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Updated: 05 अगस्त, 2017 12:02 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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शर्मा जी की मां ने अखबार उठाया और रट्टा लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया. यही आदत थी उनकी जो उन्हें पांचवी कक्षा तक पढ़ाई के दौरान उनकी टीचर ने लगवाई थी. अखबार में एक अहम खबर थी. राइट टू प्राइवेसी की खबर. पढ़कर शर्मा जी की मां को थोड़ा अजीब लगा. आखिर ये क्या माजरा है. कुछ दिन पहले अपने फेसुबक वॉल पर भी उन्होंने यही देखा था. चौंकिए मत.. शर्मा जी की मां भले ही पांचवी तक पढ़ी हों, लेकिन बहुत हाईटेक हैं और उनके पोते ने उन्हें स्मार्टफोन भी दिया है. वो फेसबुक, वॉट्सएप और यूट्यूब का बखूबी इस्तेमाल कर सकती हैं.

Right to privacy, Act, Supreme Court

पिछले काफी समय से ये राइट टू प्राइवेसी उन्हें परेशान कर रहा है. आखिर उन्होंने पूरे परिवार को एक साथ बैठाया और पूछना शुरू किया कि आखिर ये चक्कर क्या है. घर के हर सदस्य की अपनी अलग कहानी और अपनी अलग परिभाषा. शर्मा जी की बीवी के अनुसार राइट टू प्राइवेसी था उनकी पड़ोसन उनके घर की ताका झाकी नहीं कर सकती है, ना ही उनकी फेसबुक प्रोफाइल से कोई फोटो चुरा सकता है, ना ही उनके वॉट्सएप मैसेज का स्क्रीन शॉट ले सकता है और ना जाने क्यों आधार कार्ड को लेकर लोगों ने बवाल मचा रखा है, लेकिन राइट टू प्राइवेसी में वो भी आता है.

अम्मा तो और कन्फ्यूज हो गईं. उनका सीधा सा सवाल था. सोशल मीडिया पर बहू अपनी सास से लड़ाई की बात भी स्टेटस के जरिए लिख देती है. नई साड़ी से लेकर नए लॉकर तक सब कुछ तो पोस्ट किया जाता है. फिर आखिर कुछ प्राइवेट कहां रहा. दादी सोच ही रही थी कि शर्मा जी का बेटा बिट्टू जो खुद एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है बोल पड़ा. उसके अनुसार तो सोशल मीडिया पर गई हुई किसी भी चीज का कॉपीराइट बहुत सीमित होता है और वो आसानी से कॉपी भी हो सकती है. ऐसे में राइट टू प्राइवेसी कहां बचा?

दूसरा नंबर आया हमारे शर्मा जी का.. आखिर शर्मा जी ठहरे बैंक कर्मचारी. तो उन्होंने रटी रटाई डेफिनेशन बता दी.

प्राइवेसी एक ह्यूमन राइट है और इसका सीधा सा मतलब ये होता है कि हर इंसान के पास ये अधिकार होना चाहिए कि कब, क्या, किसे बताए और उसे बाकी लोगों द्वारा परेशान ना किया जाए. इतना ही नहीं उन्होंने तो उस आर्टिकल 21 के बारे में भी बता डाला जिसे लेकर बहस चल रही है कि आखिर प्राइवेसी का अधिकार लोगों को है, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक कानून के अंतरगत कुछ ना आए.

मतलब, हमे आजादी तो मिली है, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक कानून चाहे. और शायद यही वजह है कि आधार कार्ड को हर जगह जरूरी किया जा रहा है. यानि आंख की पुतली और फिंगरप्रिंट भी अब सार्वजनिक हो सकते हैं.

बेचारी अम्मा.. इतनी चिंतित हो गई कि जैसे मानो दुनिया ही लुटने वाली है. इतने में ही तपाक से शर्मा जी की बीवी बोल पड़ी कि इससे क्या होता है. जो लेना है ले ले. कम से कम ये तो नहीं पता ना कि हम कहां है, क्या कर रहे हैं, क्या खा रहे हैं..

लेकिन इस बार अम्मा ने सवाल जो किया वो सुनकर सबके होश ही उड़ गए. बिट्टू ने अम्मा को एप इंस्टाल करना, फेसबुक इस्तेमाल करना, गूगल इस्तेमाल करना सब बताया था. और एक सेफ्टी एप भी डाउनलोड करके दिया था जो ये बताए कि कौन कहां है. अम्मा की एक गूगल सर्च पर उनके फेसबुक वॉल पर भी मंदिरों और प्रसाद के एडवर्टिज्मेंट्स आने लगे थे.

अम्मा ने पूछा कि उनके फोन को तो पहले से ही सब पता है, और फोन के जरिए पड़ोस वाली कमला से लेकर अमेरिका में रह रही पिंकी तक सबको सब पता है. फिर कुछ भी प्राइवेट कहां है?

ये एक सवाल है जो यकीनन सबको सोचना और पूछना चाहिए. एप परमीशन जो हमारे कॉन्टैक्ट, फोटोज, वीडियो सब का एक्सेस पहले ही मांग लेती है उसे हम खुशी-खुशी देते हैं, गूगल को ये तक पता है कि हमने नाश्ते में क्या खाया और दिन भर में क्या क्या किया, कहां गए और किस्से बात की. साइट ब्राउज करने से लेकर सोशल मीडिया पर अपनी एक तीखी लड़ाई तक सब कुछ डाल देने से कहां तक हमारी जिंदगी प्राइवेट बची है. ये जरूर है कि आधार कार्ड की सिक्योरिटी और हर चीज में आधार कार्ड को लिंक करवाने को लेकर लोग परेशान हैं, लेकिन क्या बाकी मामलों में सिक्योरिटी नहीं दिखाई देती? जब सब कुछ पब्लिक है तो आखिर राइट टू प्राइवेसी कैसा?

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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