संसद के भीतर भी महफूज नहीं है एक महिला!!!
यौन उत्पीड़न की एक ये आम घटना हो सकती है. लेकिन घटनास्थल इसे खास बना देता है. जी हां, ये खास घटनास्थल संसद परिसर है.
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यौन उत्पीड़न की एक ये आम घटना हो सकती है. लेकिन घटनास्थल इसे खास बना देता है. जी हां, ये खास घटनास्थल संसद परिसर है.
जहां 'सूट-बूट वालों की सरकार' जैसे जुमले ट्रेंडिंग टॉपिक हैं. जहां 'जीजा जी की जमीन' पर तंज कसे जाते हैं. जहां किसानों की जमीन और आत्महत्याओं से हर कोई पल्ला झाड़ते नजर आता है - और तोहमत दूसरों के सिर पर फिट करने में जी जान से जुटा रहता है.
जहां हर डिपार्टमेंट में मदर्स डे पर ट्वीट करने की होड़ मचती है. जहां हर नेता खुद को गरीबों, किसानों, दलितों और तमाम तरह के पीड़ितों का हमदर्द और रखवाला होने का दावा करता फिरता है. जहां से देश भर में स्वच्छता अभियान की नींव रखी जाती है. फिलहाल, सफाई की उन चमकती तस्वीरों के जिक्र का कोई मतलब तो नहीं है, लेकिन वो बरबस याद आ ही जाती हैं.
खैर, परिसर की उन्हीं इमारतों की भीतरी चमक बरकरार रखने की खातिर रोजमर्रा की साफ सफाई में तैनात एक महिला कर्मचारी की दास्तां हैरान करने वाली है. सफाई का ठेका पाने वाली निजी कंपनी ने 2013 में उसे बतौर एक सफाईकर्मी संसद की एनेक्सी बिल्डिंग में भेजा था.
शुरू में तो सब ठीक ठाक ही रहा. मुश्किल तब शुरू हुई जब एक नया कर्मचारी साइट इंचार्ज के तौर पर पिछले साल ज्वाइन किया. इंचार्ज होने के नाते वही उसका सुपरवाइजर हो गया और उसके कामकाज को मॉनिटर करने लगा.
सुपरवाइजर उसके ही पीछे पड़ गया. वो हरदम मौके की ताक में रहता. बाथरूम तक वो उसका पीछा करता - खासकर तब जब वो बिलकुल अकेली हो. लगातार घूरता. जब महिला ने सुपरवाइजर को ऐसा करने और तमीज से बात करने को कहा तो उसने नौकरी से निकाल देने की धमकी दे डाली.
दिसंबर 2014 की बात है. एक दिन जब उसने सुपरवाइजर से सफाई के लिए केमिकल मांगा तो उसने पूछा कि बदले में उसे क्या मिलेगा? महिला ने कहा कि जो काम उसे मिला है बदले में वही कर सकती है. इस पर उसका कहना था कि वो चाहे तो बदले में कुछ और भी कर सकती है.
एक बार अकेला पाकर सुपरवाइजर ने उसके अंगों को लेकर कमेंट किए. महिला ने इस बात की शिकायत अपने सीनियर से की.
उस दिन तो हद ही हो गई जब सुपरवाइजर ने महिला से उसका एंट्री पास ही ले लिया जिससे वो काम पर पहुंच ही न पाए. फिर महिला ने कनॉट प्लेस में कंपनी के दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई.
उसके कुछ ही दिन बाद उसका ट्रांसफर लोक सभा में कर दिया गया. कंपनी के अधिकारियों ने सुपरवाइजर को माफी मांगने को कहा और बताया कि कंपनी की सेक्सुअल हरासमेंट कमेटी उसकी शिकायत पर गौर करेगी, लेकिन वो दिन कभी नहीं आया जब वो अपनी बात कह सके. बल्कि उसे उसकी शिकायत को लेकर रोज ताने मारे जाते. उसने चुपचाप अपना काम जारी रखा.
हर तरफ से परेशान महिला ने इस साल जनवरी में स्पीकर सुमित्रा महाजन को एक पत्र लिख कर अपनी आपबीती सुनाई.
आखिरकार अप्रैल के अंत में उसने संसद मार्ग थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराई - और फिर 8 मई को पुलिस ने एफआईआर दर्ज की.
कहने को तो लोक सभा सचिवालय में भी सेक्सुअल हरासमेंट कमेटी है, लेकिन निजी कंपनियों के लिए ठेके पर वहां काम करने वाले कर्मचारी शायद उसके दायरे में नहीं आते. वो अपने लिए लड़ाई तो लड़ना चाहती है, लेकिन उसे नौकरी भी बचानी है, आखिर उसे घर जो चलाना है. बच्चे की परवरिश करनी है. वो अपना काम इमादारी से कर रही है - एक उम्मीद के साथ कि एक दिन उसे इंसाफ जरूर मिलेगा.
आखिर संसद में अब तक क्यों नहीं गूंजी उस महिला सफाईकर्मी की रोजमर्रा की तकलीफ. क्या वाकई उसकी चीख बेदम है या फिर उसकी आह पर वाकई संसद मौन है?

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