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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 08 अगस्त, 2023 05:53 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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संसद में जब दिल्ली सेवा विधेयक पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने दावा कि विपक्षी दलों को इस बात का डर था कि यदि उन्होंने इस बिल पर अरविंद केजरीवाल की बात नहीं मानी, तो वे इंडिया गठबंधन छोड़कर चले जाएंगे. उन्होंने विपक्षी दलों का गठबंधन 'जरूरी नहीं, मजबूरी' का गठबंधन बताया था . शाह ने यह भी कहा था कि दिल्ली सेवा विधेयक के संसद से पास होने के बाद अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों का साथ छोड़कर चले जाएंगे. लेकिन क्या ऐसा होगा? दिल्ली सेवा विधेयक पर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को अपने पक्ष में लाने के बाद क्या अरविंद केजरीवाल के पास गठबंधन छोड़ने का कोई बहाना होगा? सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वे ऐसा क्यों करेंगे?

अब दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हो चुका है. इसकी वजह ओडिशा की बीजेडी और आंध्र प्रदेश की वाय एसआरसीपी का समर्थन राज्यसभा में भाजपा के साथ होना है. जाहिर है दिल्ली सर्विस बिल पारित होने पर दिल्ली के बॉस एलजी होंगे, ये तय हो गया. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठजोड़ बेंगलुरु की विपक्षी एकता की दूसरी मीटिंग में तय हुआ था. 2024 के लोकसभा में दोनों दल एक साथ होंगे ये केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस पार्टी द्वारा समर्थन की गारंटी के बाद तय हो पाया था.

Arvind Kejriwal, Delhi, Chief Minister, Opposition, UPA, NDA, Lok Sabha Election, Prime Ministerदिल्ली सेवा विधेयक पार जैसा रुख कांग्रेस का रहा उसने अरविंद केजरीवाल को आहत कर दिया है

आम आदमी पार्टी की रणनीति विपक्षी दलों के साथ मिलकर केंद्र सरकार के बिल को राज्यसभा में खारिज कराने की थी. हालांकि, नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी की पार्टी द्वारा राज्यसभा में समर्थन दिए जाने से केंद्र सरकार दिल्ली सर्विस बिल को राज्यसभा में भी पास करा ले गई.जाहिर है अमित शाह के बयान राजनीतिक हो सकते हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी एक दूसरे के साथ गठबंधन में कब तक बने रहेंगे इसे लेकर बड़ा सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है.

दरअसल, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में सफल होकर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया है. एक दशक में आप पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करना पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि है. आम आदमी पार्टी का विस्तार उन्हीं राज्यों में हुआ है, जहां कांग्रेस कमजोर हुई है. इस तरह कांग्रेस की सियासी जमीन पर ही आम आदमी पार्टी की मंजिल खड़ी हुई है.

इसलिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दो परस्पर विरोधी दल हैं, जो स्वभाविक रूप से साथ होकर राजनीति कर पाएंगी इसकी संभावनाओं को लेकर सवाल उठने लाजमी हैं. कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी तभी अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया था. आप पार्टी दो प्रदेश में कांग्रेस को हरा कर ही सरकार बनाने में सफल हुई है. दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के सफाए के बाद ही आप पार्टी सरकार में आई है.

गोवा में अगर भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही है, तो इसके पीछे आम आदमी पार्टी की राजनीति को ही कांग्रेस जिम्मेदार ठहराती रही है. पिछले साल होने वाले हिमाचल, कर्नाटक और गुजरात के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के विरोध में उम्मीदवार खड़े कर चुकी है. गुजरात में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया था, जिसके चलते ही भाजपा ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में सफल रही थी .

वहीं, आम आदमी पार्टी के सर्वोपरि नेता अरविंद केजरीवाल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ जैसे राज्यों में लगातार दौरा कर कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. जाहिर है राजस्थान में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे सिंधिया की दोस्ती से लेकर मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ आम आदमी पार्टी सालों से अपनी जमीन तैयार कर रही है.

ऐसे में कांग्रेस के साथ आप पार्टी के गठबंधन की सूरत में दोनों पार्टियां अपने हितों को किस हद तक छोड़ने को तैयार होंगी इस पर सवाल उठने लाजमी हैं.दिल्ली और पंजाब समेत कई राज्यों में दोनों दलों के लिए सीट शेयरिंग का फॉर्मुला कैसे तय होगा, इस पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं, क्योंकि 2019 के चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच दिल्ली में एक सीट पर पेंच फंसने के चलते गठबंधन नहीं हो सका था.

पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस की स्थानीय लीडरशिप किसी भी सूरत में केजरीवाल के साथ तालमेल के खिलाफ है. कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित तो दिल्ली सेवा बिल पर भी आम आदमी पार्टी का साथ देने के खिलाफ खड़े थे और अपनी पार्टी को भी दूर रहने की नसीहत दे रहे थे. एक दशक में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पा चुकी आम आदमी पार्टी की ग्रोथ कांग्रेस की जमीन पर ही हुई है. आप पार्टी हरियाणा, उत्तराखंड, गुजरात जैसे राज्यों में भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा सकी है.

इसलिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की स्वभाविक दोस्ती की वजह महज राजनीतिक हो सकती है, लेकिन धरातल पर कामयाब करना कहीं ज्यादा मुश्किल दिखाई पड़ता है. वैसे भी दिल्ली में एक बार आम आदमी पार्टी को समर्थन देने का परिणाम कांग्रेस पिछले दो चुनाव से सीधे तौर पर भुगत रही है. इसलिए दिल्ली प्रदेश के ही नहीं बल्कि पंजाब के भी कांग्रेसी नेताओं के लिए आम आदमी पार्टी के साथ चलने की बात स्वीकार कर लेना आसान नहीं दिखाई पड़ता है.

आम आदमी पार्टी यूनिफॉर्म सिविल कोड और आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों पर कांग्रेस के विपरीत स्टैंड रखने के लिए जानी जाती है. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी का स्टैंड अन्य कई मुद्दों पर भी कांग्रेस के खासा विपरीत रहा है. इनमें विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की दबिश को लेकर भी है, जिसमें आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे के साफ विरोधी नजर आए हैं.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शराब नीति को लेकर कांग्रेस ने जमकर केजरीवाल पर हमला बोला था. एन आर सी और सी ए ए जैसे मुद्दे पर भी आम आदमी पार्टी का स्टैंड कांग्रेस से अलग रहा है. ऐसे में दिल्ली सर्विस बिल पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का समझौता कब तक बना रहेगा इसको लेकर सवाल है. दिल्ली में कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन, अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने को लेकर गंभीर सवाल उठा चुके हैं तो पंजाब में कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा सहित कई नेता खुलकर आम आदमी पार्टी की अलोचना कर रहे हैं.

इस तरह दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच जुबानी जंग जारी है. ऐसे में आने वाले दिनों में ये समझौता दिल्ली और पंजाब सहित अन्य राज्यों में कैसे कारगर होगा ये सवाल बना हुआ है. कांग्रेस और आप पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ना आसान नहीं रहने वाला है. दो परस्पर विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं को एक प्लेटफॉर्म पर लाना दोनों पार्टियों के लिए गंभीर चुनौती रहने वाली है.

कांग्रेस और आप पार्टी मोदी विरोधी मतों को गोलबंद कर पाने में कामयाब होती हैं. ऐसे में एनडीए के लिए कई राज्यों में नुकसानदायक साबित हो सकता है. इसके लिए अर्थमैटिक के साथ-साथ दोनों दलों के लिए कैमिस्ट्री सही करना भी बड़ी चुनौती है.

दिल्ली सर्विस अमेंडमेंट बिल पर चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस को पंडित नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ अंबेडकर की बातों को याद दिलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की होगी, लेकिन कांग्रेस के लिए गठबंधन की मजबूरियों में न फंसकर आम आदमी पार्टी से सावधान रहने की नसीहत के पीछे कई गूढ़ रहस्य छिपे हैं, ये कांग्रेसी भी दबी जुबान में स्वीकार करते हैं. देखना है कि कांग्रेस और आप पार्टी की दोस्ती की मियाद कितने दिनों तक रहती है. 2024 का चुनाव साथ लड़ते हैं या फिर अमित शाह के कहने के मुताबित सोमवार को बाद अलग-अलग राह हो जाएगी?

लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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