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Updated: 19 मई, 2015 06:36 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राहुल गांधी छुट्टियों से लौटने के बाद से लगातार सक्रिय हैं. छुट्टियां जीवन में सभी के लिए जरूरी होती हैं. भले ही उन पर कुछ न कर पाने की तोहमत लगती रही हो - लेकिन जो कुछ भी वो कर रहे थे या हो रहा था उसमें एक ब्रेक तो बनता ही है. अब वो पूरी तरह तरोताजा हैं. जाहिर है चुनौतियां भी नई हैं, लेकिन उससे क्या? परफॉर्म तो उन्हें हर हाल में करना ही है. ऐसा भी नहीं है कि चुनौतियां सिर्फ उन्हीं के सामने हैं. उनसे पहले भी बहुत सारे लोगों ने चुनौतियां मिलने पर अपनी अलग रणनीति बनाई, उस पर अमल किया और कामयाब हुए. ऐसी कई शख्सियतें हैं जो राहुल गांधी के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती हैं, बशर्ते राहुल उनसे कुछ सीखना चाहें.

[ 1 ] शख्सियत : सानिया मिर्जा, टेनिस स्टार

क्या सीखें? जरूरी हो तो ट्रैक बदलने से भी परहेज मत करो. खुद को साबित करने के लिए भूमिका में बदलाव भी समझदारी है.

कामयाबी का नुस्खा : सानिया मिर्जा के सामने कई चुनौतियां थीं. चोट भी कई बार उनके लिए बड़ी चुनौती बन गई. वो लड़ती रहीं. जब सिंगल्स में उन्हें भविष्य नहीं दिखा तो उन्होंने डबल्स में किस्मत आजमाने का फैसला किया - और फिर एक दिन चैंपियन बनीं. राहुल गांधी को अगर प्रधानमंत्री पद में दिलचस्पी नहीं है तो वो दूसरों को मौका देकर खुद पार्टी के लिए काम कर सकते हैं. नेहरू-गांधी परिवार की विरासत का दबाव उन पर है, लेकिन इसके लिए प्रधानमंत्री बनना ही कोई शर्त तो नहीं है. सानिया की तरह वो भी चाहें तो दूसरा रास्ता चुन सकते हैं.

[ 2 ] शख्सियत : हिलेरी क्लिंटन, अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दावेदार

क्या सीखें? जरूरत पड़े तो बड़े मकसद के लिए सिद्धांतों से समझौता कर लो.

कामयाबी का नुस्खा : अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन समलैंगिक विवाहों की सख्त विरोधी रही हैं. लेकिन अब उनका नजरिया बदल गया है - और वो इसकी पक्षधर हो गई हैं. आने वाले राष्ट्रपति चुनाव में वो नये नजरिये के साथ उतर रही हैं. राहुल गांधी अक्सर सिस्टम को बदलने की बात करते हैं. अगर आइडिया पुराना पड़ गया हो या बेअसर साबित हो रहा हो तो नये सिरे से विचार करना चाहिए.

[ 3 ] शख्सियत : अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली

क्या सीखें? कोई क्या कह रहा है उसकी जरा भी परवाह मत करो. बस, मंजिल की ओर बढ़ते रहो, सफलता जरूर मिलेगी.

कामयाबी का नुस्खा : दिल्ली चुनाव के नतीजे सबसे ताजा मिसाल हैं. केजरीवाल की मानें तो उन्हीं के साथी उन्हें हराने में लगे हुए थे. लोक सभा में मिली नाकामी और फिर पिछली पारी में '49 दिन की सरकार' के बाद केजरीवाल पर भगोड़ा होने का इल्जाम लगा. केजरीवाल ने लोगों से माफी मांगी. नई टीम बनाई. सब कुछ अपने हिसाब से प्लान किया. मिशन में जी जान से जुटे रहे. नतीजा सामने है.

[ 4 ] शख्सियत : बराक ओबामा, अमेरिकी राष्ट्रपति

क्या सीखें? सबसे पहले तो सपना देखो, फिर उसे पूरा करने के लिए संघर्ष करो.

कामयाबी का नुस्खा : बरसों तक जिस अमेरिका में अश्वेतों को हर जगह घुसने की इजाजत नहीं थी. बसों और ट्रेनों में उनकी अलग जगह तय होती थी - उन्हीं में से एक उठा, आगे बढ़ा और शिखर तक पहुंचा. एक दौर ऐसा था जब लोग हिलेरी क्लिंटन की जीत तय मान कर चल रहे थे, लेकिन जब उम्मीदवारी की दौड़ में ओबामा ने उन्हें पछाड़ दिया तो उनके प्रति लोगों की उम्मीद बढ़ी. ओबामा की जीत को एक बड़ी घटना के रूप में देखा गया. अगर राहुल ने भी देश के लोगों के लिए कोई सपना देखा है तो उसे पूरा करने के लिए उन्हें अब लीड रोल में आना होगा.

[ 5 ] शख्सियत : नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

क्या सीखें? मिशन में जो भी आड़े आए उसे बख्श देना आगे चल कर बाधा बन सकती है. आगे बढ़ने के लिए राजनीति में बड़ी लकीर बनने के साथ साथ छोटी लकीरों की काट छांट भी जरूरी है.

कामयाबी का नुस्खा : जब मोदी ने देखा कि कुछ लोग उनकी मंजिल की राह में बाधा बन रहे हैं तो उन्होंने मेनस्ट्रीम से उन्हें हटाने की रणनीति बनाई. इसके लिए शर्तें रखीं, जब तक उनकी बात नहीं मानी गई वो अपनी जिद पर अड़े रहे. कार्यकारिणी की एक बैठक में वो तब तक नहीं पहुंचे जब तक कि एक नेता को हटाया नहीं गया. अगर सिस्टम को सही करने की राह में राहुल के सामने कोई बाधा बनकर खड़ा है तो उन्हें उसका समाधान करना चाहिए. राजनीति में तो वैसे भी ये सब गलत नहीं माना जाता - मगर जब बात सुधार की है तो कड़े फैसले तो लेने ही पड़ते हैं.

[ 6 ] शख्सियत : मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री

क्या सीखें? चुपचाप अपना काम करो. पद कैसा है? इसके चक्कर में पड़ने की जरूरत नहीं, अगर माहौल नौकरी जैसा हो तो बस निभाते रहो.

कामयाबी का नुस्खा : वैसे भी राहुल गांधी मनमोहन सिंह को अपना गुरु मानते हैं. अपने खास हुनर की बदौलत मनमोहन सिंह 10 साल तक प्रधानमंत्री बने रहे. उनके शासन में देश को क्या मिला क्या नहीं - ये बहस का विषय हो सकता है - और शायद उसकी जरूरत भी नहीं है. राहुल गांधी चाहें तो उन्हीं की तरह प्रधानमंत्री पद संभाल सकते हैं. मार्गदर्शन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं ही. अगर कभी कुछ नया करना चाहें तो आराम से कर सकते हैं. कम से कम उन्हें कभी ये कहने की जरूरत तो नहीं पड़ेगी कि वो किसी और के लिए कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार हैं.

[ 7 ] शख्सियत : सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष

क्या सीखें? चीजों पर कंमाड कैसे करते हैं. कमांड कायम रखने के लिए क्या रणनीति अपनानी जरूरी है?

कामयाबी का नुस्खा : राहुल गांधी ने कम से कम इस चीज को तो सबसे करीब से देखा ही है. 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली और तबसे अब तक उसे कायम रखा है. बल्कि गुजरते वक्त के साथ वो और मजबूत होती गई हैं. हालत ये है कि अब जबकि राहुल गांधी को कमान सौंपने की बात हो रही है, कई नेता सोनिया के ही अध्यक्ष बने रहने की वकालत कर रहे हैं. इस मामले में सोनिया से राहुल काफी कुछ सीख सकते हैं.

केजरीवाल का '49 दिन' का पिछला शासन उनके लिए बड़ा एक्सपेरिमेंट साबित हुआ. हालांकि, उसी के लिए उन पर भगोड़ा होने का इल्जाम लगा. फिर उन्होंने उसके लिए माफी मांगी - और माफी भी जोरदार तरीके से मिली. राहुल के लिए अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है. अभी अभी वो '59 दिन' के एक्सपेरिमेंट से लौटे हैं - और अब उनके परफॉर्म करने की बारी है. और कुछ नहीं तो कम से कम केजरीवाल से तो उन्हें कुछ सीखना ही चाहिए. दोनों की ही प्रयोगधर्मी राजनीति में गहरी रुचि और आस्था है. राहुल अब उस दिन का इंतजार नहीं कर सकते कि जरूरत पड़ी तो माफी मांग लेंगे. जरूरी नहीं कि केजरीवाल की तरह राहुल को भी लोगों से माफी मिल पाए. माफी की भी 'एक्सपायरी डेट' होती है - उन्हें भूलना नहीं चाहिए.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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