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Updated: 07 जुलाई, 2016 05:08 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार गठन के वक्त जब अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ ली थी, तब मीडिया से लेकर संघ परिवार तक जिस एक मंत्री को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हुई वो थीं एचआरडी मिनिस्टर स्मृति इरानी. मंत्री बनने से पहले खुद इरानी को नहीं मालूम था कि प्रधानमंत्री उन्हें कैबिनेट में जगह देंगे और उसमें भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसा मंत्रालय मिलेगा, जिसकी कमान कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक हमेशा देश के दिग्गज नेताओं ने संभाली.

बात चाहे अबुल कलाम आजाद की हो या डॉ. जाकिर हुसैन या फिर बीजेपी के डॉ. मुरली मनोहर जोशी या कांग्रेस के अर्जुन सिंह और कपिल सिब्बल की, स्मृति इरानी के कद पर बीजेपी के भितरखाने से लेकर बौद्धिक वर्ग तक में हलचल मच गई. और विवादों में रही सही कसर उनके डिग्री विवाद ने पूरी कर दी, जिसमें पुराने और नए हलफनामे के हवाले से छनकर अलग-अलग जानकारी बाहर आई तो सवाल उठ गए कि जिस मंत्री ने कभी विश्वविद्यालयीन शिक्षा हासिल ही नहीं की उन्हें एचआरडी मंत्रालय का प्रभार प्रधानमंत्री ने किस सोच के आधार पर दिया था?

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 स्मृति ईरानी के कद पर बीजेपी के भितरखाने से लेकर बौद्धिक वर्ग तक में हलचल मच गई.

मानुषी की संपादक पूर्णिमा मधु किश्वर ने तब ये सवाल सोशल मीडिया से लेकर मीडिया की तमाम सुर्खियों में गरमा दिया था. बाद में कई पत्रकारों ने खुल तौर पर ये सवाल स्मृति इरानी से पूछे तो मामले ने बेहद तूल पकड़ लिया. हलफनामे में शिक्षा के बारे में गलत जानकारी का मुद्दा अदालत के दरवाजे भी पहुंच गया और सत्ता के गलियारों से लेकर विश्वविद्यालयों की कक्षाओं तक ये सवाल मुखर हो गया, कि क्या कोई गैर स्नातक एचआरडी मंत्री नहीं हो सकता?

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स्मृति के बचाव में भी तर्क उठे और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर अनेक दिग्गज नेताओं की शिक्षा का हवाला देकर ये बताने की कोशिश बीजेपी में शुरु हुई कि व्यक्ति का आंकलन उसके काम से होना चाहिए ना कि डिग्रियों से. स्मृति इरानी ने बतौर कलाकार टीवी अभिनेत्री के रूप में देश के घर घर में अपनी पहचान बनाई तो उनके राजनीतिक काम-काज के तरीकों को केंद्रीय मंत्रीमंडल में मौका दिए जाने के सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए कि वो सिर्फ इंटरमीडिएट पास हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब जबकि स्मृति इरानी से एचआरडी मंत्रालय का विभाग वापस ले लिया है तो तमाम पुराने सवाल फिर से सतह पर आ गए हैं. संघ परिवार के भीतर सवाल उठ रहा है कि जब स्मृति इरानी मंत्रालय के काम-काज में पूरे तौर पर आरएसएस की सलाह को अहमियत दे रही थीं और वामपंथी खेमे से भी उन्होंने खुलकर संसद से सड़क तक लड़ाई ली तो फिर उन्हें इस नाजुक मौके पर क्यों मंत्रालय से चलता कर दिया गया? संघ परिवार के सूत्रों का कहना है कि स्मृति इरानी से एचआरडी मंत्रालय वापस लेकर कपड़ा मंत्रालय दिए जाने के बाबत प्रधानमंत्री ने आरएसएस नेतृत्व से भी कोई चर्चा नहीं की. चर्चा के नाम पर सिर्फ संघ नेतृत्व को आखिरी दिन 4 मई की सुबह सूचना दी गई कि एचआरडी मंत्रालय ज्यादा अनुभवी नेता को देने का विचार हो रहा है, और इस बारे में प्रकाश जावड़ेकर, डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय समेत छात्र राजनीति से जुड़े कई चेहरों के नाम खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ओर से सुझाए गए और इस पर संघ परिवार की सहमति लेकर पूरे ऑपरेशन को पीएम ने इस तरह से अंजाम दिया, कि संघ परिवार को नाराजगी जाहिर करने का मौका ना मिले और स्मृति इरानी का सम्मान भी बना रहे.

सूत्रों के मुताबिक, खुद आरएसएस के सरकार्यवाह भैय्या जी जोशी और भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय नेता अनिरुद्ध देशपांडे ने स्मृति इरानी के साथ 29 जुलाई को झंडेवालान संघ मुख्यालय में शिक्षा नीति को लेकर तीन घंटे तक गहरी बातचीत की. सूत्रों का दावा है कि स्मृति इरानी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक मान्यता को खत्म किए जाने के मामले में भी आरएसएस की राय के मुताबिक तेजी से काम किया और कैबिनेट फेरबदल के महज चार दिन पहले ही 30 जून-1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सरकार के हलफनामे को जमा किए जाने का रास्ता साफ किया.

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संघ परिवार के अंदुरुनी जानकार कहते हैं कि स्मृति इरानी की शैक्षणिक योग्यता की कमी को इरानी ने अपनी कार्यकुशलता और मंत्रालय में लिए जाने वाले त्वरित फैसलों के जरिए दूर करने का जोखिम उठाया था. तेजी से काम करने में वो कई बार बीजेपी के कद्दावर नेताओं के आंख की किरकिरी भी बन गईं, इरानी को जब बीजेपी आलाकमान ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखाया तभी संकेत मिल गया था कि उनकी कार्यशैली पार्टी आलाकमान को रास नहीं आ रही है, लेकिन स्मृति इरानी ने बेलौस अंदाज में अपनी कार्यशैली में बहुत ज्यादा लचीलेपन और बदलाव का संकेत इसलिए भी नहीं दिया क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ परिवार के साथ हरकदम हर काम पूछकर करने की अपनी कार्यशैली का पूरा इत्मिनान था. जाहिर तौर पर वो पीएम और आरएसएस के भरोसे सरकार में मजबूती से तेज कदम आगे बढ़ाने में जुट गईं लेकिन संगठन से जुड़े बीजेपी के कद्दावर नेताओं के साथ उनका तालमेल उतनी ही ज्यादा अड़ंगियों का शिकार होता चला गया.

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 स्मृति ईरानी से जुड़े थे कई विवाद

यही वजह है कि एक ओर स्मृति इरानी हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला मामले में विरोधियों के निशाने पर आईं तो जेएनयू मामले में भी उनके खिलाफ वामपंथी संगठनों ने हमले तेज किए. हालांकि इन मौकों को इरानी ने बेहद कुशलता से संघ परिवार में अपनी ताकत बढ़ाने के तौर पर इस्तेमाल करने में गुरेज नहीं किया. संसद में वो मायावती से भिड़ गईं तो अपने जोरदार भाषण से पीएम समेत बीजेपी के वरिष्ठ सांसद और सोशल मीडिया पर पूरा संघ और बीजेपी समर्थक तबका उनका मुरीद बन गया. संघ से जुड़े प्रमुख अकादमिक विद्वानों और विशेषज्ञों को भी स्मृति इरानी ने खुलकर एचआरडी मंत्रालय के तमाम अहम ओहदों पर लगाया तो तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के प्रमुख पदों पर भी आरएसएस से जुड़े काबिल लोगों का नाम आगे बढ़ाने में वो मुस्तैद नजर आईं. बात चाहे एनबीटी, आईसीएचआर, बीएचयू की रही हो, वो हर उस नाम के पीछे पूरी शिद्दत से खड़ी हुईं जिस पर संघ परिवार ने मुहर लगाई, हालांकि इस दौरान किसी नियुक्ति की अर्हता और योग्यता में उन्होंने कोई समझौता भी नहीं किया.

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साफ है कि संघ परिवार की सलाह के जरिए अपनी बुनियाद स्मृति इरानी ने मजबूती से तैयार की, बावजूद इसके उनका पत्ता एचआरडी मंत्रालय से साफ हो गया तो मुद्दे और भी उठ गए जिन्हें लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय और बीजेपी आलाकमान बेहद सतर्कता से हर चीज पर निगाह रखे था. मसलन-स्मृति इरानी का डिग्री विवाद अदालत में लंबित होना, वरिष्ठ बीजेपी नेताओं समेत कैबिनेट में वरिष्ठ नेताओं के साथ स्मृति इरानी के तालमेल में कमी, सोशल मीडिया पर विपक्षी नेताओं के साथ छोटी छोटी बातों पर स्मृति की बढ़ती कहासुनी, पीएम मोदी पर अनावश्यक संदर्भों में स्मृति इरानी को संरक्षण देने से जुड़े आरोप और सबसे अहम उच्च शिक्षा से जुड़े राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में मंत्री की शैक्षणिक योग्यता को लेकर उठते सवालों के दौर का लगातार कायम रहना.

यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने संकेतों में साफ कर दिया कि स्मृति को एचआरडी से विदा कर ऐसे काम में लगाना ही उपयुक्त होगा जहां वो अपनी कला-हुनर से सरकार का कारोबार बुलंदियों पर ले जा सकें, और धीरे-धीरे उन विवादों को हमेशा के लिए विराम दे दिया जाए, जो भितरखाने सरकार और संगठन के लिए परेशानी का सबब बन गए थे.

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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