New

होम -> सियासत

 |  2-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 06 जून, 2015 04:29 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा की कामयाबी ममता बनर्जी के मूड पर निर्भर है? काफी हद तक, ट्रैक रिकॉर्ड तो यही इशारा करते हैं. हालांकि, इस बार कई बातें तब से अलग हैं.

भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा विवाद को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता होने वाला है. संसद ने जहां इसकी मंजूरी दे दी है वहीं बांग्लादेश ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है.

41 साल बाद...

ढाका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस समझौते पर हस्ताक्षर करते ही 41 साल से लटका ये मामला खत्म हो जाएगा. बांग्लादेश बनने के बाद 1974 में विवाद सुलझाने के लिए समझौता हुआ था, लेकिन भारत को 40 वर्ग किमी जमीन का नुकसान हो रहा था. लिहाजा, समझौता लागू न हो सका.

बात सितंबर 2011 की है जब ममता बनर्जी ने तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ढाका जाने से मना कर दिया था. उस वक्त मनमोहन की यात्रा की उपलब्धि ये रही कि बरसों पुराना ‘तीन बीघा गलियारा’ का मामला सुलझा लिया गया था, लेकिन तीस्ता समझौता लटक गया.

खैर, इस बार ममता मान गई हैं. असल में केंद्र सरकार ने भी फिलहाल तीस्ता नदी विवाद की बात टाल दी है. हालांकि, बांग्लादेश को उम्मीद है कि मोदी के दौरे में इस मसले पर भी कुछ न कुछ बात जरूर होगी - क्योंकि बांग्लादेश तीस्ता जल बंटवारे पर समझौते का बेसब्री से इंतजार कर रहा है.

किसे और क्या फायदा होगा?

इस सीमा विवाद में फंसे करीब 51 हजार लोगों के पास अब तक कोई नागरिकता नहीं थी, लेकिन अब उन्हें अपना देश चुनने का मौका मिल रहा है. फिलहाल 111 भारतीय एनक्लेव बांग्लादेश की सीमा के भीतर हैं, जबकि 51 बांग्लादेशी एनक्लेव भारत की सीमा के भीतर हैं.

जुलाई 2011 की जनगणना के मुताबिक, बांग्लादेश में पड़ने वाले भारतीय एनक्लेव में 37,334 लोग रहते थे. इसी तरह भारत में मौजूद बांग्लादेशी एनक्लेव में 14,215 लोग थे. साल 2007 में एनक्लेव में रहने वालों से जब पूछा गया कि वो कहां बसना पसंद करेंगे? ज्यादातर लोगों जवाब यही था कि वे अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे. दो साल पहले हुए एक सर्वे से मालूम हुआ कि बांग्लादेश में भारतीय भूखंडों में रहने वाले करीब 37 हजार में से कुल 743 लोग ही भारत लौटना चाहते थे जबकि भारत में बांग्लादेशी भूखंडों में से कोई भी सीमा पार नहीं जाना चाहता.

वैसे समझौते की नींव तो कांग्रेस के शासन में ही पड़ी थी. तब इस मसले पर पहले विपक्ष में बैठी बीजेपी का स्टैंड अलग था. सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने कूटनीति और घरेलू राजनीति को अलग रख इतना तो कर ही दिया कि इन 51 हजार लोगों के अब अच्छे दिन आने वाले हैं. बीजेपी का पॉजिटिव यू-टर्न अच्छा है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय