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Updated: 23 दिसम्बर, 2016 02:42 PM
बालकृष्ण
बालकृष्ण
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क्या कभी आपने समंदर के किनारे खड़े होकर लहरों को बनते - बिगड़ते देखा है?  दूर से आती लहरों पर अगर आप गौर करें तो पाएंगे के किनारे पर खड़े होकर ये बता पाना मुश्किल होता है कि कौन सी लहर कितनी ऊंची उठेगी और किनारे तक पहुंचेगी या फिर पहले ही दम तोड़ देगी. लेकिन लहरों को बनते-बिगड़ते देखना और फिर किनारे पर टकराकर खत्म हो जाने का यह खेल होता बहुत दिलचस्प है!  यूपी का चुनाव, समंदर की उठती-गिरती, बनती-बिगड़ती लहरों की तरह दिलचस्प हो गया है. तकरीबन हर महीने एक लहर सी उठती है और इस तेजी से बढ़ती है मानो चुनाव के नतीजों को वही किनारे लगा देगी, लेकिन दूर से ऊंची दिखने वाली कई लहरें किनारे पर आने से पहले ही खत्म हो रही हैं.

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छह महीने पहले ऐसा लग रहा था कि अखिलेश यादव का मुस्कुराता हुआ मासूम चेहरा समाजवादी पार्टी को फिर से सत्ता दिला देगा. समाजवादी पार्टी के पास अखिलेश के रूप में एक आकर्षक चेहरा था, यादव मुस्लिम और पिछड़ी जातियों के वोट बैंक की कई बार आजमाई हुई ताकत थी और विकास के नाम पर गिनाने के लिए लखनऊ मेट्रो, आगरा दिल्ली एक्सप्रेस वे, मुफ्त लैपटॉप और समाजवादी पेंशन योजना जैसी कई चीजें थी.

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 साइकल की सवारी करते अखिलेश यादव

लखनऊ के चौराहो पर चमचमाती हुई होर्डिंगस और बड़े-बड़े स्क्रीन पर अखिलेश के काम का बखान करती हुई शानदार तरीके से बनी हुई फिल्में 'शाइनिंग इंडिया'  कैंपेन की याद दिलाती थीं. लेकिन अखिलेश को भरोसा था कि उनके प्रचार में सिर्फ शाइनिंग इंडिया की चमक नहीं बल्कि काम बोलता है का भरोसा भी है. लेकिन समाजवादी पार्टी की लहर वोटरों की ओर बढ़ती उसे पहले ही मुलायम परिवार के भीतर सुनामी आ गया. ऐसी मारकाट मची कि लोगों ने मान लिया अब इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की साइकिल पंचर हो चुकी है.

'बबुआ' परेशान हुए तो 'बुआ' की बांछे खिल गईं-

मायावती ने सोचा कि अब मुस्लिम वोटों की सौगात पूरी की पूरी उन की झोली में गिरेगी और दलितों का साथ मिलकर उनका हाथी शान से राजतिलक के लिए कूच करेगा.

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 अपने हाथी को पुचकारने में लगी हैं मायावती

लेकिन हाथी सिंहासन की तरफ बढ़ता उससे पहले ही स्वामी प्रसाद मौर्या नाम के बेहद विश्वासपात्र रहे महावत ने हाथी को बिदका दिया. कल तक हाथी को चलाने वाला महावत ही कहने लगा कि ये हाथी घास नहीं सिर्फ पैसे खाता है. मायावती तिलमिला कर लाल हो गईं लेकिन कुछ करतीं उससे पहले ही दूसरा विश्वासपात्र महावत बृजेश पाठक भी यही कहते हुए हाथी से कूद गया. दोनों महावत हाथ में कमल का फूल लेकर मायावती को चिढ़ाने लगे. मायावती का बस चलता तो दोनों को हाथी से कुचलवा देतीं. लेकिन वह कुछ कर पातीं उससे पहले ही तमाम विधायक और पार्टी के कई नेताओं ने हाथी को चारों तरफ से घेर कर ये शोर मचाना शुरु कर दिया यह हाथी तो नोट खाता है. टिकट देने के बदले मायावती पैसे लेती हैं ये आरोप मायावती पर पहले भी लगते रहे हैं. लेकिन इस बार हाथी पर हमला तब हुआ जब वह सिंहासन की ओर जाता हुआ दिख रहा था. लोगों ने मान लिया कि अब इस बार हाथी, यूपी का साथी नहीं बन सकता.

तभी जम्मू-कश्मीर की सीमा पर एक ऐसा धमाका हुआ जिसने यूपी के चुनावी में जबरदस्त लहर पैदा कर दी. यूपी के जवानों की शहादत का बदला लेने की हिम्मत सिर्फ मोदी ने दिखाई -  यह बात लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी. लगा कि अब सर्जिकल स्ट्राइक की लहर ही यूपी का चुनाव तय कर देगी.

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 यूपी के जवानों की शहादत का बदला लेने की हिम्मत सिर्फ मोदी ने दिखाई

विरोधियों ने बीजेपी नेताओं यह सवाल पूछ कर चिढना बंद कर दिया कि तुम्हारा मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है!  लगा कि लोकसभा चुनाव की तरह एक बार फिर, मोदी का चेहरा हर चेहरे को फीका साबित कर देगा. लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि यह लहर भी समय से पहले आ गई . सर्जिकल स्ट्राइक का जोश तो कुछ दिनों में उतर गया, जम्मू-कश्मीर की सीमा से शहीदों की लाशें आए दिन ताबूत में बंद होकर आने का सिलसिला नहीं रुका. लोगों ने भी कहना शुरु कर दिया कि सेना की बहादुरी पर बीजेपी क्यों पीठ थपथपा रही है. बीजेपी की बहादुरी तब मानें जब मोदी पाकिस्तान को ठीक से धूल चटाएं.

अखिलेश यादव ने अपने साइकिल में फिर हवा भरी, मायावती ने अपने हाथी को फिर से पुचकारा और राहुल गांधी भी खाट बगल में दबाकर यूपी के गांवों की ओर चल पड़े.

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 राहुल की खटिया वार्ता भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई

लेकिन तभी नोटबंदी के तूफान ने हर छोटी बड़ी लहर को अपने भीतर समेट लिया. नेता भी वोटरों को भूलकर बैंक और तिजोरी की तरफ भागे. लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि अब नोट खाने वाला हाथी भूखों मरेगा. नोटबंदी के तूफान में अखिलेश की साइकिल भी थरथराने लगी. रैलियों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मुस्कान यह बताने लगी कि विरोधियों को लहरें गिनने में लगा कर वोट बटोरने का काम सिर्फ उन्हीं आता है.

लेकिन समंदर की लहरें भला कौन गिन सका है. जैसे जैसे नोटबंदी के साथ मिलाकर पिलाए गए देशभक्ति का खुमार उतर रहा है लोग पूछ रहे हैं कि मोदी जी, लाइन में खड़े लोगों को लाठियां और धन्नासेठों के घर गुलाबी नोटों की बहार को 'अच्छे दिन' भला कैसे मान लें. बीजेपी के नेता अब यूपी की सर्दी में भी पसीने पसीने हो रहे हैं. वो नाराज लोगों को दिलासा दिला रहे हैं कि बस कुछ दिन और सब्र करो काला धन आएगा और सब के घर समृद्धि का कमल खिलेगा.

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लेकिन अब मुस्कुराने की बारी एक बार फिर विरोधियों की है जो बीजेपी के नेताओं को चिढ़ाते हुए कह रहे हैं- हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं. बीजेपी के नेता भी अब दबी जुबान से भी कह रहे हैं कि ये कहीं हमें डुबाने वाली लहर साबित ना हो. लेकिन आप जानते हैं कि समंदर में कौन सी लहर कब,  कितनी ऊंची उठेगी इसका संबंध समंदर से ज्यादा चांद से है. चांद धरती के जितना ज्यादा करीब होगा, लहरें उतनी ऊंची उठेंगी. लहरें समंदर नहीं, समय तय करता है.

यूपी में चुनाव का चांद कब खिलेगा यह फैसला चुनाव आयोग को करना है. तब तक पार्टियां, जातियों की पतवार और वायदों का जाल लेकर समुंदर में निकल तो गई हैं है, लेकिन नजरें आसमान की ओर टकटकी लगाए देख रही हैं. वोटर समंदर के किनारे खड़े होकर लहरों को आते जाते देख रहे हैं. जब पूनम की रात आएगी, किसकी लहर सबसे ऊंची उठेगी और किसकी नैया डूबेगी - अभी यह बताना उतना ही मुश्किल है जितना समंदर की लहरें गिनना.

लेखक

बालकृष्ण बालकृष्ण @bala200

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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