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Updated: 25 जनवरी, 2017 09:31 PM
अल्‍पयू सिंह
अल्‍पयू सिंह
  @alpyu.singh
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तस्वीरें दो... लेकिन सच्चाई एक. अमेरिका में पिछले शनिवार को ही ट्रंप की मुखालफत कर रही महिला प्रदर्शनकारियों के विरोध का तीखा लेकिन आभासी सा संगीत सबने सुना. वाशिंगटन डीसी ने पिछले 10 सालों में ऐसा जनसैलाब नहीं देखा था. ट्रंप के शपथ समारोह में आए लोगों से तीन गुना ज्यादा बड़ी इस भीड़ के गुलाबी रंग से शायद व्हाइट हाउस में बैठे सत्तानशीनों की आंखें भी चौंधिया गई होंगी, इसमें कोई शक नहीं. दुनिया भर में कई जगह महिलाओं ने समाज से वो कहने की कोशिश की, जिसे उत्तर उदारवादी इस विश्व व्यवस्था में ना तो देखा जाता है, ना सुना जाता है, या फिर देख सुन कर भी नजरअंदाज किया जाता है.

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हाथों में गुलाबी बैनरों पर लिखे स्लोगन सिर्फ ट्रंप विरोध को लेकर नहीं थे. उन तख्तियों में समान काम, समान वेतन से लेकर घरेलू हिंसा, यौन हिंसा, पितृसत्ता, पुरुषवादी मानसिकता और उपभोक्तावदी नजरिये के खिलाफ बहुत कुछ कहने की कोशिश की गई थी. ये वो बातें थी जिन्हें सालों से रेंग रेंग कर चल रहे महिला सशक्तिकरण के आंदोलनों के जरिए कहने की कोशिश तो की जा रही थी, लेकिन बहुत ही मद्धम स्वर में. वैसे भी दुनिया अब एक ग्लोबल विलेज है, और इसी इकोनॉमी मॉडल पर दुनिया की आर्थिक ही नहीं सामाजिक और राजनीतिक सांसें चल रहीं हैं और उत्तर उदारवादी युग में महिलाओं  को लेकर सोच में सिर्फ इतना फर्क आया है कि पहले नजरिया पुरातनपंथी था और आज उपभोक्तावादी.

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इसलिए अपनी बातों को असंगठित तौर पर ही सही, जाहिर करने के लिए जिस मंच की जरुरत थी उसमें ट्रंप विरोध एक 'कैटेलिस्ट 'की तरह साबित हुआ और इसी बात के लिए शायद महिलाओं को ट्रंप महोदय का दिल से धन्यवाद देना चाहिए.

लेकिन अब जरा दूसरी तस्वीर देखिए

trump1_012517065400.jpg7 पुरुषों से घिरे ट्रेंप की ये तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है

दरअसल सत्ता के गलियारों में महिलाओं की क्या जगह ह, उसके लिए फ्लोरिडा या वॉशिगटन के प्रदर्शनों में सड़कों पर दिखे बैनरों को देखने की जरुरत नहीं बस इस तस्वीर से भी बखूबी समझा जा सकता है. व्हाइट हाउस के शक्तिशाली ओवल ऑफिस में बैठे राष्ट्रपति ट्रंप, पुरुष सहयोगियों से घिरे हुए महिलाओं से जुड़े एक खास आदेश को फिर से लागू करने के लिए लिखित फरमान देते हुए.

ये दस्तावेज महिलाओं के प्रजनन और अबॉर्शन अधिकारों से जुड़ा कानून है जिसे अमेरिका में मेक्सिको सिटी पॉलिसी के नाम से जाना जाता है. रीगन के वक्त में आए इस कानून का सीधा सा मतलब ये है कि अमेरिका उन एनजीओ पर फंडिंग में रोक लगाएगा जो विकासशील देशों की महिलाओं को अबॉर्शन में मदद करती हैं या फैमिली प्लानिंग के लिए इसकी वकालत करती हैं. पिछले सालों में बुश कार्यकाल में इस कानून का एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के देशों की गरीब महिलाओं के जिंदगी पर क्या असर पड़ा था ये दुनिया देख चुकी है. माना जा रहा है कि ट्रंप के ही कार्यकाल में 2.1 मिलियन असुरिक्षत अबॉर्शन हो सकते हैं, जिनमें जान गंवाने वाली महिलाओं का आंकड़ा 21,700 तक भी जा सकता है. जाहिर है इसका असर भारत में भी निचले तबके की महिलाओं पर भी देखने को मिलेगा.

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इसीलिए ये तस्वीर हर दौर की सच्चाई है. महिलाओं के लिए फैसले पुरुष कैसे लेते हैं?  और कैसे पितृसत्ता उन्हें सत्ता में भागीदारी लेने और खुद के लिए फैसले लेने से रोकती है, ये इस तस्वीर से समझा जा सकता है. तस्वीर महिलाओं को समाज और सत्ता के गलियारों में उनकी हैसियत दिखाती है. ये बात सांकेतिक लग सकती है, क्योंकि कानून बनाने से लेकर मंजूरी तक के लिए संसद हर देश में मौजूद हैं, लेकिन महिलाओं की मौजूदगी वहां कैसी है, ये भी किसी से छुपा नहीं है. कुल मिलाकर ये वो सच है जिसे हाल ही में उन बैनरों से समझाने की कोशिश की जा रही थी जिन पर लिखा था My Body, My Life.

वैसे भी कौन भूला होगा कि अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही ट्रंप साहब कह ही चुके थे कि अबॉर्शन वाली महिलाएं सजा की हकदार हैं. यानि दो दिन पहले ही ट्रंप को उनकी जीत पर मुंह चिढ़ाते नारों का बदला फिलहाल ट्रंप साहब ने ले ही लिया. और ऐसे में एक सवाल भी बहुत मौजूं है जो नवनियुक्त राष्ट्रपति ने इन प्रदर्शनकारी महिलाओं से पूछा था कि इतनी दिक्कत थी तो वोट  ही क्यों किया था ?

लेकिन असल बात तो ये है कि ये सवाल तो पूरे अमेरिकी समाज से किया गया है...और आने वाले वक्त में ना जाने कितनी बार ये सवाल दोहराया जाएगा ?

लेखक

अल्‍पयू सिंह अल्‍पयू सिंह @alpyu.singh

लेखक आज तक न्यूज चैनल में एसोसिएट सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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