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Updated: 12 जुलाई, 2023 03:19 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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जनसंख्या में हम नंबर वन हो गए हैं, जो उपलब्धि नहीं है, बल्कि घोर चिंता का विषय है. संयुक्त राष्ट्र ने भारत को जनसंख्या आबादी के लिहाज से अव्वल घोषित कर दिया है, जबकि इस पायदान पर काफी समय से चीन ही रहा. लेकिन अब वो दूसरे नंबर पर है. बेहताशा बढ़ती जनसंख्या ने न केवल वर्तमान विकास क्रम को प्रभावित कर रही है, बल्कि भविष्य की कई चुनौतियां को भी खड़ा कर दिया है. हिंदुस्तान में सुगबुगाहट बीते कुछ महीनों से है कि जनसंख्या रोकने की योजना बन चुकी है जिसका खुलासा जल्द होने वाला है. आगामी इसी माह की 20 तारीख से संसद का मॉनसून सत्र आरंभ होने वाला है जिसमें केंद्र सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून को पारित करेगी. बताया जा रहा है कि यूसीसी के भीतर ही जनसंख्या नियंत्रण का मसौदा भी शामिल हैं. हालांकि इसको लेकर अभी भ्रम की स्थिति बनी हुई. फिलहाल कानून के ड्राफ्ट के संबंध में अभी तक खुलकर सरकार ने भी पत्ते नहीं खोले हैं. पर, इतना जरूर है, अगर यूसीसी में जनसंख्या नियंत्रण का प्रावधान होगा, तो इससे बढ़ती आबादी पर कुछ अंकुश जरूर लग सकेगा.

Uniform Civil Code, Modi Government, BJP, Narendra Modi, BJP, Prime Minister, Central Governmentचाहे वो सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष सभी की निगाहें समान नागरिक संहिता की तरफ हैं

बहरहाल, जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा बहुत पेचिदा होता चला जा रहा है, कुछ समर्थन में हैं तो कई विरोध में खड़े हैं? समय की मांग यही है किसी की परवाह किए बिना केंद्र को इस मसले पर गंभीर होना पड़ेगा. क्योंकि बगैर सरकारी सख्ती के कोई हल निकलने वाला नहीं? विगत बीते चार दशकों में जन आबादी में जिस तेजी से बढ़ोतरी हुई, उसने सबकुछ तहस-नहस कर दिया. जनसंख्या ने ही साधन, संसाधन, जमीन, हक-हकूक, रोजगार व काम-धंधों पर प्रहार किया है. हिंदुस्तान की आबादी विकराल रूप ले चुकी है.

जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम अब खुलकर दिखने लगे हैं. जैसे, एक भूखा बेजुबान पशु खाने पर झपट्टा मारता है, स्थिति इंसानों में भी कुछ ऐसी ही होने लगी है. गांव-देहातों में मात्र गज भर जमीन के लिए खुलेआम कत्ल होने लगे हैं. शहरों में पार्किंग को लेकर सिर फटने शुरू हो गए हैं. युवा पेट पालने के लिए धक्के खाने पर मजबूर हैं. अब देखिए ना, एक चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की फौज लाइनों में लगने लगी है.

बढ़ती आबादी से रोजगार-धंधे सिमट गए हैं. आवासीय इलाके व सड़कें इंसानों और वाहनों से खचाखच भर चुकी हैं. पार्किंग फुल हैं, घरों के आंगन सिमट गए हैं, आवासीय जगहें कम हो गई हैं, इसी कारण फ्लैट संस्कृति का चलन लागू हो गया है. इसलिए जनसंख्या विस्फोट को रोकना निहायत ही जरूरी हो गया है. इसमें भला किसी एकवर्ग या एक समुदाय का फायदा नहीं, बल्कि सबका भला है.

सरकार का स्लोगन ‘हम दो हमारे दो’ भी बढ़ती आबादी के समाने फीका पड़ चुका है. इसे कुछों ने अपनाया, तो कईयों ने नकारा? भारत के अलावा इथियोपिया-तंजानिया, संयुक्त राष्ट्र, चीन, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, युगांडा, इंडोनेशिया व मिश्र भी ऐसे मुल्क हैं जहां की स्थिति भी कमोबेश हमारे ही जैसी है. लेकिन इन कई देशों में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कानून अमल में आ चुके हैं.

कई देशों में दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का फरमान जारी हो चुके हैं. जनगणना-2011 के मुताबिक भारत की आबादी 121.5 करोड़ थी जिनमें 62.31 करोड़ पुरुष और 58.47 करोड़ महिलाएं शामिल थीं. लेकिन अब 140 करोड़ से ज्यादा हो गए हैं. सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश में है जिसकी आबादी पाकिस्तान की जनसंख्या को भी पार कर गई है.

वहीं, सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य अब भी सिक्किम ही है. जनसंख्या नियंत्रण पर जब भी कानून बनाने की मांग उठती है,उसे सियासी मुद्दा बना दिया जाता है. जबकि, इस समस्या से आहत सभी हैं. पढ़ा-लिखा हिंदु-मुसलमान, सिख-ईसाई सभी समर्थन में हैं कि इस मसले पर मुकम्मल प्रयास होने चाहिए. समूचा हिंदुस्तान जनसंख्या विस्फोट का भुगतभोगी है. बेरोजगार युवा तनाव में हैं. कुछ गलत रास्तों पर भी चल पड़े हैं.

एनसीआरबी के ताजे आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि हर तरह के अपराधों में युवाओं की संख्या अब बढ़ रही है जिसमें ब्लैकमेलिंग, लूटपाट, चोरी, रंगबाजी आदि कृत्य शामिल हैं. बढ़ती आबादी को देखकर प्रबुद्व वर्ग दुखी है, वह सहूलियतें चाहते हैं, सामान अधिकार चाहते हैं, खुली फिजाओं में सांस लेना चाहते हैं, सभी को घरों की छत और रोजगार मिले इसकी ख्वाहिशें सभी की हैं.

युवाओं को जरूरत के हिसाब से जॉब मुहैया हां, डिग्री लेकर सड़कों पर घूमना न पड़े. इसलिए समूचा शिक्षित अल्पसंख्यक वर्ग भी जनसंख्या नियंत्रण कानून के पक्ष में हैं. हां, उनका एक धड़ा इसके खिलाफ है, जो जनसंख्या बढ़ोतरी को कुदरत का वरदान मानता है. उसे रोकने को बुरा मानता है. दरअसल, ऐसे लोगों की मानसिकता को हमें बदलने की जरूरत है.

पढ़ा लिखा मुसलमान भी भविष्य में होने वाले खतरों से वाकिफ हो चुका है. वक्त की मांग यही है, जनसंख्या चाहें यूसीसी के माध्यम से रुके या फिर किसी अलहदा कानून से, रूकना चाहिए. इसके लिए सभी पक्ष-विपक्षों को एक मंच पर आने की जरूरत है. समाज को इस मसले पर सरकार का साथ देना चाहिए.

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