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Updated: 15 सितम्बर, 2016 01:50 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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दिल्ली में चिकनगुनिया-डेंगू और मलेरिया तेजी से फैल रहा है. दिल्ली में पहली बार चिकनगुनिया के 1000 से ज्यादा मामले सामने आए हैं. जब इन बीमारियों से लोग मरने लगे तो वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने ट्वीट किया- 'पांच साल में मलेरिया से पहली मौत, चिकनगुनिया से पहली मौत... जबकि दिल्ली सरकार इस खतरे से सुरक्षित बाहर है पंजाब, गोवा और गुजरात जीतने के लिए.'

यह बिलकुल ही तर्क संगत एवं तथ्यों पर आधारित सवाल था. केजरीवाल पंजाब में पार्टी के प्रचार में व्यस्त थे. मनीष सिसोदिया फ़िनलैंड में हैं. गोपाल राय छत्तीसगढ़ में हैं. इमरान हुसैन हज पे गए हुए हैं. सत्येंद्र जैन, जो की स्वास्थ्य मंत्री हैं, गोवा में थे. पर शेखर गुप्ता के सवाल से केजरीवाल बिफर गए. शायद उनके पास कोई जवाब नहीं था और उन्होंने सीधा आरोप मढ़ा और हमला बोल दिया.

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  पूरे मीडिया को एक ही तराजू से तोलना, जनतंत्र के चौथे स्तम्भ के साथ अन्याय है

उन्होंने ट्वीट करके कहा- 'राजनीति करनी है, खुलकर सामने आओ. पहले कांग्रेस की दलाली करते थे, अब मोदी की? ऐसे लोगों ने पत्रकारिता को गंदा किया.' जबाब का भाव ये था की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे सवाल पूछने की? तुम हो कौन? साथ ही साथ उन्होंने शेखर गुप्ता को दलाली का सर्टिफिकेट भी दे दिया.

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जब इंडिया टुडे ग्रुप के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल ने एक ट्वीट कर के कहा कि- 'लगता है कि आप ने निर्णय कर लिया है कि दिल्ली चलाना उनकी जिम्मवारी नहीं है. वे लोग अन्य राज्यों में चुनाव जीतने में ध्यान लगाएंगे.' इसे भी केजरीवाल ने अपनी शान में गुस्ताखी समझा और कहा- 'आपकी चिंता दिल्ली नहीं है, बल्कि ये है की हम अन्य राज्यों में जीत रहे हैं.' दोनों जबाबों का भावार्थ ये था की मैं जबाब नहीं दूंगा. और तुम जो चाहे कर लो. कुछ दिनों पहले केजरीवल ने राहुल कंवल को मोदी का प्रवक्ता बता दिया था.

4 अप्रैल 2012 को अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर छापकर दावा किया था कि सरकार की बिना इजाजत के सेना की दो टुकड़ियां दिल्ली की तरफ बढ़ रहीं थी एवं सरकार चिंता में पड़ गई थी. उस समय सेना प्रमुख वी के सिंह थे, और यही शेखर गुप्ता इंडियन एक्सप्रेस के संपादक थे. इस खबर से बौखलाए वी के सिंह ने शेखर गुप्ता को Preestitude कह कर भारतीय राजनीति के शब्दावली में एक नए शब्द को जोड़ा. बाद में वी के सिंह भाजपा में शामिल हो गए एवं मंत्री भी बन गए. अभी भी वो इस शब्द का तब धडल्ले से इस्तेमाल करते हैं जब कोई भी खबर उनको परेशानी में डाल देती है. अब अगर कोई भी पत्रकार या मीडिया हाउस कोई भी खबर भाजपा, इसके नेताओं, सरकार या मंत्रियों के खिलाफ करता है तो तुरंत उसको Presstitute की उपाधि से नवाजा जाता है.

2014 में तब के केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को 'कुचलने' की धमकी देते हुए मीडिया के एक वर्ग पर आरोप लगाया कि यह कांग्रेस पार्टी के खिलाफ दुष्प्रचार करके उसे अनावश्यक रूप से भड़का रहा है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर इस तरह की रिपोर्टिंग तत्काल बंद नहीं की गई तो ऐसे मीडिया हाउसेज को तबाह कर दिया जाएगा.

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आज अगर कोई पत्रकार किसी मंत्री से कोई कठोर सवाल पूछता है तो उसको तुरंत दलाल, Presstitute, पेड मीडिया, मोदी का एजेंट, कांग्रेस का एजेंट और ना जाने क्या क्या कहा जाता है. कुछ पत्रकार या मीडिया हाउस अपवाद हो सकते हैं पर पूरे मीडिया को एक ही तराजू से तोलना, जनतंत्र के चौथे स्तम्भ के साथ अन्याय है.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भले ही बोलें की 'सरकारों की, सरकार के काम-काज का, कठोर से कठोर एनालिसिस होना चाहिए, क्रिटिसिज्म होना चाहिए. वरना लोकतंत्र चल ही नहीं सकता है'. पर ना तो उनकी पार्टी ना ही उनकी सरकार इसका पालन कर रही है. अगर सरकार पर कोई गंभीर आरोप लगाते तो आपको एंटी नेशनल, गद्दार, सेक्युलर और इसी तरह की उपाधि दी जाती है. गैर भाजपाई दल भी ऐसा ही बर्ताव कर रहे हैं. लगभग हर राजीनीतिक दल का इस तरह का व्यवहार ये दिखाता है की मीडिया अपना काम कर रही है. इसका काम है समाजिक, राजनितिक एवं अन्य कुव्यवस्थाओं को उजागर करना. और अगर ये प्रहरी जगा हुआ है, तो जिनके हितों का नुकसान होगा वो मीडिया को भला बुरा बोलेंगे ही.

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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