New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 23 सितम्बर, 2016 05:07 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

राहुल गांधी को पीएम मैटीरियल नहीं मानना - और नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का पसंदीदा उम्मीदवार बताना. वो भी तब जब कोई इसका कहीं से कोई ताजा प्रसंग न हो.

लालू प्रसाद के इस बयान का राजनीतिक मकसद क्या वजह हो सकता है? क्या इसके पीछे सिर्फ शहाबुद्दीन की रिहाई के बाद बिहार की राजनीति और समाज में आये तूफान ही असली वजह है? क्या इसका यूपी चुनाव से भी कोई संबंध है?

लालू की सियासी चाल

लगता है लालू प्रसाद ने अपनी रणनीति में काफी बदलाव कर लिया है. इस बदलाव के पीछे भी नीतीश कुमार ही हैं कोई और नहीं. पहले लालू ने कहा था कि नीतीश कुमार को बिहार में रहने दीजिए क्योंकि उन्हें बहुत काम करना है. बिहार चुनाव के नतीजों से उत्साहित लालू प्रसाद ने एलान किया था कि वो देश भर घूमेंगे और केंद्र की मोदी सरकार की पोल खोलेंगे. मगर ऐसा नहीं हो सका.

लालू बिहार की राजनीति में उलझे रहे और नीतीश शराबबंदी अभियान लेकर बाहर निकल पड़े. लालू के साथियों ने इसे लेकर नीतीश को काफी भला बुरा भी कहा, लेकिन सब बेअसर रहा.

इसे भी पढें: शहाबुद्दीन को जेल और अनंत सिंह को बेल.. महागठबंधन में सबकुछ ठीक रहेगा?

लालू के रणनीतिक बदलाव के पीछे एक वजह राष्ट्रीय स्तर पर उनकी अस्वीकार्यता भी रही होगी. मुलायम सिंह के अलावा बिहार से बाहर उन्हें भाव देने वाला कोई रहा भी नहीं. मुलायम रिश्तेदार तो हैं ही - दोनों एक ही तरह की राजनीतिक करते हैं. MY फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव - दोनों का ही पसंदीदा और कारगर चुनावी गठजोड़ रहा है. लालू ने कुछ दिन पहले ही बताया कि वो तो मुलायम के लिए यूपी में प्रचार करेंगे. लेकिन क्या लालू के इस कदम की वजह सिर्फ मुलायम से रिश्तेदारी ही है? ऐसा नहीं है.

यूपी में मुलायम का सपोर्ट करके वो नीतीश को काउंटर करने की तरकीब तो निकाल ही चुके हैं - राहुल से पुरानी खुन्नस निकालना चाहते हैं. क्योंकि राहुल गांधी देवरिया से दिल्ली तक किसान यात्रा और खाट सभा कर रहे हैं. लालू कैसे भूल सकते हैं कि राहुल गांधी अगर मनमोहन सरकार के उस ऑर्डिनेंस की कॉपी नहीं फाड़े होते तो उनकी लोक सभा की सदस्यता बच सकती थी. फिर बिहार चुनाव में भी उन्हें जहर पीकर नीतीश को नेता नहीं मानना पड़ता.

lalu-nitish-iftar_65_092316042903.jpg
पहले आप...

लालू को इस बात का बहुत बुरा लगा था कि तीसरे पायदान वाले कांग्रेस नेता, महागठबंधन के नंबर वन आरजेडी को छोड़ देने की बात कर रहे हैं. ये सब तब हुआ जब जेल से छूटते ही शहाबुद्दीन ने नीतीश को टारगेट किया.

अब तक सिर्फ रघुवंश प्रसाद ही नीतीश कुमार को 'ऐक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर' मानते रहे. जब जेल से छूटे तो शहाबुद्दीन भी इसमें शामिल हो गये. शहाबुद्दीन के बाद रघुवंश प्रसाद ने भी धधकती आग को हवा दे दी.

शहाबुद्दीन और रघुवंश की बातें सुनकर जेडीयू नेता भड़क उठे और बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर लालू को अपने नेताओं पर लगाम लगाने की मांग करने लगे. तभी बिहार कांग्रेस के नेताओं ने आरजेडी को महागठबंधन छोड़ देने की सलाह दे डाली.

आरजेडी नेता का बयान ऊपर से भले ही बेवक्त की शहनाई लगे लेकिन लालू ने एक ही झटके में जेडीयू और बिहार कांग्रेस के नेताओं का मुहं भी बंद तो कर ही दिया.

लालू प्रसाद के बयान में दो बातें तो साफ तौर पर नजर आ रही हैं, लेकिन तीसरा मैसेज छिपा हुआ लग रहा है.

नीतीश को मैसेज

लालू के बयान में नीतीश के लिए भी कोई छिपा हुआ मैसेज तो नहीं है? लगता है लालू ने खास रणनीति के तहत नीतीश को पसंदीदा पीएम कैंडिडेट बताया है. कुछ दिन पहले जब नीतीश ने प्रधानमंत्री पद के लिए किस्मत कनेक्शन की बात की थी तब भी लालू का रिएक्शन आया था.

जब नीतीश की पीएम बनने की ख्वाहिश पर मीडिया ने लालू की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो लालू का कहना था, "कोई शक है का?"

इसे भी पढें: यूपी चुनाव को लेकर नीतीश को आखिर लालू की परवाह क्यों नहीं?

लालू के तब के और अब के बयान में फोर्स का फर्क समझना होगा. तब लालू की बात उनकी तात्कालिक राजनीतिक मजबूरी की ओर इशारा कर रही थी.

लालू के ताजा बयान से ऐसा लगता है जैसे नीतीश को वो संकेत दे रहे हों कि अगर बिहार से बाहर घूमने का बहुत मन है तो घूमिये, बिहार की चिंता छोड़ दीजिये.

नीतीश के बाहर घूमने का मतलब डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के लिए रास्ता साफ करना. लालू की रणनीति में संभावित बदलाव के पीछे यही लगता है.

तो क्या नीतीश सरकार को कोई खतरा है?

फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता. फिलहाल क्या 2018 तक भी ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती. और 2019 में?

अभी तो लालू प्रसाद को नीतीश कुमार की बहुत जरूरत है. भले ही लालू प्रसाद महागठबंधन के नंबर 1 नेता हों. भले ही ये माना जाता हो कि लालू सरकार के ज्यादातर मंत्रियों और अफसरों को फोन पर या बुलाकर निर्देश देते रहते हों. लेकिन सबसे बड़ा सच लालू की कानूनी मजबूरी है. अभी तेजस्वी और तेज प्रताप इस लायक नहीं हैं कि अपने बूते सरकार चला सकें.

2019 की बात बिलकुल अलग है, हालांकि, काफी कुछ राजनीतिक हालात पर निर्भर करेगा. लोक सभा चुनाव के लिए सियासी माहौल गर्माते गर्माते लालू जरूर कोई खेल करेंगे. आखिर साल भर बाद ही तो नयी पारी के लिए काउंटडाउन शुरू हो जाएंगे. वैसे भी महागठबंधन का क्या है, ये तो तभी तक जरूरी होता है जब तक स्वार्थ सिद्ध होते रहें.

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय