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Updated: 12 अगस्त, 2017 03:46 PM
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9 अगस्त को योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के दौरे पर थे. योगी उस अस्पताल में भी गये थे जहां बच्चों की मौत से कोहराम मचा हुआ है. हैरानी की बात है कि मुख्यमंत्री को ऑक्सीजन के स्टॉक और सप्लाई के बारे में वस्तुस्थिति की भनक तक न लगी. हो सकता है स्थानीय प्रशासन ने बात छुपाने की कोशिश की हो, लेकिन गोरखपुर की हकीकत से योगी का वाकिफ न होना बहुत अजीब लगता है.

हैरानी तो उस वक्त और ज्यादा हुई जब योगी सरकार के मंत्री बच्चों की मौत की फिक्र की बजाये मीडिया पर भ्रामक खबरें दिखाने का इल्जाम लगा कर जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते दिखे.

बच्चों की मौत नहीं, खबर पर गुस्सा!

11 अगस्त की शाम को टीवी पर योगी सरकार के मंत्री आशुतोष टंडन गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत पर बयान दे रहे थे. उनका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था. टंडन का कहना था "टीवी चैनल भ्रामक खबरें चला रहे हैं और आज सिर्फ सात बच्चों की मौत हुई हैं. ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई."

brd hospital victimऑक्सीजन नहीं मिली और सांस थम गयी...

बच्चों की मौत की जो भी संख्या वो बता रहे थे, सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे उतने बच्चों की मौत कोई खास मायने नहीं रखती. ये तो सुना है कि नेताओं के लिए इंसान महज वोटों की संख्या होते हैं, लेकिन सियासत में मासूमों की मौत भी किसी संख्या से ज्यादा मायने नहीं रखती ये भी मालूम हो गया.

इंडियन एक्सप्रेस ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई मौतों के बारे में विस्तृत जानकारी दी है. इस रिपोर्ट में 7 अगस्त से 11 अगस्त तक हुई 60 मौतों का ब्योरा है. रिपोर्ट के अनुसार 7 अगस्त को 9, 8 अगस्त को 12, 9 अगस्त को 9, 10 अगस्त को 23 और 11 अगस्त को 7 मौतें हुई हैं. यानी जिस दिन योगी अस्पताल के दौरे पर थे उस दिन भी नौ मौतें दर्ज की गयी थीं.

मेडिकल एजुकेशन मंत्री टंडन गुस्से में इसलिए भी होंगे क्योंकि प्राइम टाइम में सिर्फ दो ही प्रमुख चैनल बच्चों की मौत की खबरें नहीं दिखा रहे थे - एक चैनल पर टॉयलेट एक प्रेम कथा, तो दूसरे पर वंदे मातरम पर बहस चल रही थी. वैसे योगी सरकार के मंत्री के गुस्से की एक वजह मदरसों के वीडियोग्राफी के सरकारी फरमान वाली खबरें भी हो सकती हैं, जो बच्चों की मौत से पहले सुर्क्षियों में छायी हुई थीं.

ऑक्सीजन की कमी, सप्लाई और रहस्य!

योगी सरकार की ओर से लगातार यही बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई. मालूम नहीं सरकार के मंत्री या किसी अफसर की नजर अखबारों की खबरों पर पड़ी भी या नहीं. हो सकता है सारा अमला ये सुनिश्चित करने में लगा हो कि स्वतंत्रता दिवस पर मदसरों में कार्यक्रम हो और उसके फोटो और वीडियोग्राफी जरूर हो जाये.

up govt. tweet on brd deathsहकीकत से बेखबर सरकारी दावा...

अगर योगी सरकार के मंत्री और अफसर स्थानीय अखबारों पर नजर डाल लिये होते तो ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर स्थिति पहले ही मालूम हो जाती और आगे की फजीहत से बच सकते थे. ये संभव है कि अफसर नौकरी बचाने के लिए मंत्री को अंधेरे में रखें हों. सूचना क्रांति के इस दौर में भी अगर अखबार की छपी हुई खबर से कोई अनजान है तो भला क्या कहा जाये.

11 अगस्त के हिंदुस्तान अखबार में छपी खबर का टाइटल है - 'बीआरडी में लिक्विड ऑक्सीजन खत्म'. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि ये स्टोरी लिखे जाते वक्त महज आठ घंटे की ही ऑक्सीजन बची थी.

local news paper reportएक बार अखबार ही पढ़ लिये होते...

हिंदुस्तान अखबार की इस रिपोर्ट में विशेष रूप से तीन बातें गौर करने वाली हैं जो अपने आप में बेहद गंभीर हैं. जाहिर है हालात बहुत पहले से खराब रहे होंगे - और अगर वक्त रहते एक्शन लिया गया होता तो बच्चों को बचाया जा सकता था.

1. लिक्विड ऑक्सीजन में आखिरी बार 4 अगस्त को रिफीलिंग हुई थी. एक बार की रिफीलिंग में पांच से छह दिन ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है.

2. दो साल पहले लिक्विड ऑक्सीजन का प्लांट लगा था जिससे इंसेफेलाइटिस वॉर्ड समेत 300 मरीजों को पाइप के जरिये ऑक्सीजन दी जाती है.

3. लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली फर्म का करीब 69 लाख रुपये बकाया होने पर उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति ठप कर दी है.

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट से मालूम होता है कि इंसेफेलाइटिस वॉर्ड के प्रभारी डॉ. कफील खान रात के दो बजे अस्पताल पहुंचे थे. सुबह सात बजे तक जब किसी बड़े अधिकारी और गैस सप्लायर ने फोन नहीं उठाया तो वो अपनी कार लेकर निकल पड़े. प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर दोस्तों से मदद मांगी और जैसे तैसे 12 सिलेंडर जुटा पाये.

brd hospital victimलापरवाही किसकी?

जाहिर है अगर डॉ. कफील ने खुद पहल करते हुए इतनी तत्परता न दिखायी होती तो मौतों का आंकड़ा कहीं ज्यादा होता. ऐसा भी तो नहीं कि ये बात किसी अफसर को न मालूम पड़ी हो. अगर स्थानीय प्रशासन भी डॉ. कफील की तरह इनिशियेटिव लेता तो कुछ और मासूमों को बचाया जा सकता था. मगर, अफसोस डॉ. कफील की तरह सोचने वाले भी तो कम ही होते हैं.

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