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Updated: 29 जून, 2016 06:04 PM
बालकृष्ण
बालकृष्ण
  @Bala200
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आपने ये बात कई बार सुनी होगी कि मंच पर ज्यादा नेताओं के चढ़ जाने से मंच ही टूट गया और कुछ नेता घायल हो गया. मंच पर चढने की मारामारी यूं ही नहीं होती. मंच पर कौन बैठा है, किस लाईन में बैठा है, और किसके साथ बैठा है- ये बहुत कुछ बयान कर देती है. खासकर ये कि राजनीति में किसकी क्या हैसियत है. किसके सितारे गर्दिश में हैं और कौन सबसे बडे नेता की आंखों का तारा है – ये सब मंच पर सजी कुर्सी बयान कर देती है. मंगलवार को लखनऊ में रामगोपाल यादव के जन्मदिन का समारोह चल रहा था. हमेशा की तरह बीच की सबसे बडी कुर्सी पर मुलायम सिंह यादव बैठे थे. एक किनारे पर बैठे थे लोकसभा चुनाव हार कर राज्यसभा में पहंचाए गए रेवती रमण सिंह और कांग्रेस छोडकर किसी तरह समाजवादी पार्टी में फिर से वापसी करने वाले बेनी प्रसाद वर्मा.

लेकिन देखने लायक नजारा दूसरे किनारे पर था. मुलायम सिहं के सगे भाई और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चाचा या यूपी की राजनीति में एक पावर सेन्टर कहे जाने वाले शिवपाल सिंह यादव, उदास और अनमने होकर अहमद हसन और अमर सिंह के बीच में बैठे थे. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछले साल इन्हीं अहमद हसन से महत्वपूर्ण स्वास्थ मंत्रालय छीन लिया था. अमर सिंह की भी लंबा बुरा वक्त देखने के बाद हाल ही में पार्टी में वापसी की है.

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 रामगोपाल यादव के जन्मदिन पर आयोजित समारोह

यूं तो रामगोपाल यादव का लखनऊ में इस तरह से जन्मदिन मनाना ही अपने आप में नयी बात है. हमेशा दिल्ली की राजनीति करने वाले रामगोपाल यादव का लखनऊ में कोई घर तक नहीं है और वो वीवीआईपी गेस्ट हाउस में ही रहते हैं. लेकिन आजकल लखनऊ के सड़क चौराहों पर रामगोपाल यादव को जन्मदिन के पोस्टर बैनर भरे पडे हैं. माना जा रहा है कि रामगोपाल यादव के लखनऊ आकर जन्मदिन मनाने का दो मकसद है. एक तो चुनाव के पहले उनके लिए माहौल बनाना और दूसरा कौमी एकता दल को लेकर पार्टी और परिवार में जो खींचतान हुई है उसपर पर्दा डालना. तय हुआ कि जन्मदिन का मौका होगा तो मुलायम परिवार के लोग गिले शिकले भूल कर साथ आ ही जाएंगें.

लेकिन सबके मन में शंका थी कि नाराज शिवपाल कहीं जन्मदिन से भी कन्नी न काट लें. इसलिए इस मौके पर रामगोपाल यादव की किताब - संसद में मेरी बातें - के विमोचन के लिए जो कार्ड छपा था उसमें भी शिवपाल यादब का नाम नहीं था.

शिवपाल किसी तरह आ तो गए, लेकिन भाई के जन्मदिन का केक भी शिवपाल के मन की कडवाहट को मिटा नहीं सका. बर्थडे पार्टी में भी वह तब पहुंचें जब केक कट चुका था. उनकों लेने के लिए खासतौर पर अमर सिंह को उनके घर भेजा गया कि कहीं छोटे नेतीजी ने इस पार्टी से भी कन्नी काट ली तो अगले दिन इसे खबरों की सुर्खी बनने से नहीं बचाया जा सकता. शिवपाल आए तो पहले मंच के बजाए नीचे की कुर्सी की तरफ बढे. लेकिन मुलायम और रामगोपाल उन्हें मंच पर लेकर गए और आगे लगी कुर्सियों पर बिठा दिया. लेकिन उन्हें यह कुछ ज्यादा रास नहीं आया और वह किनारे बैठे अमर सिंह के बगल जाकर बैठ गए. पूरे समय माहौल से कटे-कटे और अनमने वहां मौजूद रहे. न किसी से बोलना और न किसी से मिलना. माइक पर बोलने के लिए बुलाया गया तो अखिलेश यादव का नाम तक लेना उचित नहीं समझा. इशारों-इशारों में इतना कह गए कि आज के युवा खुद को समाजवादी कहते तो हैं लेकिन इसका मतलब तक नहीं समझते. यही नहीं, युवा समाजवादियों को उन्होंने लोहिया के विचारों को पढना की सलाह भी दे डाली.

शिवपाल के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया अमर सिंह ने. अमर ने माइक थामा तो बोले शिवपाल तो पार्टी की रीढ़ हैं. मनमुटाव की खबरों को उन्होंने मी़डिया की करतूत बताते हुए कहा कि हम ऐसे परिवार का हिस्सा हैं जो भले ही खाना अलग खाते हों लेकिन जरूरत पडने पर दुश्मन को मिल कर मारते हैं. अमर सिंह की बातों पर शिवपाल मुस्कुराए तो सही लेकिन उनका मूड फिर भी पारदर्शी नहीं हुआ.

बर्थडे पार्टी में अखिलेश ने चाचा की नराजगी दूर करने के लिए शायरी का सहारा लेते हुए अर्ज कर दिया कि मुहब्बत में जुदाई का भी हक है. अफसोस शिवपाल तो जैसे ठान कर आए थे कि जन्मदिन में हाजिरी भले लगा दें, केक की मिठास से भी अपने अंदर बैठी कड़वाहट को मिटने नहीं देंगे.

लेखक

बालकृष्ण बालकृष्ण @bala200

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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