति बदलाव आ रहा है. मैं आशा करती हूं कि एक दिन ये बदलाव कुकिंग को भी औरतों के कामों की लिस्ट से हटा देगी.

मैं एक औरत हूं और मुझे मेरे औरत होने पर गर्व है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये साबित करने के लिए मुझे किचन किंग बनने की जरूरत है.

लेखक

सरवत फातिमा सरवत फातिमा @ashi.fatima.75

लेखक इंडिया टुडे में पत्रकार हैं

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