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Updated: 19 मार्च, 2015 11:22 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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'अच्छे दिन...' जुमला पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक भाषण का हिस्सा था. ये बात नरेंद्र मोदी को इस कदर भा गई कि इसे उनके चुनावी अभियान का हिस्सा बना दिया गया. ऐसी ही दूसरी मिसाल है - केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का एक प्रस्ताव. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नेताओं के वीआईपी कल्चर खत्म करने के बड़े पैरोकार रहे हैं. 'आप नेताओं की गाड़ी पर कोई लाल बत्ती नहीं होगी' - ये केजरीवाल की ही पहल थी. वैचारिक विरोध अपनी जगह है. अच्छे दिन लाने की प्रेरणा चाहे जिस किसी से भी मिले ये तो अच्छी बात है.

क्या है नया प्रस्ताव
परिवहन मंत्री गडकरी का प्रस्ताव है कि लाल बत्ती की सुविधा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के स्पीकर को ही दी जाए, जबकि राज्यों में ये मुख्यमंत्री, राज्यपाल, हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विधानसभा के स्पीकर के लिए ही हो. गणकरी ने रायशुमारी के लिए राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज सहित कई मंत्रियों को ये प्रस्ताव भेजा है.

लाल बत्ती का स्टेटस
दिसंबर, 2013 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार संवैधानिक पदों पर जो लोग हैं वे ही लाल बत्ती लगा सकते हैं, लेकिन वे सायरन नहीं बजा सकते. सायरन और बत्ती लगाने का अधिकार सिर्फ उन्हीं को है जो आपातसेवा से जुड़े हैं - सेना, पुलिस, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस. हालांकि, हिदायत ये है कि सायरन बहुत माइल्ड होना चाहिए. बहुत तेज तो बिलकुल नहीं होना चाहिए - लोगों को उससे कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

कौन कौन लगा सकता है लाल बत्ती :  केंद्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की तरह राज्यों में भी उनके समकक्ष संवैधानिक पदों वाले विशिष्ट व्यक्तियों, जैसे राज्यपाल, मुख्यमंत्री को भी लाल बत्ती के इस्तेमाल का प्रावधान है.

फ्लैशर के साथ: राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के जज, लोक सभा स्पीकर, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष [मोदी सरकार ने योजना आयोग की जगह नीति आयोग बना दिया है], लोक सभा और राज्य सभा में विपक्ष के नेता.

फ्लैशर के बगैर: मुख्य चुनाव आयुक्त, केंद्रीय राज्य मंत्री और उप-मंत्री, लोक सभा उपाध्यक्ष, राज्य सभा के उप-सभापति, योजना आयोग के सदस्य [योजना आयोग अब अस्तित्व में नहीं है], अटॉर्नी जनरल, कैबिनेट सचिव, सेवाओं के प्रमुख और पदेन चीफ ऑफ स्टाफ, कैट, यूपीएससी, माइनॉरिटी कमीशन और एससी-एसटी कमीशन के अध्यक्ष.

कुछ खास हिदायतें
वीआईपी द्वारा गाड़ी इस्तेमाल न किए जाने की स्थिति में लाल बत्ती काले रंग के कवर से ढकी होनी चाहिए. नियम ये है कि लाल बत्ती का इस्तेमाल सिर्फ आधिकारिक कामों के लिए यात्रा के दौरान किया जा सकता है, न कि निजी सफर के दौरान. यानी अगर लाल बत्ती के लिए अधिकृत व्यक्ति किसी रिश्तेदार से मिलने जा रहा है या फिर कहीं लंच या डिनर करने जाए उस स्थिति में लाल बत्ती कवर से ढकी होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से लाल बत्ती के दुरुपयोग पर काफी अंकुश लग चुका है. फिर भी सियासी रसूख का सबसे बड़ा स्टेटस सिंबल - बहुतों के लिए अब शायद ये कुछ ही दिनों का मेहमान है. अगर नये प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो देश में सिर्फ नौ पद ऐसे होंगे जिनकी गाड़ियों पर लाल बत्ती चमक सकेगी. बाकियों की या तो अपनेआप बुझ जाएगी या बुझा दी जाएगी.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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