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Updated: 05 अगस्त, 2017 03:46 PM
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राहुल गांधी पर हमले की कड़ी निंदा होनी चाहिये. राहुल गांधी का क्या किसी भी व्यक्ति या नेता पर इस तरह के हमले घोर निंदनीय हैं. लोकतंत्र में हर किसी को इतनी आजादी होती है कि किसी दूसरे की आजादी में खलल न पड़े. फिर किसी को इस स्तर पर उतरने की जरूरत क्यों पड़ रही है?

काले झंडे दिखाना, नारेबाजी करना या विरोध के ऐसे दूसरे अहिंसक तरीके तो ठीक हैं, लेकिन पत्थर फेंकने की इजाजत तो किसी को नहीं दी जा सकती. कुछ बीजेपी नेताओं ने जिस तरह इसे फोटो खिंचाने की ललक करार दिया है वो भी गलत है. बीजेपी नेताओं की इस तरह की बयानबाजी ऐसी हरकत करने वालों की हौसलाअफजाई करेंगी जिसके नतीजे खराब ही होंगे, ये भी तय है.

ऐसा क्यों लगता है

कांग्रेस नेताओं का ये कहना कि राहुल गांधी पर गुजरात में हुआ हमला जानलेवा हो सकता था, बिलकुल सही है. कांग्रेस नेताओं का ये भी कहना कि ये हमला किसी सोची समझी साजिश का हिस्सा हो सकता है, इस पर भी गौर करना चाहिये और जांच होनी चाहिये.

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के शक पर शक की गुंजाइश नहीं है, ''जिस बोल्डर से हमला किया गया है वह सीमेंट और पत्थर से बना था, जो वहां कहीं और से लाया गया था. राहुल गांधी को निशाना बनाकर पत्थर फेंके गये हैं.''

rahul gandhiहर बात में मोदी-मोदी...

मीडिया से बातचीत में राहुल गांधी ने इल्जाम लगाया कि बनासकांठा में उन पर हुए हमले में बीजेपी का हाथ है. राहुल गांधी हमलावर को बीजेपी कार्यकर्ता बता रहे हैं और हमले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी की राजनीति का तरीका बताया. राहुल गांधी का कहना है, ''मोदी जी और बीजेपी-आरएसएस का राजनीति का तरीका है. क्या कह सकते हैं?''

सवाल ये है कि राहुल गांधी इतने यकीन के साथ ये कैसे कह सकते हैं? आखिर राहुल गांधी को ऐसा क्यों लगता है कि उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंकने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का हाथ हो सकता है?

क्या इस हमले के पीछे कांग्रेस छोड़ चुके शंकर सिंह वाघेला का हाथ नहीं हो सकता? क्या इसके पीछे हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले विधायकों का हाथ नहीं हो सकता? चाहे वाघेला हों या फिर पार्टी छोड़ चुके नेता सभी खड़े तो दीवार के पार ही हैं. आखिर वे भी तो उनके प्रति वैसी ही भावना रखते होंगे जैसे राहुल गांधी के बाकी विरोधी या फिर कोई बीजेपी नेता.

फिर गाड़ी पर पत्थर फेंके जाने के पीछे मोदी को जिम्मेदार बताने की इतनी जल्दबाजी क्यों? मान लेते हैं पत्थर फेंकने वाला बीजेपी का कोई कार्यकर्ता ही है, तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करायी जाती. जांच होती, मालूम हो जाता कि किसके कहने पर उसने ऐसा किया. वैसे अभी तक पुलिस की ओर से ऐसी कोई जानकारी सामने भी नहीं आई है.

ये ठीक है कि राहुल गांधी उस पोजीशन को मेंटेन करते हैं जहां से प्रधानमंत्री पद पर उनकी दावेदारी बनती है. प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट करते वक्त राहुल गांधी सूट बूट की सरकार और फेयर एंड लवली स्कीम कहा करते रहे, राजनीति में इतना तो चलता है, लेकिन गाड़ी पर पत्थर फेंकने के लिए मोदी को जिम्मेदार बताना भी तो वैसे ही है जैसे किसी दारोगा की गलती के लिए प्रधानमंत्री को दोषी बताना. है कि नहीं?

चिंताजनक बातें और भी हैं

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल भी अक्सर इस तरह की बातें करते रहते हैं. केजरीवाल भी कह चुके हैं कि मोदी उनकी हत्या कराना चाहते हैं. इतना ही नहीं केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी को कायर और मनोरोगी भी बता चुके हैं. सर्जिकल स्ट्राइक पर भी केजरीवाल और राहुल गांधी दोनों का स्टैंड तकरीबन एक जैसा ही रहा. केजरीवाल सबूत मांग रहे थे तो राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर खून की दलाली का आरोप लगा रहे थे. ऐसी बातें मीडिया में सुर्खियां तो बन जाती हैं, ऐसी बातें चर्चा से दूर न होने देने में मददगार भी होती हैं, लेकिन इससे ज्यादा हासिल क्या होता है? एक तरफ केजरीवाल इस तरह की बयानबाजी में व्यस्त रहे, दूसरी तरह उनकी आम आदमी पार्टी लगातार हारती चली गयी. गोवा, पंजाब, राजौरी गार्डन और एमसीडी चुनाव के बाद अब दिल्ली में बवाना की सीट भी दाव पर लगी है.

एक दौर रहा जब हर छोटी बड़ी घटनाओं के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ बता दिया जाता रहा. ठीक वैसे ही हर छोटी मोटी बात के लिए मोदी को जिम्मेदार बताने का फैशन सा चल पड़ा है. बात बात पर मोदी पर ठीकरा फोड़ कर राहुल गांधी को क्या मिलेगा? कभी कहते हैं कोई उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता. फिर कहते हैं बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा. फिर खुद ही जाकर मिल भी आते हैं. फिर जो बोलते हैं उस पर भूकंप तो नहीं लोगों को हंसी जरूर आती है.

ये टाइमपास पॉलिटिक्स है और इससे किसी का भला नहीं होने वाला - न कांग्रेस पार्टी का, न विपक्ष का और न ही खुद राहुल गांधी का. बेहतर होता राहुल गांधी असल चुनौतियों को समझते और उन ध्यान देते. सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता होने के नाते विपक्ष की आवाज को बुलंद करने की जिम्मेदारी भी राहुल गांधी पर है. मौजूदा दौर में जिस तरह की राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं उसमें कांग्रेस को काफी सोच समझ कर अपनी भूमिका तय करना जरूरी है.

अगर राहुल गांधी ये सोचते हैं कि सिर्फ बयानबाजी से सत्ताधारी बीजेपी के कांग्रेस मुक्त अभियान को काउंटर कर सकते हैं तो इस गलतफहमी से जल्दी निकलना होगा. बीजेपी के स्वर्णिम काल की अमित शाह की मंजिल से पहले ही अमेरिकी थिंक टैंक घोषित कर दे रहा है कि वो दौर आ चुका है. वक्त की नजाकत को देखते हुए नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ बीजेपी से हाथ मिला लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस डूबती जहाज है. जीएसटी के जश्न और राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता का जैसा बिखराव देखने को मिला है कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए बड़ी चिंता की बात होनी चाहिये.

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