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Updated: 08 फरवरी, 2017 04:01 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
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पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों पर सबकी नजर टिकी है कि आखिर कौन बाज़ी मारेगा. बीजेपी के लिए इन राज्यों में जीत हासिल करना ना सिर्फ प्रतिष्ठा का सवाल है बल्कि केंद्र में भी नरेंद्र मोदी का राजनीतिक गुना भाग नतीजो पर निर्भर है जिसका सबसे बड़ा असर जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ेगा, क्योंकि अगर भाजपा उत्तर प्रदेश और पंजाब में जीतने में नाकाम रही तो उसे अपनी पंसद का राष्ट्रपति नहीं मिल पाएगा और उसे दूसरे दलों की मदद लेनी पड़ेगी. फ़िलहाल चुनावी शोर और नतीजो से पहले ही धीरे से राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी शुरु हो गई है. चुनावों की आपाधापी और बजट सत्र की गहमा-गहमी के बीच संसद में नए राष्ट्रपति के चुनाव की कवायद में एक प्रेसिडेंट इलेक्शन सेल बना दिया है.

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संसद भवन के कमरा नंबर 108 और 79 में संसदीय सचिवालय की एक टीम ने नए राष्ट्रपति के चुनाव की तैयारियों पर काम भी शुरु कर दिया है. राष्ट्रपति चुनाव के निर्धारित कैलेंडर के मुताबिक देश के प्रथम नागरिक का चुनाव 25 जुलाई 2017 तक कर लिया जाना है.

लोकसभा सचिवालय सूत्रों के मुताबिक इसी महीने से राष्ट्रपति चुनाव की कवायद संसद में शुरु की गई है. तय परिपाटी के मुताबिक इस बार राष्ट्रपति का संयोजक लोकसभा सचिवालय को बनाया गया है. पिछली बार यह जिम्मेदारी राज्यसभा सचिवालय ने निभाई थी. लोकसभा के महासचिव राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिटर्निंग अधिकारी होंगे. राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में निर्वाचन आयोग की सलाह के बाद राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रकोष्ठ बनाया गया है.

भारत में राष्ट्रपति का चयन अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली से होता है जिसमें इलेक्टोरेट कॉलेज के जरिए चुनाव होता है. यानी हर चुने हुए सांसद, विधायक और विधानपरिषद सदस्यों के आधार पर राज्यों का मतांक तय किया जाता है. लिहाजा जहां संसद के दोनों सदनों के सदस्य मतदान करेंगे, वहीं राज्यों के चुने हुए प्रतिनिधि भी सूबों में मतदान करेंगे.

मौजूदा हालात में एनडीए के पास करीब 4.52 लाख वोट हैं और उन्हें अपने राष्ट्रपति कैंडिडेट को सीधे चुनाव जिताने के लिए करीब एक लाख और वोटों की जरूरत है. जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां 1,03,756 वोट दांव पर हैं. इसमें सबसे ज्यादा यूपी में 83,824 वोट हैं. ऐसे में अगर मोदी सरकार विधानसभा चुनाव हारती है तो राष्ट्रपति पद के कैंडिडेट को जिताने के लिए जरूरी संख्या नहीं होगी और उन्हें अन्य क्षेत्रीय दलों से बात करनी होगी और उस वक़्त काफी हद तक तृणमूल कांग्रेस और बीजेडी के अलावा एआईएडीएमके अहम भूमिका निभाएगी. ऐसे में मोदी को ऐसे नाम को सामने लाना होगा जिनपर इन दलों से भी सहमति मिल जाए.

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रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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