Exit Poll 2019 के साथ ही अरविंद केजरीवाल का एग्जिट तलाशा जाने लगा है !
एग्जिट पोल ( Exit Poll 2019 ) के नतीजों को देखते हुए मयंक गांधी ने आम आदमी पार्टी को आगाह किया है. आप ( AAP ) के संस्थापकों में से एक मयंक गांधी का सुझाव है कि या तो अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय संयोजक का पद खुद छोड़ दें या पार्टी उनसे इस्तीफा ले ले.
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कामयाबी विरोधियों के मुंह पर ताले जड़ देती है - जाहिर है नाकामी के नतीजे उलटे ही होंगे. राजनीति में चुनावी जीत विरोध की हर जबान पर लगाम कस देती है - और हार दिग्गजों को भी सवालों के कठघरे में खड़ा कर देती है.
अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक करियर भी ऐसे लग रहा है जैसे चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है - और आखिरकार पूरी तरह ढल जाता है. यही वजह है कि सवाल उठने लगा है कि क्या केजरीवाल के अच्छे दिन जाने वाले हैं?
आम आदमी पार्टी के संस्थापकों में से एक मयंक गांधी ने तो अब अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व क्षमता पर ही सवालिया निशान लगा दिया है. महाराष्ट्र में कभी आप के सबसे बड़ा चेहरा रहे मयंक गांधी ने नवंबर, 2015 में आम आदमी पार्टी की नेशनल एक्जीक्यूटिव की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
केजरीवाल के नेतृत्व पर उठ रहे सवाल
आप के संस्थापकों में से कई तो बागी बनने के बाद साथ छोड़ दिये या साथ छुड़ा दिया गया, लेकिन कई अब भी कुमार विश्वास और कपिल मिश्रा जैसे कई साथी हैं जो औपचारिक तौर पर अलग तो नहीं हैं - लेकिन केजरीवाल हरदम उनके निशाने पर होते हैं.
कुमार विश्वास और कपिल मिश्रा के हमले तो कई बार झुंझलाहट में निकली भड़ास भी लगते हैं, लेकिन मयंक गांधी ने मुद्दा उठाया है वो अलग है. केजरीवाल पर रिश्वत लेने का इल्जाम लगा चुके कपिल मिश्रा तो बस हमले का बहाना खोजते रहते हैं. कपिल मिश्रा ने तो आप में रहते हुए अपने ट्विटर प्रोफाइल में नाम के पहले चौकीदार जोड़ रखा है. कुमार विश्वास भी ट्विटर से लेकर अपने कवि सम्मेलनों में भी जो रचनाएं सुनाते हैं उसमें मुख्य किरदार केजरीवाल ही होते हैं. दोनों की नाराजगी की निजी वजहें बतायी जाती हैं, कुछ मसले भी हैं जिन पर उन्होंने आपत्ति जतायी थी.
शुरुआती दिनों में साथ - मयंक गांधी और अरविंद केजरीवाल
मयंक गांधी का सवाल कुछ कुछ वैसा ही है जैसा 2018 में पांच राज्यों में बीजेपी की हार पर नितिन गडकरी पार्टी नेतृत्व पर उठाया था. मयंक गांधी का कहना है कि छह साल पहले अरविंद केजरीवाल को आप का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया और आज पार्टी लोक सभा में चार सीटों से शून्य पर पहुंच गयी है. क्या केजरीवाल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये? क्या केजरीवाल को इस्तीफा नहीं देना चाहिये या हटा दिया जाना चाहिये?
Over 6 years ago, kejriwal was made National Convenor
Today, Aap is decimated across India. Instead of 4 LS seats in 2014, they may get 0 or maybe 1 seat. Votes hv reduced everywhere.
Should National Convenor not be held accountable? Should he not resign or be removed?
— Mayank Gandhi (@mayankgandhi04) May 19, 2019
मयंक गांधी के सवाल उठाने पर अरविंद केजरीवाल के बचाव में आप नेता सोमनाथ भारती कूद पड़े हैं. खुद भी कई बार विवादों में रहे सोमनाथ भारती ने मयंक गांधी के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कुछ नसीहत देने की कोशिश की है.
मयंक भाई, अब बहुत हो गया आम आदमी पार्टी आम आदमी पार्टी करते करते! आप आगे बढ़े, कुछ करके दिखाएं! https://t.co/xrgiuiOZni
— Adv. Somnath Bharti (@attorneybharti) May 19, 2019
सोमनाथ भारती को मयंक गांधी ने फटकार लगाते हुए कई ट्वीट किये हैं. मयंक गांधी ने सोमनाथ भारती को आगाह किया है कि वो बीच में पड़ कर ठीक नहीं कर रहे हैं.
सोमनाथ भाई,आपके जितना नहीं, लेकिन कुछ काम करनेकी कोशिश करता हूँ ,
१. जहाँ सब से ज्यादा दुष्काल है, और सबसे ज्यादा आत्महत्या होते हैं ,ऐसे मराठवाड़ा के बीड़ के १०६ गाँव में ३६०° काम करता हूँ https://t.co/pwyIOkGn1T
२. पूरे परली तालुकामे १० लक्ष फल के पेड़ लगा रहा हूँ 1/n https://t.co/W3Gj0E8CWq
— Mayank Gandhi (@mayankgandhi04) May 20, 2019
३. सालाना एकर के १२००० की कमाई को कम से कम २० गुना बढ़ा रहा हूँ
४. मुंबई में सेंकडो गरीबों के इस्पातल में मुफ्त इलाज करा रहा हूँ
५. विकेंद्रयीकरण के लिए भारत का सबसे श्रेष्ट APP बनाया हैं, जिससे अच्छा शहरी विकास हो और लोगों को अपना अधिकार मिले
2/n
— Mayank Gandhi (@mayankgandhi04) May 20, 2019
और जब मैंने (मैं पार्टीका संस्थापक हूँ ) जवाबदेही माँगी तब आपका यह कहना की कुछ और करते क्यूँ नहीं , यह दिखाता हैं , की आप कहाँ से कहाँ आ गए है.
और हम सब का हिसाब लेते थे !
कभी आयने के सामने भी देखा करो.5/5
— Mayank Gandhi (@mayankgandhi04) May 20, 2019
हीरो से जीरो क्यों होते जा रहे केजरीवाल?
वक्त का तकाजा देखिये कि चार साल पहले दिल्ली में बीजेपी को तीन सीटों पर समेट देने वाली पार्टी को नतीजों की कौन कहे, Exit Poll में भी जगह नहीं मिल सकी है. तभी तो अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व क्षमता पर ही सवाल भी उठने शुरू हो गये हैं.
1. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो पहली बार चुनाव लड़े और दिल्ली की 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं कांग्रेस नेता शीला दीक्षित को हरा दिया.
2. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो आम आदमी पार्टी बनाकर राजनीति शुरू करने के बाद पहले चुनाव में ही दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गये.
3. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो 2014 में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़े और ठीक ठाक वोट बटोरे.
4. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो पहले ही लोक सभा चुनाव में पंजाब से चार संसदीय सीटें अपनी पार्टी को दिलायी.
5. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो 49 दिन में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर माफी दिल्लीवासियों से माफी मांगी और 70 में 67 सीटें जीत कर दोबारा दिल्ली के सीएम बन गये.
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को मिली जीत हर मायने में महत्वपूर्ण थी. ये आम आदमी पार्टी की जीत ही रही जिसने 2014 में शुरू हुई मोदी लहर पर पहली बार ब्रेक लगाया - और केंद्र की सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद तीन राज्यों में ताबड़तोड़ सरकार बना लेने के बाद दिल्ली में बीजेपी को महज तीन सीटों पर समेट दिया - और कांग्रेस को जीरो पर समेट दिया.
Exit Poll को आम आदमी पार्टी ने भ्रामक करार दिया है. आप नेता संजय सिंह का दावा है कि उनकी पार्टी दिल्ली की सभी सात सीटें जीत रही है. संजय सिंह का कहना है कि अनुमान हमेशा झूठे साबित होते हैं. संजय सिंह का आरोप है कि एग्जिट पोल में पैसे लेकर सीटें घटाई या बढ़ाई जाती हैं.
अब साफ़ हो गया ये EXIT POLL या तो नशे की हालत में बनाया गया है या घर में बैठकर बनाया गया है या फिर BJP वालों से रिश्वत खाकर बनाया गया है जहाँ AAP लड़ नही रही वहाँ 2.9% Vote कैसे मिल रहा है? ये क्या मज़ाक़ है? #गाँजे_की_बिक्री_पर_रोक_लगाओ https://t.co/ipttfKEjbH
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) May 19, 2019
संजय सिंह का भी अपना प्वाइंट है और जब तक अंतिम नतीजे नहीं आ जाते, कुछ भी नहीं कहा जा सकता. फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो आप अच्छे दिनों के जाने के संकेत जैसे दे रहे हैं. आप नेतृत्व चाहे तो ऐसा भी नहीं बिगड़ा कि अब कुछ नहीं होने वाला. हालात सुधारे जा सकते हैं, शर्त ये है कि पहले तो ये बात माननी पड़ेगी कि सुधार की जरूरत है. अब तक तो यही देखने को मिलता है कि आप नेतृत्व दूसरों को ही गलत ठहराता रहा है.
जब आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बात चल रही थी तो अरविंद केजरीवाल का कहना रहा कि वो प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस का भी सपोर्ट कर सकते हैं. यानी तब केजरीवाल को राहुल गांधी को भी प्रधानमंत्री बनाने से कोई परहेज नहीं रहा. जब गठबंधन नहीं हो पाया तो केजरीवाल कहने लगे अगर बीजेपी जीतती है तो उसके लिए राहुल गांधी ही जिम्मेदार होंगे. दिल्ली में वोटिंग के ऐन पहले केजरीवाल का बयान आया कि सारे मुस्लिम वोट कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो गये. ये आम आदमी पार्टी ही है जो शाही इमाम का सपोर्ट तक ठुकरा चुकी है.
क्या आप का ये हाल पल्लाझाड़ पॉलिटिक्स के कारण हो रहा है?
आम आदमी पार्टी ये आम चुनाव दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के नाम पर लड़ रही है. अव्वल तो ऐसा कुछ होता नहीं लगता लेकिन अगर आप दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीत भी जाये तो क्या दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा? जिस मोदी सरकार के साथ केजरीवाल की रोजाना की लड़ाई है, एग्जिट पोल के अनुसार वो दोबारा सत्ता में आ रही है - क्या केजरीवाल अपना वादा पूरा कर पाएंगे?
आखिर ऐसे वादे करने की जरूरत क्या है जिन्हें पूरा करना ही तकरीबन असंभव हो? केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा बन कर राजनीति में आये थे. कुछ नहीं भी करते और अपनी बात पर टिके रहते तो भी लोग का भरोसा नहीं टूटता.
अपनी 49 दिनों की सत्ता केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी कानून पास न कराने को लेकर छोड़ दी थी. केजरीवाल का कहना रहा कि दूसरी पार्टियों के सपोर्ट के कारण वो अपना काम नहीं कर पा रहे हैं. इसे लेकर केजरीवाल पर भगोड़ा होने का ठप्पा लग गया. जब केजरीवाल ने माफी मांगी तो लोगों ने लगभग सारी सीटें ही आप की झोली में डाल दी - लो जी अब जो जी चाहे जी भर के करो. केजरीवाल कहां हार मानने वाले दिल्ली के एलजी के साथ रोज का झगड़ा शुरू हो गया. एक बार तो एलजी के दफ्तर में ही धरना दे बैठे.
आखिर कोई कितने दिन तक किसी की बातों पर यकीन करेगा. जब वही नेता दूसरे नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाएगा और कुछ दिन बाद माफी मांग लेगा तो कोई कब तक उसकी बातों पर यकीन करेगा?
अब इससे बड़ा विरोधाभास क्या होगा कि जिस शीला दीक्षित की सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर चुनाव जीतने वाले केजरीवाल उन्हीं के साथ गठबंधन करने को तैयार हो जाते हैं. जिस कांग्रेस के शासन में संसद में बैठे सदस्यों और मंत्रियों केजरीवाल भला बुरा कहने की सीमाएं लांघ जाते थे, उसी कांग्रेस को गठबंधन के लिए समझाने लगते हैं.
क्या केजरीवाल एग्जिट पोल से पहले अपना सर्वे करा चुके थे और ये इंटरनल सर्वे ही रहा जो केजरीवाल को कांग्रेस के गठबंधन के लिए बेचैन कर रखा था? एग्जिट पोल तो यही इशारा कर रहे हैं. दिल्ली विधानसभा के कार्यकाल में अब साल भर भी नहीं बचा है और केजरीवाल की क्रेडिबिलिटी पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है?
मयंक गांधी की नसीहत अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी दोनों की सेहत के लिए बहुत अच्छी है - वरना, जनता को सिर पर बिठाते और मिट्टी में मिलाते देर नहीं लगती.
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