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Updated: 07 जुलाई, 2023 04:57 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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'चौबीस के चौरस' की चुनावी बिसातें सियासी आखाड़ों में बिछ चुकी हैं जिसमें भाजपा केंद्र में इस बार हैटिक लगाना चाहती है. पर, डगर उसके लिए कितनी कठिन है, इसका अंदाजा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंदरूनी सर्वे से साफ हो गया है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके तुरंत बाद लोकसभा का बिगुल बजना है. बहरहाल, प्रत्येक चुनाव से पहले संघ वोटरों की नब्ज अपने स्तर पर टटोलता है. जांच होती है कि हवा किस ओर बह रही है. पर उनके सर्वे ने आगामी चुनावों का आंकलन लगा लिया है जो ज्यादा अच्छा नहीं है. आंकलन की सूचना से प्रधानमंत्री को भी अवगत करवा दिया है. सूत्र बताते हैं कि संघ ने अपने सर्वे में पाया है कि भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिए इस वक्त एक ही सिंगल चेहरा है और वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. तय है अगर 2024 में भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करती है तो 180 सीटें जीत सकती है. अगर ऐसा नहीं होता है तो 30-35 सीटों पर सीधा नुकसान होगा. भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 80 में 80 सीटें जीतना का जो टारगेट तय किया हुआ, वह सर्वे में पूरा नहीं होता दिखा है. वहां, करीब 20 सीटें कम आती दिख रही हैं.

Narendra Modi, BJP, Lok Sabha Election, JP Nadda, RSS, Survey, Congressपीएम मोदी परेशान हैं वजह संघ का वो सर्वे है जिसने भाजपा के सामने सवालों की झड़ी लगा दी है

संघ के सर्वे के बाद भाजपा में खलबली है. तभी, प्रधानमंत्री मणिपुर जैसी हिंसा को भी इग्नोर करके 'मेरा बूथ, सबसे मजबूत' जैसे कार्यक्रम में पहुंचकर कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं. प्रधानमंत्री अगले चुनाव में कोई चूक नहीं चाहते. तभी, पिछले सप्ताह उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह व एकाध और शीर्ष नेताओं को अपने सरकारी आवास प्रधानमंत्री कार्यालय में बुलाकर मैराथन बैठक की. बैठक करीब पांच-पांच घंटे चली, जिसमें मंत्रिमंडल विस्तार, इस महीने के तीसरे सप्ताह में शुरू हो रहे मानसून सत्र में पार्टी की मजबूती और चुनाव में तैयारियों को लेकर गहन विचार-विमर्श किया.

बैठक में विशेष चर्चा आरएसएस के चुनावी सर्वे पर हुई, समीक्षा हुई कि जिन क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ कमजारे हुई है या हो रही है? उसमें फिर से जान फूंकी जाए. इसके लिए कार्यकर्ताओं को अभी से चुनावी टास्क देने की रणनीतियों पर चर्चाएं हुई. दरअसल, मोदी किसी पर आंखमूद कर विश्वास नहीं करते, चुनाव छोटा हो या बड़ा, लड़ने की जिम्मेदारी खुद लेते हैं. कर्नाटक हार ने उनको अंदर तक झकझोर दिया है. जहां उनकी इस बार सभी रणनीतियां धरी रह गईं.

अगले चुनाव में बजरंग बली जैसे धार्मिक मुद्दों को हवा देनी चाहिए या नहीं? इस पर भी प्रधानमंत्री समीक्षा कर रहे हैं. बहरहाल, संघ-भाजपा नेताओं की मैराथन मंत्रणा में यह भी सामने आया है कि प्रधानमंत्री की अगुआई में 180 को सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा 272 में बदलने से अधिक आसान है मोदी के बिना 150 सीटों को सहयोगियों की मदद से बहुमत में बदलना.

दिल्ली में पिछले सप्ताह भाजपा और संघ नेताओं के बीच एक गुपचुप करीब पांच घंटे की बैठक हुई, जिसमें संघ ने कहा कि भविष्य में जो भी चुनावी सर्वे कराए जाएं वह निजी एजेंसियों के जरिए हां, और उनमें किसी न किसी रूप से स्वयंसेवक के लोग जुड़े हों. इस पर भाजपा के किसी भी नेता ने असहमति नहीं जताई. पर मोदी के साथ 180 के आंकड़े में बहुमत के लिए जरूरी और लगभग 100 सांसदों के जुगाड़ यानी सहयोगी दलों को जुटाने की दिक्कत जरूर गिनाई.

साथ ही यह तर्क भी दिया गया कि मोदी को प्रोजेक्ट किए बिना यदि सर्वे के मुताबिक भाजपा 150 सीट जीतती है तो बहुमत के लिए जरूरी बाकी लगभग 120-25 सांसदों के लिए सहयोगियों को जुटाना अपेक्षाकृत आसान है. गड़बड़ाए सियासी समीकरण को दुरूस्त करने के लिए मोदी जल्द ही अपने मंत्रीमंडल का विस्तार करने वाले हैं जिनमें लगभग दर्जनभर मंत्रियों की छुट्टी होगी. हटाए गए मंत्रियों को संगठन की जिम्मेदारी दी जाएगी.

वहीं, संगठन से कुछ नेताओं को मंत्रीमंडल में शामिल करने की भी संभावनाएं हैं. उनका विशेषकर फोकस छत्तीगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम व मध्यप्रदेश जैसी चुनावी प्रदेशों पर है. यहां से नए चेहरों को मंत्री बनाया जा सकता है. इसके लिए प्रधानमंत्री आज यानी 3 जुलाई को शाम के वक्त बड़ी बैठक करेंगे. हो सकता है जुलाई के इसी पखवाड़े में मंत्रीमंडल का विस्तार कर दिया जाए.

महाराष्ट्र से शिंदे गुट को खुश करने के लिए 2 नेताओं को केंद्रीय मंत्री बनाने पर सहमति बन चुकी है, इसके लिए पिछले सप्ताह आनन-फानन में एकनाथ शिंदे को दिल्ली तलब किया. दो मंत्री कौन होंगे, इसकी जिम्मेदारी शिंदे पर है वह तय करेंगे? इसके अलावा हो सकता है चिराग पासवान को भी मंत्री बनाया जाए, क्योंकि बिहार में भाजपा नीतीश कुमार से अलग होने के बाद बेहद कमजोर पड़ी है.

बिहार को मजबूत करने के लिए भाजपा लोजपा के दोनों गुटों को साधना चाहती है. बिहार के नेताओं को केंद्रीय संगठन में अहम भूमिकाएं दी जाएंगी. प्रधानमंत्री ने जेपी नड्डा को भी बड़ा टास्क दिया हुआ है. उनसे कहा गया है कि वह सभी सांसदों से उनके क्षेत्रों से फीडबैक लें और जहां कमजोरी लगे वहां संगठन के बड़े नेता को लगाया जाए, उनका अभी से वहां डेरा डलवा दें.

एनडीए से अलग हुए दलों को वापस लाने की भी कवायद शुरू हो गई हैं. अकाली दल हो सकता है फिर से एनडीए का हिस्सा बन जाए, क्योंकि मंत्रिमंडल विस्तार में हरसिमरत कौर बादल को मंत्री बनाने की चर्चाएं गर्म हैं. जीतन राम मांझी आ ही गए हैं. एकाध दल और हैं जिन पर डोरे डालने आरंभ हो गए हैं. आगामी चुनाव आसान नहीं है, इस बात से प्रधानमंत्री अच्छे से वाकिफ हो गए हैं. मानसून सत्र में एक सबसे बड़ी लड़ाई केंद्र को दिल्ली सरकार के लिए लाए अध्यादेश को पारित कराने की रहेगी.

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