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Updated: 05 अगस्त, 2021 09:21 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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1980 के ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम (Indian Men Hockey Team) ने आखिरी बार गोल्ड जीता था. आगे के ओलंपिक और वर्ल्ड टूर्नामेंट में भारतीय टीम के निराशाजनक प्रदर्शन की वजह से भारत में लोगों का हॉकी के लिए प्यार कमजोर पड़ता गया. वहीं, 1983 का क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने भारतीयों के टूटे दिलों को संभाल लिया. इस दौरान क्रिकेट (Cricket) ने लोगों के दिलों में जितनी तेजी से जगह बनाई, शायद ही इस दौरान किसी खेल ने ऐसा कारनामा किया हो. दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट के हर मैच को 'जंग' के तौर पर देखे जाने से इस खेल के प्रति लोगों का झुकाव स्वाभाविक नजर आता है. वहीं, सचिन तेंडुलकर के रूप में 'क्रिकेट का भगवान' मिलने के बाद भारत में इस खेल की दीवानगी बाउंड्री लाइन के बाहर पहुंच गई.

अप्रैल, 2011 में महेंद्र सिंह धोनी ने जब छक्का मारते हुए भारत को दोबारा विश्व कप विजेता बनाया, तो देश की सड़कों पर युवाओं का हुजूम उतर आया था. अगर ये कहा जाए कि उस दिन दिवाली कुछ महीने पहले ही मना ली गई थी, तो अतिश्योक्ति नहीं होगा. भारत में इस दौरान अन्य खेलों के प्रति उदासीनता को दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई (BCCI) ने बखूबी भुनाया. आईपीएल और चैंपियंस लीग जैसे घरेलू टूर्नामेंट की वजह से क्रिकेट ने खूब नाम और सुर्खियां बटोरीं. लेकिन, इसके बावजूद भारत में हॉकी लिए दीवानगी कमजोर नहीं हुई.

ओलंपिक्स में भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी का स्वर्णिम इतिहास खिलाड़ियों को इस खेल में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए प्रेरित करता रहा. और, आखिरकार 41 साल बाद वो मौका आ गया जब भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल के साथ पोडियम फिनिश किया. इस जीत के साथ भारत में फिर से जश्न का माहौल बन गया है. 41 वर्षों के सूखे के बाद टीम इंडिया ने इतिहास रच दिया है. लोगों में भरा उत्साह और जोश देखकर लग रहा है कि क्रिकेट कितना ही नाम कमा ले, असली दिल तो हॉकी ही है.

भारतीय पुरुष हॉकी टीम की जीत के साथ ही भारत में हॉकी के रिवाइवल की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है.भारतीय पुरुष हॉकी टीम की जीत के साथ ही भारत में हॉकी के रिवाइवल की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है.

कुछ ऐसा रहा है हॉकी में भारत का स्वर्णिम इतिहास

भारत में 'हॉकी के जादूगर' कहे जाने वाले ध्यानचंद ने अंतरराष्ट्रीय मैचों में इतने गोल किए थे कि उनकी हॉकी स्टिक को तुड़वाकर चेक किया गया था कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा है. ध्यानचंद के बाद भी देश में हॉकी के कई खिलाड़ी रहे, जो 1928 में हॉकी के जादूगर के नेतृत्व में शुरू हुए भारत के ओलंपिक के स्वर्णिम सफर को आगे तक ले गए. ओलंपिक्स में भारतीय पुरुष हॉकी टीम का इतिहास शानदार रहा है. भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 1928, 1932, 1936, 1948, 1952 और 1956 में स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया. 1960 में रजत के बाद 1964 में फिर से स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया.

भारतीय हॉकी टीम ने 1968 और 1972 में कांस्य पदक जीते. वहीं, 1980 में फिर से सोने का मेडल भारत के नाम किया था. भारतीय हॉकी टीम ने अब तक 8 गोल्ड मेडल जीते हैं. जो हॉकी में भारत के स्वर्णिम इतिहास की गवाही देते हैं. हालांकि, 1980 में आखिरी बार ओलंपिक पदक जीतने के बाद भारतीय हॉकी टीम कोई कारनामा नहीं दिखा सकी. दरअसल, 1980 के बाद हॉकी का खेल एस्ट्रो टर्फ पर खेला जाने लगा. उस दौर में बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से भारतीय खिलाड़ी हॉकी के खेल में पिछड़ते चले गए.

केवल नाम का राष्ट्रीय खेल नहीं रहेगा हॉकी

भारतीय पुरुष हॉकी टीम की जीत के साथ ही भारत में हॉकी के रिवाइवल की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है. अगर भारतीय महिला हॉकी टीम भी टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल ले आती है, तो निश्चित तौर पर इन चर्चाओं को और बल मिल जाएगा. लेकिन, सवाल ये उठना चाहिए कि जो हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है, भारत में उसी के रिवाइवल की बातें क्यों हो रही हैं? हॉकी के रिवाइवल को लेकर केवल चर्चाओं से काम नहीं चलना है. भारत सरकार से लेकर इंडियन हॉकी फेडरेशन तक सभी को इस मोमेंटम को बनाए रखने के लिए कोशिशें करनी होंगी.

अगले साल होने वाले एशियन गेम्स 2022 में भी भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमें अपना शानदार प्रदर्शन कर सकती हैं. और, इसके लिए सुविधाओं के साथ ही प्रतिभाओं को बढ़ावा देना होगा. अगर गौर से देखा जाए, तो भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम में खेल रहे ज्यादातर खिलाड़ी छोटे कस्बों, गांवों या शहरों के हैं. हॉकी की प्रतिभाओं को तराशने के लिए अगर सभी प्रकार की सुविधाएं में बढ़ोत्तरी होती है, तो ओलंपिक इतिहास में दर्ज हो चुका भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग एक बार फिर से वापस आ सकता है.

भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो में ब्रॉन्ज मेडल जीत कर देश को फिर से उम्मीद दे दी है कि ओलंपिक में भारत का स्वर्णिम सफर फिर से शुरू हो सकता है. लेकिन, इसके लिए सरकारों और संस्थाओं के साथ ही हर एक भारतीय को मेहनत करनी होगी. इन गौरवशाली पलों को आगे भी जारी रखना है, तो किसी से ये न कहना पड़े कि 'फिर दिल दो हॉकी को'. कुल मिलाकर हम सभी को वैसा ही प्रयास करना होगा, जैसा ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 2018 में किया था. बिना किसी स्वार्थ के हॉकी को आगे बढ़ाने का फैसला. भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम की जीत में नवीन पटनायक का रोल काफी अहम है. उन्होंने भारतीय हॉकी टीम को ऐसे समय पर स्पॉन्सर किया था. जब उसके पास कोई स्पॉन्सर नहीं था.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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