गुस्सा और गुरूर: एक और 'जेसिका लाल' कांड
डीजे ने फरमाईश वाले गाने 'तमंचे पे डिस्को' चलाने में थोड़ी देर कर दी. गुस्से में गोली चली और उसकी जान चली गई. कब होगा हम में कानून का भय, कब उठ पाएंगे अपने गुरूर से ऊपर?
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16 साल हो गए. समाज शायद जेसिका लाल कांड को भूला चुका है. मनु शर्मा को मिले आजीवन कारावास को भी भूला दिया गया है. गुस्सा और गुरूर अब भी कायम है. काश कानून का खौफ बरकरार होता, काश अरुण आज जिंदा होता.
उत्तर प्रदेश का बरेली शहर. एक बच्ची की बर्थडे पार्टी चल रही होती है. डीजे अरुण अपने काम में मस्त. फरमाइश आती है - 'तमंचे पे डिस्को' बजाओ. जब तक अरुण ट्रैक में से गाना निकालता और बजाता, फरमाइश करने वाला का सब्र टूट जाता है और वह खुद तमंचा निकाल गोली चला चुका होता है. दो बच्चों के पिता अरुण की जान जा चुकी होती है.
दो बच्चों के पिता और अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ अरुण समाज में व्याप्त गुस्से और गुरूर का शिकार हुए. एक ऐसी व्यवस्था का शिकार हुए, जहां अपराधी पैसे और पावर के नशे में चूर होता है, कानून की रत्ती भर भी परवाह नहीं करता है. यह हम सब के स्व-आकलन का समय है. कारों के लड़ने पर क्यों हम इंसान लड़ पड़ते हैं, जरा सी कहा-सुनी पर हत्या तक कर बैठते हैं?
जेसिका लाल मर्डर केस में आरोपी हाई प्रोफाइल लोग थे. ट्राइल कोर्ट से बरी भी कर दिए गए थे. लेकिन मीडिया ने मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. दिल्ली हाई कोर्ट ने तब लगातार 25 दिन सुनवाई कर मनु शर्मा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
सवाल है कि क्या अरुण के मामले में भी न्याय व्यवस्था इतनी तत्परता दिखाएगी? अगर नहीं तो क्या मीडिया अरुण के लिए जेसिका जैसे अवतार में एक बार फिर नजर आएगी? क्या अरुण के परिवार को वित्तीय न्याय भी मिलेगा और फिर कभी उनके बच्चों के बर्थडे में भी डीजे की मस्ती झूमेगी?

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