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Updated: 02 मार्च, 2017 02:01 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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यह कैसा दुर्भाग्य है कि बात को समझे बिना 'पाकिस्तान' नाम सुनते ही, उसे बोलने वाले पर आप तत्काल 'देशद्रोही' का टैग लगा देते हैं? क्या है देशभक्ति?

* किसी शहीद के निधन पर दो फूल चढ़ा एक सेल्फी खिंचा लेना? उसके बाद उसके घर जाकर कभी न पूछना कि उसके परिवार का क्या हुआ?

* उसके माता-पिता किस हाल में हैं? उसकी विधवा पत्नी घर कैसे चला रही है? कितने चक्कर काट रही है?

* हां, आप गर्व महसूस करते हैं कि उसने अपने देश के लिए जान दी लेकिन उस फौजी की आत्मा यह सोच कितना तड़पती और बिलखती होगी कि उसने 'किन जैसों के लिए' अपना जीवन बलिदान कर दिया! उन जैसों के लिये जो उसकी बेटी के बहते आंसुओं और शब्दों में उसके अनाथ होने का दर्द नहीं देख पाते! जो उसके ज़ख्म पर मरहम रखने की बजाय उसका 'रेप' करने की धमकी दे डालते हैं. क्योंकि वह युद्ध का समर्थन नहीं करती. क्योंकि इस युद्ध ने ही उसे उसके पिता से जुदा कर दिया. वाह, क्या ईनाम मिला है एक शहीद को अपनी जान गंवाने का.

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क्‍या मिला है युद्ध से?

आपको 'पाकिस्तान' नाम सुनाई दिया पर वह भाव नहीं जो युद्ध को गलत ठहराता है? आखिर क्या मिला है युद्ध से कभी? और क्या मिल सकता है आगे? मुद्दे तो अब तक जस-के-तस हैं. तो फिर क्यों सही है युद्ध? क्या आप इसे इसलिए सही ठहराते हैं-

* क्योंकि आपकी पिछली सात पीढ़ियों में से कोई भी आर्मी में जाने की हिम्मत न जुटा पाया?

* क्योंकि आप अपने आलीशान घरों में पलंग पर बैठ, टीवी देख 'ओह्ह' बोलकर अपनी देशभक्ति का नमूना दे पुनः बर्गर खाने में व्यस्त हो सकते हैं.वाह री ढोंगी संवेदनाएं!! जो किसी अपने को खो देने का दर्द तक महसूस नहीं कर सकतीं. पर हैं आप देशभक्त!!

देशभक्ति दिखानी है?

* देशभक्ति दिखानी है तो 'रेपिस्ट' को तत्काल फांसी देने का कानून कागजों के बाहर लागू करवा के दिखाओ.

* तुम्हारी रगों में उस वक्त देशभक्ति का लहू क्यों नहीं थरथराता जब स्त्रियों और छोटी बच्चियों को तुम जैसों की गन्दी निगाहें रोज नोच खाती हैं? जिन्हें अकेला देखते ही तुम्हारे 'हॉर्मोन्स' में उबाल आने लगता है. तुम ये कैसे भूल जाते हो कि तुम्हारे अपने घर में भी उसी समय तुम्हारी पत्नी या बेटी अकेली है?

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'रेप' की धमकी देना या 'रेप' कर देना किसी को चुप कराने का सबसे कारगर उपाय बन चुका है क्योंकि न तो बलात्कारी को कोई सजा होती है और न ही धमकी देने वालों को. क्या ये 'देशभक्त' की श्रेणी में आते हैं???

नहीं न! तो फिर इनके खिलफ कोई भी राजनीतिक दल आवाज बुलंद क्यों नहीं करता? इस विषय पर कभी गंभीरता से क्यों नहीं सोचता? क्यों अब तक कोई कुछ न कर सका है? सत्ताधारी दल के हाथ इतने दशकों से क्यों बंधे हुए हैं? क्या सचमुच इतना मुश्किल है, किसी रेपिस्ट को फांसी देना? कहीं हर पार्टी को स्वयं के वीरान होने का डर तो नहीं सताता? इनके कारनामे तो जगज़ाहिर हो ही चुके हैं.

प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भी गिने-चुने लोग ही इस मुद्दे पर बात करते हैं. बाक़ी के मुंह क्यों सिल जाते हैं? इस विषय पर इनका जोश ठंडा कैसे पड़ जाता है? ज़ाहिर है चाहे नेता हो या खुद को नामी बताने वाले तथाकथित उच्चकोटि के पत्रकार, या किसी भी क्षेत्र से जुड़े नामी लोग. इनमें से 'कई' ऐसे हैं जो किसी-न-किसी तरह से स्त्रियों का शारीरिक शोषण करते आये हैं. हां, सरेआम उन्हें 'देवी' कहने से ये कभी नहीं चूकते होंगे. जो जितना ढोंग करे वो उतना ही मैला है यहां!

बधाई हो!

* बधाई हो! किसी ने अपने शब्द वापिस ले लिए!

* बधाई हो! कोई लड़की 'रेप' से डर गई.

* बधाई हो! तुम्हें सच्चे देशभक्तों का समर्थन मिला है. अब जाओ, और अपने विचारों पर अमल की शुरुआत अपने ही घर से करना. आखिर घरवालों को भी तो तुम्हारी देशभक्ति पर गर्व हो!

* बधाई हो! तुम्हारे घर से कोई सेना में नहीं!

* बधाई हो! तुम्हें उन नेताओं का समर्थन है जिन्हें जनता ने अपना हमदर्द समझकर चुना है.

* बधाई हो! तुम्हें उस क्रिकेटर का भी समर्थन मिला है जिसके लिए हमने लाखों तालियां पीटी हैं.

* बधाई हो! तुम्हारी जीत हुई!

* बधाई हो! तुमने सच को आज भी बर्दाश्त नहीं किया.

* बधाई हो तुम्हारी घृणित और गिद्ध निगाहें धर्म और देह के अतिरिक्त और कुछ देख ही नहीं पातीं.

* बधाई हो! तुमने वही सुना जो सुनना चाहते थे. देखना, अब जब भी किसी शहीद की मृत्यु पर टीवी कैमरा ऑन होंगे और आंसू छलकाते उसके  माता-पिता ये कहते मिलेंगे कि वो अपने दूसरे बेटे को भी आर्मी में ही भेजेंगे. तो फिर से तुम्हारा एक सेंटीमीटर का सीना सवा सेंटीमीटर का तो जरूर हो जाएगा. लेकिन तुम उन बूढ़ी आंखों में अब ये नया पैदा हुआ 'भय' नहीं देख पाओगे कि कहीं तुम लाश पे बिलखती उस सैनिक की विधवा और उसकी अनाथ बेटी के साथ......!

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चीरहरण करने वाले इन दुशासनों के बीच रहते हुए ऐसे न जाने कितने परिवार, कब ख़त्म हो जाते हैं, कब उस घर की महिलाओं की अस्मत के साथ खिलवाड़ होता है, कब उन्हें चाकू से गोदकर उनकी लाश वहीं सड़ते रहने को छोड़ दी जाती है, इसकी फ़िक्र करने वाला कोई नहीं. इस तरह के 'हादसों' की कहीं कवर स्टोरी नहीं बनती!

सभ्यता, संस्कृति और विकास की बातों के बीच इस तरह की घटनाएं मन विचलित कर देती हैं. अवसरवादी संगठनों का देशभक्ति की बीन पर, हर बार की तरह इस मुद्दे पर भी ज़हर उगलने का प्रयास जारी है.

निरंकुश समाज में 'न्याय' अब एक बहुमूल्य शब्द है, बिलकुल कोहिनूर हीरे की तरह! इसे पाने की उम्मीद लिए न जाने कितने जीवन नष्ट हो चुके या मौन कर दिए गए! कोई नहीं जानता। जानने से होगा भी क्या?

संख्या बढ़ती ही रहेगी और हम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों को पलट, कुछ पल शून्य की तरफ निहारते हुए, मौन हो, भारी मन से उस पुस्तक को पुन: जगमगाते कांच की अल्मारी में रख उदासी-उदासी का पुराना खेल खेलेंगे.

आह! 'देशभक्ति' और 'देशद्रोह' की नई परिभाषाएं गढ़ता और उन्हें नित दिन फुटबॉल की तरह उछालता मेरा भारत!'

मेरे सपनों का भारत'..... ऐसा तो कभी न था!

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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