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Updated: 03 जून, 2015 10:47 AM
पीयूष श्रीवास्तव
पीयूष श्रीवास्तव
 
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कोई उन्हें पसंद करे या न करे, लेकिन समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता मुलायम सिंह यादव एक माने हुए राजनीतिज्ञ हैं. शायद यही वजह है कि पिछले सप्ताह मथुरा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में सपा सरकार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा.

मोदी की चुप्पी से पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में आगामी 2017 के विधान सभा चुनाव के लिए सपा के साथ गठबंधन पर विचार कर सकती है. दो पार्टियों की शक्ल में इसे एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जाएगा क्योंकि यह दोनों पार्टियां पिछले साल लोकसभा चुनाव में कड़े प्रतिद्वंदियों के रूप में देखी गई थी. मुलायम सिंह यादव ने उस वक्त पीएम मोदी को गुजरात दंगों के दौरान मुस्लिम महिलाओं पर हमले के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया था.

मुलायम पर प्रधानमंत्री की चुप्पी इशारा करती है कि अपने सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मनों को दोस्त बनाना सपा नेताओं की पुरानी आदत रही है. 2014 में सपा को एक बड़ा झटका लगा, लोकसभा में केवल पांच सीटे मिलने के बाद मुलायम ने रातों को जागकर मोदी से संबंध सुधारने की कवायद की. यहां तक कि इसी साल फरवरी में सपा प्रमुख ने मोदी को अपने पोत्र और मैनपुरी के सांसद तेज प्रताप यादव और आरजेडी प्रमुख लालू यादव की पुत्री राजलक्ष्मी की सगाई में सैफई, इटावा आमंत्रित किया था. उसके बाद पीएम ने दिल्ली में उनके विवाह समारोह में भी शिरकत थी.  

केंद्र के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाने के मकसद से ही सपा प्रमुख ने पिछले गुरुवार को राज्यपाल राम नाईक से मुलाकात कर "गुप्त विचार विमर्श" किया था. जो लोग मुलायम और सपा को जानते हैं कि वो सत्ता के लिए उनकी जरूरत को समझते हैं. हालांकि उन्होंने उत्तर प्रदेश को सुरक्षित कर लिया है, अब वह साफ तौर पर केंद्र में अपने लिए एक बड़ी भूमिका चाहते हैं. मुलायम के मन पर बोझ की एक वजह अखिलेश यादव सरकार के प्रति जनता का असंतोष भी हो सकता है.

हालांकि राज्य सरकार को तत्काल कोई संकट नहीं है. इस सरकार के पास अभी भी 20 माह से अधिक महीनों का वक्त है. मुलायम जानते हैं कि 2017 में दोबारा सत्ता हासिल करना मुश्किल होगा. राज्य की खराब कानून व्यवस्था और विकास के अधूरे वादों ने पार्टी को बुरी तरह से चोट पहुंचाई है.

सपा प्रमुख भी पीएम मोदी के राजनीतिक भविष्य को देख रहे हैं. मोदी के प्रभावशाली पहले साल ने चार साल बाद उनकी सत्ता में वापसी की संभावना को बढ़ा दिया है. अगर ऐसा है तो यूपीए का हिस्सा रहे मुलायम 2019 में भविष्य की राजग सरकार का हिस्सा बनने का सपना देख सकते हैं.

सत्ता में बने रहने के लिए मुलायम की जरूरत के बारे में उनके पार्टीजन ही पुष्टि कर रहे हैं. एक वरिष्ठ सपा नेता का कहना है कि "मुलायम इस बात में विश्वास रखते हैं कि अगर आप सत्ता में नहीं हैं तो आपका राजनीति में होना समय की बर्बादी है. इसी लिए वह धीरे-धीरे मोदी से निकटता बढ़ाने के लिए अपना धर्मनिरपेक्ष रुख बदल रहे हैं."

अपने धर्मनिरपेक्ष रुख से सपा प्रमुख के यू-टर्न की एक और वजह भी है. विश्लेषकों का कहना है मौजूदा हालात में पार्टी की पकड़ अपने पारंपरिक मतदाताओं पर ढीली हो रही है इसलिए मुलायम को सत्ता में बने रहने के लिए अन्य दलों को इस्तेमाल करने की जरूरत है.

ऐसा लगता है कि सपा प्रमुख को सुझाव दिया गया है कि मोदी के साथ गठबंधन करके सपा प्रमुख के पास सब है, लेकिन राज्य में उन्हें मिल रहा मुस्लिम वोट छोड़ दिया गया है. और इस बारे में सोचना उनके लिए अच्छा कारण हो सकता है. सपा सरकार न केवल मुस्लिम युवाओं के लिए रोजगार का वादा निभाने में नाकाम रही है बल्कि आतंकवादी गतिविधियों में कथित भूमिका के लिए जेलों में बंद लोगों के लिए भी कुछ खास नहीं किया. उनमें से कई पर झूठे आरोप लगाए गए थे.

सपा के तीन साल के शासन के दौरान 180 से ज्यादा दंगे हुए. मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों की एक बड़ी संख्या अभी भी सरकारी सहायता के लिए इंतजार कर रही है. हकीकत में मौलाना कल्बे जव्वाद और जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता मुलायम के खिलाफ एक "जंग" का ऐलान कर चुके हैं. उन्होंने राज्य में मुसलमानों की दुर्दशा के लिए मुलायम को जिम्मेदार ठहराया है.

मुस्लिम वोटों की अनदेखी कर मुलायम एक बड़ा जोखिम ले रहे हैं. राज्य की 403 में से 165 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मुसलमान निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. हालांकि भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी के साथ टाई-अप से पता चलता है कि वर्तमान में सपा अध्यक्ष मानते हैं कि उन्हें और उनकी पार्टी को 2017 और 2019 के चुनाव में भी मोदी मैजिक दिखाई देगा.

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लेखक

पीयूष श्रीवास्तव पीयूष श्रीवास्तव

लेखक लखनऊ में मेल टुडे के संवाददाता हैं.

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