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Updated: 05 जनवरी, 2017 02:10 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
  @reema.parashar.315
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ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बीजेपी भले ही केंद्र या राज्यों में सत्ता तक पहुंच जाए, लेकिन उसकी चाबी संघ यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल के हाथ रहती है. किसे मंत्री बनना है और किसे मुख्यमंत्री, तय नागपुर के ठप्पे से ही होता रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी संघ को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाते.

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 जनता के फीडबैक ने बढ़ाईं संघ की परेशानी

इसकी वजह भी साफ है, बीजेपी को सत्ता सुख दिलवाने में संघ की बड़ी भूमिका रहती है. पार्टी कार्यकर्ताओं से ज़्यादा संघ के स्वयंसेवक उसके पक्ष में ना सिर्फ माहौल बनाते हैं बल्कि लोगों के फीडबैक के आधार पर काम भी करते हैं. जनता के इसी फीडबैक ने फिलहाल संघ की परेशानी बड़ा दी है. और ये चिंता किसी और राज्य नहीं बल्कि गुजरात को लेकर है जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं.

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संघ प्रमुख मोहन भागवत का लगातार गुजरात का दौरा करना इस बात के संकेत देता है कि राज्य में सब कुछ ठीक नहीं है. पिछले तीन महीने में संघ प्रमुख खुद तीन बार मुख्यमंत्री विजय रुपाला से मिलकर राज्य के हालात पर बात कर चुके हैं. यही नहीं भागवत ने लगातार राज्य के आदिवासी बहुल इलाके में जाकर बैठकें भी की हैं और उन्हें बीजेपी के नजदीक लाने का काम शुरू किया है. भागवत के नेतृत्व में संघ ने राज्य के लिए चुनाव से पहले पूरा खाका भी तैयार कर लिया है. आजतक को मिली जानकारी के मुताबिक....

•    संघ के नेता लगातार राज्य का दौरा करेंगे.

•    खुद मोहन भागवत राज्य के मुख्यमंत्री से रिपोर्ट ले रहे हैं. 3 जनवरी को भी विजय रुपाला ने संघ प्रमुख को राज्य में आ रही चुनौतियों की रिपोर्ट दी. सूत्रों के मुताबिक रुपाला ने पटेलों को शांत करने के लिए संघ की मदद मांगी और बताया कि सरकार के लिए फिलहाल ये एक बड़ी चुनौती है.

•    तीन महीने में संघ की तीन बड़ी बैठकें गुजरात में हुईं. बड़ोदा में प्रांत प्रचारकों की बैठक के बाद आज से संघ और बीजेपी की अहम बैठक भी अहमदाबाद में.

•    संघ प्रमुख ने संघ से जुड़े संगठनों किसान और मजदूर संघ की नोटबंदी पर पनपी नाराजगी को दूर करने को कहा और इन संगठनों से कहा कि वो नोटबंदी पर सरकार का साथ दे क्योंकि ये मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ अच्छी पहल है.

•    राज्य में उद्योगपति और छोटे व्यापारियों को नोटबंदी से पैदा हुए संकट के प्रभाव को कम करने के लिए संघ के स्वयंसेवक और संगठन ग्रासरूट तक कैशलेस ट्रांसक्शन की जानकारी दें और योजना के फायदे घर घर पहुंचाएं.

•    आदिवासियों को साथ जोड़ने के लिए कार्यक्रम आयोजित किये जाएं.

•    क्या चुनाव समय से पहले किये जाएं? इसे लेकर जनता का मूड भांपने की कोशिश की जाए कि आखिर जल्द चुनाव से बीजेपी को कितना फायदा या नुक्सान होगा.

•    पाटीदार आंदोलन बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती है. पटेल राज्य में 182 में से लगभग 80 सीटों को प्रभावित करते हैं, इसलिए उन्हें पार्टी की तरफ लाना एक मजबूरी है जिसे समझते हुए जल्द ही फार्मूला तलाशा जाए.

•    ऊना के बाद पनपे हालात को ठीक कर पार्टी के पक्ष में खड़ा करने के लिए पहले ही पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता काम पर लगे हैं. उसे और मजबूती से आगे बढ़ाया जाए.

दरअसल संघ की ये परेशानी बीजेपी को विरोधियों से मिल रही चुनौती से ज्यादा नरेंद्र मोदी के राज्य से जाने को लेकर है. मोदी के राज्य से निकलकर केंद्र में पहुचने के बाद से पार्टी के लिए जो मुश्किलें खड़ी हुईं वो अब तक थमने का नाम नहीं ले रहीं. आनंदीबेन का हटाया जाना और नया मुख्यमंत्री बनाना भी पार्टी में वो करिश्मा नहीं दिखा पाया जिसकी उम्मीद संघ को थी. पटेल और दलित बीजेपी से दूर हुए और आम आदमी पार्टी के राज्य में बढ़ते कदमों ने फिलहाल परेशानी को और बड़ा दिया है.

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इस सबके बीच चर्चा इस बात पर भी है कि आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ कार्यक्रम बनाए जाएं जिससे उनकी लोकप्रियता और गुजराती कार्ड को अपने पक्ष में भुनाया जा सके और इसकी शुरुआत वाइब्रेंट गुजरात को ज्यादा भव्य बनाने से हो सकती है. फिलहाल संघ और बीजेपी की बैठक में भविष्य के इस खाके पर और चर्चा की उम्मीद है. और इंतजार पांच राज्यों में बीजेपी के प्रदर्शन के नतीजो का है जिसका सीधा असर गुजरात पर होगा.

लेखक

रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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