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Updated: 07 जनवरी, 2020 01:51 PM
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अमेरिका (America) ने ईरान (Iran) के चीफ कमांडर कासिम सुलेमानी (Qassem Soleimani) को मारकर सिर्फ ईरान को ही नहीं, बल्कि बाकी दुनिया को भी झटका दे दिया है. कासिम सुलेमानी के मारे जाने की वजह से ईरान और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है. ईरान बदला लेने के लिए आगबबूला हो रहा है और डोनाल्ड ट्रंप ईरान को नेस्तनाबूत करने को बेताब हैं. तनाव इतना अधिक बढ़ चुका है कि ईरान ने तो अमेरिका को परमाणु हमले तक की धमकी दे दी है. हालांकि, ट्रंप ने भी जवाब में कहा है कि अमेरिका के आधुनिक हथियारों के सामने ईरान टिक नहीं पाएगा. खैर, अमेरिका और ईरान की इस लड़ाई में भारत को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा (Us Iran Relations Impact on India). इधर आने वाले कुछ हफ्तों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) बजट (Budget 2019) पेश करने वाली हैं. उन्हें उम्मीद थी कि इस बार टैक्स और पॉलिसी में कुछ बदलाव कर के अर्थव्यवस्था को एक बार फिर से तेजी देने की कोशिश होगी, लेकिन अमेरिका-ईरान का तनाव और US-Iran war news से सारे किए कराए पर पानी फेरने जैसा हो गया है. आइए जानते हैं भारत को इस तनाव की वजह से क्या-क्या झेलना पड़ेगा:

US-Iran stand-off 5 big loss to indiaझगड़ा अमेरिका और ईरान का है, लेकिन नुकसान भारत को भी झेलना पड़ रहा है.

1- कच्चे तेल का नुकसान

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल कंज्यूमर देश है, जो अपनी 80 फीसदी कच्चे तेल (Crude Oil) की भरपाई आयात (Oil Import)से ही करता है. पिछले कुछ सालों में भारत में कच्चे तेल के प्रोडक्शन काफी कमी आई है, जिससे कच्चे तेल का आयात करना पड़ता है. भारत ने 2018-19 में 207.3 मिलियन टन कच्चा तेल आयात किया है और अप्रैल-नवंबर 2019 के दौरान रोजाना करीब 45 लाख बैरल तेल आयात किया है. भारत की आयात पर निर्भरता पहले की तुलना में बढ़ चुकी है. हालांकि, भारत ने अमेरिका के साथ कच्चे तेल को लेकर समझौता किया है, लेकिन मिडिल ईस्ट की तुलना में यहां से कच्चा तेल लेना भारत को महंगा पड़ता है. भारत ने इराक और सऊदी अरब से भी कच्चा तेल लेना जारी रखा है, लेकिन तेल की ईरान और अमेरिका के बीच तनाव के चलते कच्चे तेल की समुद्र के रास्ते सप्लाई बाधित होगी, जिससे नुकसान उठाना पड़ेगा.

2- गैस की आपूर्ति पर पड़ेगा असर

भारत गैस (LNG) की पूर्ति के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है और करीब 40 फीसदी गैस की पूर्ति आयात से ही होती है. गैस का प्रोडक्शन भी पिछले सालों में घटा है, जिसके चलते गैस की जरूरत को पूरा करने के लिए भारत के लिए आयात मजबूरी बन गया है. वैसे भारत सरकार ने गैस को लेकर अमेरिका से भी समझौता किया है, लेकिन वह मिडिल ईस्ट की तुलना में महंगा है.

3- ट्रेड डेफिसिट बढ़ेगा

केयर रेटिंग के एक आकलन के अनुसार अमेरिका और ईरान के बीच तनाव की वजह से ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) पर असर पड़ा है. वह करीब 3.55 फीसदी बढ़कर 4 जनवरी को 68.60 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है. केयर रेटिंग के अनुसार इसकी कीमत में प्रति डॉलर की बढ़ोत्तरी भारत को सालाना करीब 11,482 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा सकती है. यानी हमारा ट्रेड डेफिसिट (Trade Deficit) बढ़ाने में भी अमेरिका-ईरान का तनाव अहम रोल अदा कर सकता है.

4- महंगाई बढ़ेगी, मॉनिटरी पॉलिसी पर असर पड़ेगा

कच्चा तेल और ट्रेड डेफिसिट का नतीजा ये होगा कि महंगाई (Inflation) बढ़ेगी, जो मॉनिटरी पॉलिसी (Monetary Policy) पर असर डालेगी. पहले ही नवंबर 2019 में रिटेल इंफ्लेशन (Retail Inflation) तीन साल में सबसे अधिक 5.5 फीसदी हो गया है. वहीं दूसरी ओर रिटेल फूड इंफ्लेशन (Retail Food Inflation) भी 10.1 फीसदी के स्तर को छू चुका है. कच्चे तेल और इसके प्रोडक्ट्स होलसेल प्राइस इंडेक्स (Wholesale Price Index) में 10.4 फीसदी की भागीदारी करते हैं. केयर रेटिंग के अनुसार अमेरिका और ईरान का तनाव भारत में महंगाई पर सीधा असर डालेगा.

5- डीजल-पेट्रोल की कीमत बढ़ना तय

सबसे अहम है डीजल-पेट्रोल (Diesel-Petrol), जिसकी कीमतों पर अमेरिका-ईरान के तनाव का असर दिखने भी लगा है. जैसे ही कच्चे तेल की कीमत में थोड़ा भी बदलाव होता है, भारत में डीजल-पेट्रोल की कीमतें भी कम-ज्यादा हो जाता है. बता दें कि भारत में रोजाना के हिसाब से डीजल-पेट्रोल की कीमतें तय होती है. ऐसे में शुक्रवार को जब अमेरिका ने ईरान के चीफ कमांडर कासिम सुलेमानी को मारा, उसके अगले ही दिन डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ गईं, क्योंकि कच्चे तेल की कीमत भी बढ़ी.

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