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Updated: 29 जुलाई, 2016 06:21 PM
सुशांत झा
सुशांत झा
  @jha.sushant
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इति कट्टरपंथाय नम:

1. कट्टरपंथी कई तरह के होते हैं जैसे 10वीं पास विद्यार्थी कई तरह के होते हैं. 47 फीसदी वाले कट्टरपंथी, 50 फीसदी वाले, 67 फीसदी वाले, 77 फीसदी वाले, 89 फीसदी वाले और 96 फीसदी वाले. ज्यों-ज्यों प्रतिशत ऊपर जाता है, उनकी क्षमता प्रति- कट्टरपंथी पैदा करने की बढ़ती जाती है. उनके एक-एक पोस्ट से दस पांच प्रति कट्टरपंथी पैदा हो जाते हैं. ऐसे में थोड़ी कमजोर प्रतिभा वाला कट्टरपंथी फिर भी ठीक है-उससे बात की जा सकती है. थोड़ा कम गोरा-चिट्टा, कम चिकना और कम सयाना कट्टरपंथी स्वीकार्य है-क्योंकि वो कई बार ठहरकर आपकी बात सुनता है.

2. यहां बात सिर्फ धार्मिक कट्टरपंथ की नहीं है, वैचारिक, राजनीतिक और जातीय कट्टरपंथ की भी है. मेरे एक मित्र ने कहा कि ये तो कट्टर और उदार तालिबान वाला मामला हो गया. मेरा मानना है कि दिन के चौबीसो घंटे कोई कट्टर या उदार नहीं रहता. ये सब एक माया है.

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 चौबीसों घंटे कोई कट्टर या उदार नहीं रहता

3. जब मैंने लिखना शुरू किया था तो मैं 50 फीसदी से भी कम प्रतिभा वाला कट्टरपंथी था. ऐसे में अन्य विचार के कट्टरपंथियों को लगा कि मैं 'पोच' किया जा सकता हूं. वे मुझे अक्सर चाय पिलाते थे. बस वे धोखा खा गए और उन्होंने अपना 96 फीसदी कट्टरपंथी रूप दिखलाना शुरू कर दिया. ऐसे में मेरी औसत प्रतिभा भी धीरे-धीरे विकसित होने लगी और मैंने ज्यादा रियाज करना शुरू कर दिया. सालों बाद मैं भी 79 फीसदी के करीब पहुंच गया. अब उन्होंने मुझे चाय पिलाना बंद कर दिया!

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4. कुछ दिनों बाद मुझे एहसास हुआ कि आमतौर पर कट्टरपंथ दरअसल क्रिया-प्रतिक्रिया वाला मामला है. यानी तुम वन लाइनर लिखोगे तो मैं लेख ठेल दूंगा. हासिल कुछ नहीं होना. ऐसी बहसों से खुदा नहीं मिलता. फेसबुक या ऐसे माध्यमों पर विचारों की 'क्लाउडिंग' होती है. घने बादल की तरह उमड़-घुमड़ कर विचार आते हैं, चमकीले शब्दों में, बेहतरीन संपादन में, अनुकूल संदर्भों में और भरमाऊ मुहावरों में. स्वभाविक है कि 91 फीसदी लोग बह जाते हैं जिसमें मेरे जैसे कई लोग हैं.

5. इसका मैंने एक उपाय निकाला है. मैंने 77 फीसदी से ऊपर वाले कट्टरों को अन-फॉलो करना शुरू कर दिया है. अनफ्रेंड करने से उन्हें लगता है कि झगड़ा मोल ले रहा हूं- चूंकि समाजिक संबंध हैं. माहे-छमाहे मिलना होता है. इस प्रक्रिया का फायदा ये हुआ कि मेरी औसत कट्टर प्रतिभा जो 79 फीसदी तक चली गई थी, वो फिर से नीचे आ गई. अब मैं खुश हूं.

आप भी इसे आजमाइये. बिल्कुल नया आविष्कार है. चित्त को शांति मिलेगी. किरपा भी बरसेगी.

(पुनश्च- तमाम 'प्रतिशत' आजाद भारत के महत्वपूर्ण सालों के संदर्भ में सायास दिए गए हैं! साथ ही यह ज्ञान थोड़ा 'मैं' वादी भी है लेकिन 'आप' वादी नहीं है.)

लेखक

सुशांत झा सुशांत झा @jha.sushant

लेखक टीवी टुडे नेटवर्क में पत्रकार हैं.

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