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Updated: 06 जनवरी, 2022 03:53 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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जैसी जटिल परिस्थितियां हैं, बुद्धिजीवी वर्ग, नेताओं और WHO द्वारा ये कह दिया गया हो कि Corona Is New Normal और अब हमें हालात से एडजस्टमेंट करते हुए इसी हिसाब से ज़िन्दगी गुजर बसर करनी है. ये वाक्य भले ही आपके और हमारे लिए एक साधारण हिदायत हो. लेकिन उन मुल्कों के लिए ये एक खासी गंभीर बात है जिनकी इकॉनमी का एक बड़ा माध्यम टूरिज्म था. पहले 2020 फिर 2021 और अब 2022 कोरोना के चलते पूरी टूरिज्म इंडस्ट्री चौपट हो गई है. क्योंकि पहले कोरोना और अब ओमिक्रोन ने फुटफॉल प्रभावित किया है इसलिए उन देशों की जहां टूरिज्म के कारण ही लोगों की रोजी रोटी का इंतेजाम होता था वहां हालात किस हद तक चिंताजनक हैं गर जो इस बात का अवकोलन करना हो तो श्रीलंका का रुख कीजिये. कोविड के आगे एक मुल्क के रूप में श्रीलंका ने घुटने टेक दिए हैं. मुल्क में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जो शायद आपकी आंखों को नम कर दे.

बताते चलें कि नया साल श्रीलंका के लिए खुशियों की सौगात नहीं बल्कि दुखों का पहाड़ लेकर आया है. जैसे हालात हैं और जिस तरह का आर्थिक संकट है माना यही जा रहा है कि जल्द ही श्रीलंका अपने को दिवालिया घोषित कर देगा.

Srilanka, Mahindra Rajapaksa, Prime Minister, Covid 19, Coronavirus, Tourism, Touristकोविड ने यदि किसी मुल्क को पूरा तोड़ कर रख दिया है तो शायद वो श्रीलंका ही होगा। पीएम महिंदा राजपक्षे खुद बेबस और लाचार हैं

जैसा कि ऊपर ही हमने श्रीलंका के पर्यटन का जिक्र किया था. तो बता दें कि सवा दो करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका का शुमार विश्व के उन गिने चुने मुल्कों में है जहां जीडीपी में टूरिज्म सेक्टर का योगदान 10 फीसदी से ज्यादा है. जिक्र क्योंकि कोविड और उसके बाद आई चुनौतियों का हुआ है तो श्रीलंका के तहत हमें इस बात को समझना होगा कि कोविड ने जहां एक तरफ टूरिज्म सेक्टर को बर्बाद किया. तो वहीं रही गयी कसर चीन के कर्जे ने पूरी कर दी और मुल्क को वहां लाकर छोड़ दिया है जहां उसका संभालना लगभग नमुमकिन दिखाई दे रहा है.

बताते चलें कि श्रीलंका को फांसने के लिए चीन ने बहुत शातिर तरीका अपनाया है. जब जब पैसे चाहिए थे चीन ने श्रीलंका को पैसे दिए और बदले में वो नीतियां बनवाई जिनका सीधा फायदा श्रीलंका से चीन को मिल रहा है. श्रीलंका का हंबन टोटा पोर्ट इसका जीता जागता उदाहरण है. श्रीलंका मौजूदा हालात में चीन का कर्ज चुकाने में असमर्थ है इसलिए उसने इस पोर्ट को चीन को 100 सालों की लीज पर दे दिया है.

आज जैसे हालात श्रीलंका के हैं इस बदहाली की वजह सिर्फ कोविड नहीं है. श्रीलंका की बदहाली का एक बड़ा कारण जहां एक तरफ श्रीलंका सरकार का ढीला ढाला रवैया है. तो वहीं संसाधनों का दोहन भी है. आज मुल्क का आर्थिक संकट गंभीर मानवीय संकट में तब्दील होता दिखाई दे रहा है. मुल्क में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ रही है. खाने-पीने की चीजें भी लोगों की पहुंच से हर दिन बाहर होती जा रही हैं.

खजाने लगभग खाली हो चुके हैं. 2022 में श्रीलंका अगर अपने को दिवालिया घोषित कर दे तो भारत समेत विश्व के अन्य मुल्कों को इसपर बिल्कुल भी हैरत नहीं होनी चाहिए. बात श्रीलंका की सरकार की हुई है तो हमें इस बात को भी समझना होगा कि श्रीलंका में सरकार की कमान राजपक्षे परिवार के पास है. एक भाई गोटाभाया राजपक्षे राष्ट्रपति हैं तो दूसरे भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री हैं. यानी देश की जितनी भी शक्तियां हैं वो एक ही परिवार के पास सुरक्षित हैं जिन्होंने अपने अपने प्रयासों से उसे सीमित कर दिया है.

पहले कोविड महामारी, पर्यटन उद्योग की तबाही, बढ़ते सरकारी खर्च और टैक्स में जारी कटौती के कारण सरकारी खजाना खाली हो चुका है. इसके साथ ही कर्जों के भुगतान का दबाव भी बढ़ता जा रहा है. लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है. विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक, महामारी की शुरुआत से अब तक पांच लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं. नवंबर में महंगाई दर रिकॉर्ड 11.1% पर पहुंच गई थी. दिसंबर में खाने-पीने के सामान 22.1 फीसदी महंगे हो गए.

श्रीलंका अब खाने-पीने के सामान की कमी से जूझ रहा है. हालात किस हद तक जटिल हैं इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि मुल्क में लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि खाद्य सामग्री की आपूर्ति की जाए. ये अपने आप में दुखद है कि श्रीलंका में लोगों के लिए तीन वक्त का खाना हासिल करना दूर की कौड़ी हो गया है.

गौरतलब है कि खुद श्रीलंका की सरकार को भी इस ब्लंडर का अंदाजा बहुत पहले ही हो गया था. सरकार ने आर्थिक आपातकालीन स्थिति की घोषणा पिछले साल ही की थी और सेना को जरूरी सामान की आपूर्ति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी थी. बात जटिलताओं की चली है तो हमें इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि, श्रीलंका में चीनी और चावल के लिए सरकारी कीमत तय की गई लेकिन इससे भी लोगों को राहत नहीं मिली.

चूंकि श्रीलंका का ये आर्थिक संकट सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय है. ऐसे भी ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट सामने आ रहे हैं जिनमें कहा जा रहा है कि लोग एक किलो दूध तक नहीं खरीद पा रहे हैं. दुकानों पर दूध पाउडर के पैकेट को खोलकर 100-100 ग्राम के पैक तैयार किए जा रहे हैं ताकि लोग उन्हें खरीद सकें.

श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के पूर्व उप-गवर्नर वा विजेवार्देना ने चेतावनी देते हुए कहा है कि आम लोगों के टकराव से आर्थिक संकट और गहराएगा.लोगों की जिंदगी और मुश्किल होने वाली है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, 'जब आर्थिक संकट काबू से बाहर हो जाएगा तो स्थिति और बदतर होगी. खाद्य संकट भी बढ़ने की आशंका है क्योंकि उत्पादन कम हो रहा है और आयात के लिए पैसे नहीं हैं. इस स्थिति में मानवीय संकट से बचना मुश्किल होगा.

हम बार बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि श्रीलंका में लोगों की आमदनी का जरिया पर्यटन था और अब जबकि कोविड के चलते ये सेक्टर नष्ट होने की कगार पर है तो हमें वर्ल्ड ट्रैवेल एंड टूरिजम काउंसिल द्वारा दिए गए उस बयान को भी ध्यान में रखना होगा जिसके अनुसार श्रीलंका में दो लाख से ज्यादा लोगों की पर्यटन क्षेत्र से नौकरियां गई हैं.

बहरहाल क्योंकि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या बढ़े हुए विदेशी कर्ज को माना जा रहा है. इसलिए देखना दिलचस्प रहेगा कि श्रीलंका इस कर्ज को चुका पाता है या नाकाम रहता है. मुल्क हर बीतते दिन के साथ गर्त के अंधेरों में जा रहा है और हालात भुखमरी वाले हैं इसलिए वो तमाम मुल्क जिन्होंने श्रीलंका की मदद की थी और उसे कर्ज दिया था अब उनका भी रवैया देखना दिलचस्प है.

क्योंकि श्रीलंका की बदहाली की बड़ी वजह वहां की सरकार का रवैया है इसलिए इस कोरोना काल में मुल्क को सरकार वापस कैसे पटरी पर लाती है इसपर भी पूरी दुनिया की नजर है. कुल मिलाकर श्रीलंका के तहत आने वाले दिन खासे महत्वपूर्ण हैं जिसपर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर है. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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