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Updated: 09 अप्रिल, 2017 03:46 PM
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मायावती का फॉर्मूला यूपी में भले ही फेल हो चुका हो, लेकिन कर्नाटक में बीजेपी को इसमें काफी स्कोप नजर आ रहा है. कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा काफी दिनों से अगड़ों और पिछड़ों को मिलाकर सोशल इंजीनियरिंग का नया फॉर्मूला तलाश रहे हैं. इस फॉर्मूले के लिए प्रयोगशाला बने हैं नजनगुड और गंडलापीट विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव. वैसे उपचुनाव के ऐन 48 घंटे पहले येदियुरप्पा नोट के बदले वोट विवाद के घेरे में आ गये हैं.

कर्नाटक में यूपी फॉर्मूला

भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ही बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी - और अब जबकि वो कर्नाटक का सीएम बनने का ख्वाब देख रहे हैं - नोट बांटते कैमरे में कैद हो गये हैं.

जिस काम के लिए येदियुरप्पा विवादों के घेरे में अगर उसे चुनाव से पहले या बाद किये होते तो हर कोई उसकी तारीफ ही करता - क्योंकि उन्होंने कर्ज से परेशान किसान की पत्नी को आर्थिक मदद मुहैया करायी है. विवाद इसलिए हैं क्योंकि येदियुरप्पा ने वोटिंग के ठीक दो दिन पहले ये काम किया है. कांग्रेस ने चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की है. वैसे दो दिन पहले बीजेपी की ओर से भी महिला कांग्रेस की नेता को लेकर भी ऐसा ही दावा किया गया था.

येदियुरप्पा कर्नाटक के लिंगायत समुदाय से आते हैं जो आबादी का 15 से 17 फीसदी हिस्सा है. कर्नाटक में दबदबे वाला दूसरा समुदाय है वोक्कालिगा जिसके बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं. कृष्णा के बीजेपी में आने की एक वजह कांग्रेस में उनकी पूछ कम होना रही तो दूसरी वजह येदियुरप्पा ही रहे.

yeddy-krishna-650_040917034330.jpgयेदियुरप्पा के प्रयोग...

लिंगायत बैकवर्ड कैटेगरी में आता है तो वोक्कालिगा फॉरवर्ड में. मौजूदा विधानसभा के 224 सदस्यों में 55 वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं तो 52 लिंगायत से. इस तरह देखें तो दोनों मिलकर आधी आबादी कवर कर लेते हैं. यूपी में दलित समुदाय आबादी का करीब 21 फीसदी है जबकि 10 फीसदी ब्राह्मण और 8 फीसदी ठाकुर मिलाकर तकरीबन 22 फीसदी फॉरवर्ड वोटर हैं.

येदियुरप्पा ने सोची तो दूर की है बशर्ते निर्विवाद रहते हुए वो उस पर अमल कर पायें.

येदियुरप्पा को इतना यकीन क्यों

येदियुरप्पा पिछले 25 दिनों से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के गढ़ मैसूर-चमराजानगर में डेरा डाले हुए हैं. वैसे तो उनका खास जोर 9 अप्रैल के चुनाव पर ही रहा लेकिन इसी प्रयोग के आधार पर कर्नाटक में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का भविष्य भी छिपा हो सकता है.

हाल ही में इकनॉमिक टाइम्स को दिये एक इंटरव्यू में येदियुरप्पा ने दावा किया, "मेरे निजी अनुरोध और निजी कोशिशों से दलितों और लिंगायत के बीच एकता बनी है, जिनके बीच 1992 के बीच बडनवाल दंगों के बाद से बुरी तरह से मतभेद थे. मैने उनसे येदियुरप्पा के लिए साथ आने का अनुरोध किया था, अगर वे मुझे सीएम देखना चाहते हैं."

येदियुरप्पा कहते हैं, "मेरे 40 साल के करिअर में पहली बार पिछड़े और अगड़े समुदाय के लोगों ने हाथ मिलाया है."

mayawati-650_040917034514.jpgनये फॉर्मूले की तलाश...

मायावती ने अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले की सवारी कर 2007 में सत्ता हासिल की लेकिन 2012 आते आते इस फॉर्मूले ने दम तोड़ दिया. इस बार मायावती ने दलितों और मुस्लिमों को मिलाकर वैसा ही गठजोड़ बनाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहीं. 1

3 अप्रैल को कर्नाटक में हुए उपचुनाव के नतीजे आने हैं जो येदियुरप्पा के ताजा इम्तिहान के नतीजे माने जा सकते हैं - साथ ही, आने वाले चुनाव के लिए इसे मॉडल टेस्ट पेपर के रूप में भी देखा जा सकता है.

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