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Updated: 04 अक्टूबर, 2021 12:52 PM
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वरुण गांधी (Varun Gandhi) का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो मोदी कैबिनेट में जिन नेताओं को खूब तवज्जो मिली है, वो कहीं आगे नजर आते हैं. 2019 के आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इंदिरा गांधी से बेहतर बताने के बाद वरुण गांधी ही नहीं, उनकी मां और सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद मेनका गांधी को भी ऐसा तो नहीं ही लगा होगा कि सरकार बन जाने पर मंत्रिमंडल गठन न सही, विस्तार या फेरबदल की स्थिति में भी दोनों में से कोई एक भी कैबिनेट का हिस्सा नहीं होगा.

जुलाई, 2021 में जब मोदी कैबिनेट 2.0 में फेरबदल होनी थी तो संभावितों की सूची में वरुण गांधी का भी नाम उछला था - और उसकी पहली वजह तो यही समझ में आयी थी कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेवर को काबू में रखने के लिए, बीजेपी नेतृत्व के ऐसा करने से इनकार नहीं किया जा सकता.

मोदी-शाह युग के अस्तित्व में आने के बहुत पहले से ही वरुण गांधी की फायर ब्रांड नेता की छवि रही है - और कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि धारण किये योगी आदित्यनाथ ही क्यों - अगर राजनीतिक बयानबाजी ही तरक्की का रास्ता तय करती हो तो वरुण गांधी तो उभर रहे और महत्वपूर्ण बने अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे युवा नेताओं को भी पीछे छोड़ चुके हैं. कोर्ट में जमा दस्तावेजों के मुताबिक वरुण गांधी ने 2009 में पीलीभीत की चुनावी रैलियों में कहा था, "हिंदू पर हाथ उठा या कार्यकर्ता को डराने धमकाने एवं हक छीनने के लिए शिकायत मिलती है तो वरुण गांधी हाथ काट देगा... गले काट देगा. मुस्लिम एक बीमारी है, चुनाव के बाद खत्म हो जाएगी."

अपने बयान के लिए वरुण गांधी को जेल भी जाना पड़ा था, लेकिन मार्च, 2013 में पीलीभीत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अब्दुल कय्यूम ने वरुण गाधी को सभी आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया था. अब इन बातों का कानूनी तौर पर कोई मतलब नहीं रह जाता, लेकिन राजनीतिक तौर पर जब भी ऐसे प्रसंग चर्चा में होंगे, इनका जिक्र जरूर होगा.

किसान आंदोलन बीजेपी के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन चुका है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात के दौरान इस पर चर्चा का अमरिंदर सिंह कैप्टन ने आधिकारिक तौर पर जिक्र किया था, ये बात अलग है कि ऐसी चर्चा पंजाब कांग्रेस (Congress) में हुई उठापटक के बीच हुई थी. जैसे कांग्रेस में होते हुए भी कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी राष्ट्रवादी छवि शुरू से बनाये हुए हैं, वरुण गांधी का बीजेपी की पॉलिटिकल लाइन से काफी अलग बयान आया है - महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को लेकर.

पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने 2 अक्टूबर, 2021 को गांधी जयंती के मौके पर ट्विटर पर चले एक ट्रेंड को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज करायी है, संसद में नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने के बाद दो-दो बार माफी मंगवाने के बावजूद बीजेपी का जो राजनीतिक स्टैंड है उसमें ऐसी बातें अपनेआप मिसफिट हो जाती हैं. यही वजह है कि किसानों के मुद्दे पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखने और किसानों का एक वीडियो शेयर करने के बाद वरुण गांधी के बयान को राजनीतिक रूप से समझना जरूरी हो जाता है - क्योंकि बीजेपी नेता अमित शाह की नजर में महात्मा गांधी तो महज एक 'चतुर बनिया' ही थे और उनकी बातों को ध्यान से समझन की कोशिश करें तो संभवतः 'कांग्रेस मुक्त भारत' की पहली परिकल्पना उस गुजराती संत कहे जाने वाले गांधी की ही रही जो कालांतर में संघ और बीजेपी दूरदर्शी राजनीति का प्रेरणास्रोत बनी है.

गांधी बनाम गोडसे की पॉलिटिक्स

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तो नहीं लेकिन भारतीय राजनीति के मौजूदा दौर में गांधी पर होने वाली हर चर्चा में गोडसे विमर्श एक आवश्यक बुराई (Necessary Evil) के तौर पर जुड़ चुका है और ये तमाम राजनीतिक या वैज्ञानिक सिद्धांतों के बीच पॉप-अप अपवादों से कहीं आगे प्रतीत होता है. सोशल मीडिया पर गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे ट्रेंड होना कोई नयी बात नहीं रह गयी है - ऐसे मौके पर आप में से कोई भी एक छोटा सा एक्सपेरिमेंट करके फटाफट फीडबैक ले सकता है और उसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं, सिर्फ गांधी बनाम गोडसे पर एक लाइन की अपनी राय रख देनी है. वायरल रिएक्शन देखने को मिलेगा.

ऐसे वक्त जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली में राजघाट पहुंच कर महात्मा गांधी की 152वीं जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित किये और कांग्रेस के G-23 नेता कपिल सिब्बल अहमदाबाद में साबरमती आश्रम पहुंच कर मोदी-शाह का नाम लिये बगैर दिल्ली पहुंचे गुजराती नेताओं की गांधी को लेकर कम समझ होने का दावा कर रहे थे - वरुण गांधी ने ट्विटर पर अलग तरीके से अपनी बात रखी - चूंकि ये बात नाथूराम गोडसे से जुड़ी थी और वो बीजेपी की राजनीति को चैलेंज कर रही है, लिहाजा बहस का मुद्दा तो बन ही जाता है.

जब ट्विटर पर सबसे ऊपर #GandhiJayanti टेंड्र कर रहा था ठीक उसके नीचे दूसरे नंबर पर #नाथूराम_गोडसे_जिंदाबाद नजर आ रहा था - और ये बात बीजेपी सांसद वरुण गांधी को बर्दाश्त नहीं हुई.

वरुण गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि भारत हमेशा से आध्यात्मिक सुपरपावर रहा है, लेकिन ये महात्मा ही थे जो हमारे देश की आध्यात्मिकता को आकार दिया और हमें नैतिक अधिकार भी - और ये आज भी हमारी सबसे बड़ी ताकत है.'

वरुण गांधी ने अपने ट्वीट की आखिरी लाइन में तत्व की बात लिखी थी - '...जो लोग गोडसे जिंदाबाद कह रहे हैं वे गैरजिम्मेदार तरीके से देश को शर्मसार कर रहे हैं.'

जब भी वरुण गांधी की तरफ से ऐसा कोई भी बयान आता है उसे मौजूदा बीजेपी नेतृत्व को चैलेंज करने के रूप में देखा जाता है. ये काफी हद तक स्वाभाविक भी है - लेकिन इसके ठीक बाद गांधी परिवार से होने और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ अच्छे रिश्तों की दुहाई देते हुए कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ने के तौर पर देखा जाने लगता है. आधिकारिक तौर पर वरुण गांधी ऐसी खबरों को पूरी तरह खारिज करने के साथ ही, ऐसी खबर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह को अदालत ले जाने की धमकी भी दे चुके हैं. बावजूद इन सबके ये चर्चा यहीं खत्म नहीं हो जाती.

महात्मा गांधी को लेकर संघ और बीजेपी ने अपने स्टैंड में संदेह की स्थिति तो कभी बनने ही नहीं दी, लेकिन बीजेपी नेता अमित शाह ने रायपुर के मेडिकल कॉलेज में बुद्धिजीवियों की एक सभा में तस्वीर काफी हद तक साफ कर दी थी - और बाद में बवाल होने पर भी माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया था. ये संसद में भोपाल से बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के गोडसे को देशभक्त बताने पर हुए बवाल के दो साल पहले की बात है.

बुद्धिजीवियों संवाद के दौरान भी अमित शाह के निशाने पर स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस ही रही और उसे लेकर वो महात्मा गांधी के हवाले से अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे थे. अमित शाह का कहना रहा, "कांग्रेस किसी एक विचार धारा के आधार पर... किसी एक सिद्धांत के आधार पर बनी हुई पार्टी ही नहीं है... वो आजादी प्राप्त करने का एक स्पेशल पर्पज व्हीकल है... आजादी प्राप्त करने का एक साधन... और इसलिए महात्मा गांधी ने दूरदर्शिता के साथ - बहुत चतुर बनिया था वो... उसको मालूम था कि आगे क्या होने वाला है..."

आगे बढ़ें तो, नवंबर, 2019 में लोक सभा में एसपीजी संशोधन बिल पर बहस के दौरान डीएमके नेता ए. राजा ने नाथूराम गोडसे के एक बयान का जिक्र किया जिसमें उसने बताया था कि उसने गांधी को क्यों मारा?

अभी ए. राजा बोल ही रहे थे कि भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर बीच में कूद पड़ीं और बोलीं - आप एक देशभक्त का उदाहरण नहीं दे सकते. फिर तो हंगामा ही मच गया. हंगामा भी इतना कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बयान लोक सभा के रिकॉर्ड से हटा भी दिया गया.

बवाल के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साध्वी प्रज्ञा के बयान पर एक ट्वीट किया और उसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम के पहले आतंकी शब्द का इस्तेमाल किया, 'आतंकी प्रज्ञा ने आतंकी गोडसे को देशभक्त कहती है - भारत के संसदीय इतिहास में ये दुखभरा दिन है.'

ये बहस बाहर हुई होती तो शायद चल भी जाता, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर के संसद के भीतर बोल देने से बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा था और तीन घंटे के अंतराल पर प्रज्ञा ठाकुर को दो-दो बार माफी मांगनी पड़ी थी. अपने माफीनामे में प्रज्ञा ठाकुर का कहना रहा, "...मैंने 27 नवंबर 2019 को एसपीजी बिल पर चर्चा के दौरान नाथूराम गोडसे को देशभक्त नहीं कहा, फिर भी मेरे बयान से किसी को ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमा चाहती हूं."

राहुल गांधी के नये साथी, जिनके कांग्रेस ज्वाइन करने को लेफ्ट से सेंटर की राजनीति में आने के तौर पर लिया जा रहा है, कन्हैया कुमार लाइव टीवी डिबेट या सार्वजनिक मंचों पर बहसों में संघ पृष्ठभूमि के कार्यकर्ताओं या बीजेपी नेताओं को ललकारते रहे हैं - "...गोडसे मुर्दाबाद बोलो!" और फिर फौरन ही कन्हैया कुमार पूछते हैं, जैसे 'हिंदुस्तान जिंदाबाद' है, जैसे 'भारत माता की जय' है - ठीक वैसे ही 'नाथूराम गोडसे मुर्दाबाद' कहने में शर्म क्यों आती है?

किसान आंदोलन की पॉलिटिक्स

नाथूराम गोडसे पर वरुण गांधी के बयान के महत्व बढ़ जाने की एक बड़ी वजह किसान आंदोलन पर उनका एक हालिया बयान भी है. किसानों के मुद्दे उठाने की वजह राजनीतिक तो लाजमी है ही, कृषि आधारित व्यवस्था पर वरुण गांधी का अपना काम भी रहा है. वरुण गांधी ने कविताओं के दो संग्रह के अलावा एक किताब - 'अ रूरल मैनिफेस्टो' भी लिखी है जिसमें वो भारत का भविष्य गांवों में देखते हैं. दावा तो केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी का भी गांवों को लेकर ऐसा ही है, लेकिन जब भी पंचायती राज व्यवस्था की बात होती है, कांग्रेस राजीव गांधी के नाम पर क्रेडिट लेने के साथ दावेदारी पेश कर देती है.

असल में राहुल गांधी जिस पीलीभीत का लोक सभा में प्रतिनिधित्व करते हैं वो गन्ना किसानों का इलाका है और अच्छी खासी आबादी खेती पर ही निर्भर है. ऐसे में किसानों के मामले में मुंह मोड़ लेना वैसे भी खतरनाक हो सकता है - क्या मालूम भविष्य के राजनीतिक समीकरण कैसे हों?

किसानों की समस्याओं को लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखने के साथ ही, वरुण गांधी ने कुछ दिन पहले ही ट्विटर पर एक वीडियो क्लिप शेयर किया था और किसानों को लेकर कहा था - ये अपने ही लोग हैं और हमारा ही खून भी.

वीडियो शेयर करते हुए वरुण गांधी ने लिखा था, 'लाखों किसान मुजफ्फरनगर के प्रदर्शन में इकट्ठा हुए - वे हमारा ही खून और अपने लोग हैं... हमें एक सम्मानजनक तरीके से उनके साथ फिर से संवाद शुरू करना चाहिए... उनका दर्द महसूस कीजिये, उनका नजरिया जानिये - और आम सहमति बनाने के लिए उनके साथ बात कीजिये.'

मुमकिन है वरुण गांधी इसे भी मोदी सरकार को चैलेंज की बजाये सिर्फ किसानों के मुद्दे उठाने के तौर पर पेश करें, लेकिन उनका दर्द समझने के लिए वो किसे सलाह दे रहे हैं? 'हमारा ही खून' बोल कर भले ही वो किसानों से खुद को कनेक्ट कर पेश कर रहे हों, लेकिन किसे समझा रहे हैं कि किसानों का दर्द समझा जाना जरूरी है?

और रही बात बातचीत की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट साथी कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा वे कौन हैं जिनका किसानों से बात करना जरूरी लगता है?

वैसे वरुण गांधी के पास इस मसले पर भी अपनी दलील है, किसानों के पक्ष में बोलने पर सवाल उठने पर अन्ना आंदोलन में अपने शामिल होने की मिसाल देते हैं. वरुण गांधी का कहना है कि देश के तब के 543 सांसदों में वो अकेले नेता रहे जो अन्ना आंदोलन में पहुंच कर साथ में बैठे थे.

वरुण गांधी को हैरानी हो रही है कि अन्ना आंदोलन के दौरान उनसे ये नहीं पूछा गया कि उनकी पार्टी साथ है कि नहीं. फिर कहते हैं, 'मेरा दल भले ही आंदोलन में साथ न रहा हो लेकिन मेरा दिल साथ था.'

किसानों के मुद्दे पर भी वरुण गांधी कि वही दलील है. उनका दल न सही, उनका दिल किसानों के साथ है - और गोडसे बनाम गांधी की बहस में भी वरुण गांधी का अपने स्टैंड के पीछे यही तर्क होगा - लेकिन ये सारे सवालों का जवाब भी तो नहीं है.

2017 में जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस में औपचारिक एंट्री देते हुए महासचिव बनाया गया था तब भी वरुण गांधी चर्चाओं का हिस्सा बने थे. अब जबकि पंजाब को लेकर पूरा गांधी परिवार ही निशाने पर है - थोड़े संकोच के साथ ही, गांधी परिवार की नजर में वरुण गांधी की अहमियत तो बढ़ ही जाती है. कांग्रेस के बाहर से जैसे निडर नेताओं की राहुल गांधी को तलाश है - फिरोज वरुण गांधी तो सबसे फिट लगते हैं, इजहार और इकरार की बात अपनी जगह है और 'मन की बात' अपनी जगह!

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