बिहार की बिसात के दो अहम प्यादे - मांझी और पप्पू
जीतन राम मांझी और पप्पू यादव - ये दोनों नेता फिलहाल बिहार की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं. दोनों ने ही अपने पितृ-संगठनों से अलग अपना अपना फोरम खड़ा कर लिया है.
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जीतन राम मांझी और पप्पू यादव - ये दोनों नेता फिलहाल बिहार की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं. इन दोनों ने ही अपने पितृ-संगठनों से अलग अपना अपना फोरम खड़ा कर लिया है.
खास बात ये है कि दोनों ही नेताओं की अहमियत तब ज्यादा बढ़ गई जब इन्हें अपनी अपनी पार्टियों से निकाल दिया गया. इस वक्त ये दोनों ही उन पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं.
दोनों ही निकाले गए
जीतन राम मांझी बिहार में दलितों के बड़े नेता बन गए हैं. उनके दलित वोट सपोर्ट के कारण ही नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार की सत्ता सौंपी थी. लेकिन जब मांझी को मुख्यमंत्री के तौर पर खुल कर काम करने का मौका मिला, वो नीतीश को चुनौती पेश करने लगे. बाद में जेडीयू ने मांझी को पार्टी से निकाल दिया. उसके बाद मांझी ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का गठन किया.
मांझी की ही तरह पप्पू यादव भी आरजेडी में बड़े दावेदार बन कर उभरे. पप्पू यादव का असली नाम राजेश रंजन है. जब चारा घोटाले में सजा के चलते लालू प्रसाद चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिए गए तो पप्पू ने पार्टी की विरासत पर दावेदारी पेश कर दी. ये बात लालू को बेहद नागवार गुजरी. लालू ने साफ कर दिया कि वारिस तो बेटा ही होता है कोई और नहीं. ये कहते हुए लालू ने पप्पू को पार्टी से निकाल दिया. उसके बाद पप्पू ने जन अधिकार मोर्चा बना लिया.
महागठबंधन के लिए चुनौती
मांझी और पप्पू दोनों ही आज लालू-नीतीश गठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं. मांझी ने तो एनडीए से हाथ मिला लिया है लेकिन पप्पू यादव स्वतंत्र रूप से मैदान में डटे हुए हैं. अब ये दोनों नेता जितना लालू-नीतीश गठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे एनडीए को उतना ही फायदा होगा. मांझी के बूते एनडीए दलित वोट बटोरने की कोशिश कर रहा है. पप्पू यादव एनडीए का हिस्सा न होकर भी फायदा तो उसे ही पहुंचाएंगे. असल में पप्पू यादव जो भी वोट काटेंगे वो सारा का सारा लालू के खाते में जाता. इस तरह भी फायदा एनडीए का ही होगा.
जिस तरह मांझी की दलितों के नेता के रूप में पहचान बनी है उस तरह भले ही पप्पू यादव यादव का कद लालू प्रसाद के आगे बड़ा न हो पा रहा हो, लेकिन कोसी और आस पास के इलाके में उनके प्रभाव को कोई नकार नहीं सकता. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को मांझी और पप्पू के रूप में दो बड़े ही कारगर चुनावी हथियार मिले हैं. अब बीजेपी की कोशिश यही है कि किस तरह वो मांझी और पप्पू के जरिए लालू-नीतीश गठबंधन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो.

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