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Updated: 17 अगस्त, 2016 06:17 PM
अभिषेक शांडिल्य
अभिषेक शांडिल्य
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उत्तर प्रदेश के छोटे से ज़िले प्रतापगढ़ के एक गांव में जन्मे स्वामी प्रसाद मौर्य मायावती के हाथी से उतरकर बीजेपी के कमल पर विराजमान हो गए हैं. इसीलिए सवाल उठता है कि क्या स्वामी सियासत के नए मौर्य बनकर उभरेंगे? या वो अपने राजनीतिक करियर में लंबी छलांग के चक्कर में ठीक से किसी डाल पर बैठ भी नहीं पाएंगे?

मायावती का शेर अब बीजेपी का बब्बरशेर !

कहा जाता है कि अगर स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा के साथ होते तो शायद दयाशंकर की गालियों पर मायावती भी गालियों से पलटवार नहीं करती, क्योंकि मायावती का असली दायां हाथ स्वामी प्रसाद मौर्य को ही बताया जाता था. लेकिन अब ये हाथ बीजेपी से मिल चुका है. 08 अगस्त को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें बीजेपी में शामिल करा लिया. राजनीतिक हालात को देख कर लगता है कि यूपी में सबसे बड़े जानवर हाथी पर बैठी मायावती की सवारी थोड़ी कमजोर होती दिख रही है, क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे सियासी चेहरे का मायावती के खिलाफ खड़ा होना किसी मुसीबत से कम नहीं है. मौर्य विपक्ष के नेता थे इसलिए वो बसपा सुप्रीमो मायावती के सारे समीकरण में बट्टा भी लगा सकते हैं.

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 08 अगस्त को बीजेपी में शामिल हुए मौर्य

8% वोट का चक्कर

यूपी में वक्त बदल गया तो राजनीति के सितारे आपस में टकराने लगे हैं. 4 बार विधायक और मंत्री रह चुके मौर्य ने ऐसे वक्त में बसपा का साथ छोड़ा है जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. बीजेपी को एक ऐसा तुरुप का पत्ता मिल गया है जो भाजपा के घर सत्ता की खुशियां पहुंचा सकता है. उत्तर प्रदेश में कुल 8 % वोट मौर्य यानी कुर्मी समाज से हैं यानी ये 8 % वोट बीजेपी के खाते में जाने से शायद अब माया भी नहीं रोक पाएंगी.

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माया के खिलाफ उगला था जहर

दो दशकों तक मायावती के हर फोटो में आगे-पीछे दिखने वाले स्वामी ने जब पार्टी छोड़ी तो कई आरोपों को मायावती की तस्वीर के साथ जोड़ दिया. उनका पार्टी में कद इतना बड़ा था कि मौर्य बीएसपी के जनरल सेक्रेटरी थे, लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़ते वक्त मायावती पर आरोपों की ऐसी झड़ी लगाई कि शायद अब वही चुनावी मुद्दे में नजर आए. स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती पर आरोप लगाया कि वह अंबेडकर के सपनों को तोड़ रही हैं. मायावती मनुवाद के मकड़ जाल में बुरी तरह उलझ गई हैं. तो मान लिया जाए कि चुनाव में बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य को माया के खिलाफ खड़ा करने का मेगा प्लान तैयार कर लिया है. क्योंकि आगे आप देखेंगे कि आरोप इतने छोटे नहीं थे. जो आरोप स्वामी ने लगाए शायद अबतक मायावती पर कभी नहीं लगे थे.

बसपा के लिए जोकर, बीजेपी का दहला !

दो दशकों से माया के साथ राजनीति कर रहे सियासत के मौर्य वो सारी बातें जानते होंगो जो शायद किसी और को नहीं पता होंगी. इसीलिए वो चुनाव में कई ऐसे खुलासे कर सकते है जो अब तक मायावती ने अपने राजनीतिक समझ से जनता के सामने नहीं आने दिए थे. पार्टी छोड़ते ही  मौर्य ने मायावती पर संगीन आरोप लगाते हुए कहा था कि वो दलितों की कोई सुध नहीं ले रही हैं. टिकट में सौदेबाजी की वजह से बीएसपी 2012 का चुनाव हारी और अब 2017 में भी चुनाव हारेगी. जिस स्वामी प्रसाद मौर्य को बसपा ड्रामेबाज़ बता रही है क्या उसी मौर्य के माध्यम से बीजेपी बसपा के खिलाफ दहला फेंक यूपी में सबसे बड़ी सियासी पार्टी बन कर उभरेगी ?

खुद की पार्टी बनाना चाहते थे स्वामी, फिर बीजेपी ने कैसे पलटी बाजी

स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा छोड़ने के बाद खुद की एक पार्टी बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने समूचे उत्तर प्रदेश का भ्रमण भी किया. उन्होंने अपने राजनीतिक ज़मीर के साथ ये तलाशने की कोशिश की, कि क्या उत्तर प्रदेश में किसी नई पार्टी के साथ जनता जाना चाहेगी या नहीं? स्वामी के इरादों में ज्यादा जान इसलिए भी नहीं थी क्योंकि उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाती के लोग सिर्फ 8% ही हैं. कुर्मी जाति से ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक आम इंसान से एक बड़ा सियासी चेहरा होने की कहानी लिखी है. लेकिन यूपी में हालिया हालात ऐसे नहीं है कि किसी नई पार्टी को जनता पसंद करने वाली है. इसीलिए उन्होंने भाजपा का भविष्य देखते हुए भाजपा का दामन ही थामना ठीक समझा.

इसके पीछे एक कारण ये भी है कि यूपी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी कुर्मी समाज यानी मौर्य ही हैं, इसीलिए भाजपा के लिए ये लड़ाई और आसान हो गई थी. जो आरोप बसपा सुप्रमो पर लगा कर पार्टी छोड़ने की हिम्मत स्वामी ने दिखाई क्या वो सरहदें भाजपा में नहीं हैं? क्या भाजपा में कभी टिकट बेचने का आरोप नहीं लगा है? क्या भाजपा चुनावी टिकट को देते वक्त निष्पक्षता के साथ काम करती है? ऐसे ही कई सवाल हैं लेकिन राजनीति में जब अपने घर के दरवाजों में दीमक लगने लगे तो तय है कि महत्वाकांक्षा की राजनीति एक ठोस दरवाज़े की तरफ जाने लगती है, शायद स्वामी के इस कदम में भी यही महत्वाकांक्षा नजर आती है.

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यूपी के समीकरण में स्वामी कितने फिट ?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्वामी प्रसाद मौर्य क्यों जरूरी है? वो इसलिए क्योंकि प्रतापगढ़ जिला यानी पूर्वांचल का एक ऐसा जिला जहां से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का बोल बाला है, इसीलिए भाजपा को एक ऐसा चेहरा मिल गया जो पूर्वांचल में भजपा के लिए ऑक्सीजन पैदा कर सकता है. पूर्वांचल में कांग्रेस के राजेश मिश्रा, सपा के राजा भैया और दागी विधायक विजय मिश्रा का दबदबा है और बसपा के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य अब तक ये काम करते आ रहे थे. लेकिन अब ये काम बसपा के लिए नहीं बल्कि बीजेपी के लिए करेंगे. भाजपा को उम्मीद है कि मौर्य कम से कम 100 सीटें उनकी झोली में ज़रूर डालेंगे.

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश का वो हिस्सा है जहां से राजनीति की इमारत खड़ी होती है जो ज्यादा सीटें पूर्वांचल से निकालने में कामयाब होगा वही यूपी की गद्दी पर विराजमान होगा. सबसे बड़ी बात है कि मौर्य ने यूपी का वो दौर देखा हैं जो दौर मायावती और मुलायम सिंह यादव ने देखा है. इसलिए वो यूपी और खासतौर पर पूर्वांचल के लोकप्रिय भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ के हाथों में कुर्मियों का वोट प्रतिशत दिला कर भाजपा के दशकों से सत्ता पाने की दौड़ के स्वप्न को धरातल में मूर्त रूप दे सकते है.  

रानी के सामने उन्हीं का वज़ीर!

दिल्ली की दौड़ में शामिल होने के लिए उत्तर प्रदेश की जीत ज़रूरी है, 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की पटकथा भी इसी चुनावी दंगल में तय हो जाएगी. इसलिए उत्तर प्रदेश की भाजपा नरेंद्र मोदी के 10 साल सरकार चलाने वाले सपने को साकार करने के लिए हर वो दांव खेल रही है जो राजनीति की चौसर पर नया आयाम बना सके. इसी चौसर को अंजाम देने के लिए भाजपा ने हर हाल में बसपा सुप्रीमो मायावती(रानी) को सत्ता से दूर रोकने के लिए उन्हीं के वज़ीर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को उन्हीं के सबसे बड़ा सियासी दुश्मन के रूप में खड़ा कर दिया है.

लेखक

अभिषेक शांडिल्य अभिषेक शांडिल्य @100004248396199

लेखक पत्रकार हैं

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