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Updated: 23 जून, 2021 10:52 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज करी. इस जीत के साथ ही उत्तर प्रदेश का मुखिया कौन होगा, के कयास लगाए जाने लगे. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद देश के बहुतायत राज्यों में भाजपा ने कमाल का प्रदर्शन किया था. दरअसल, तकरीबन हर विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाता था. नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़े गये यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मुख्यमंत्री के नाम का चुनाव भाजपा के लिए सिरदर्द से कम नहीं होने वाला था. मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का दावा सबसे मजबूत था. संगठन की कमान संभालने वाले केशव प्रसाद मौर्य को इस जीत श्रेय दिया जा रहा था. लेकिन, पार्टी आलाकमान ने मनोज सिन्हा के नाम पर मुहर लगा दी थी. इन सबके बीच अचानक से एक नाम सामने आया 'योगी आदित्यनाथ'. उसके बाद जो कुछ हुआ, वो सबके सामने है.

मुख्यमंत्री पद के हाथ से निकलने के बाद केशव प्रसाद मौर्य के साथ योगी आदित्यनाथ की अदावत समय-समय पर सामने आती रही है. बीते दो महीनों में भाजपा और संघ के बीच बैठकों का दौर, भाजपा के नेताओं व संघ के पदाधिकारियों का लखनऊ दौरा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दिल्ली में हाईकमान के साथ बैठकों ने पार्टी के अंदर असंतोष और असहमतियों को सामने ला दिया. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तो जैसे इसी मौके की ताक में थे. उन्होंने घोषणा कर दी कि 2022 में नेतृत्व कौन करेगा, इसका फैसला पार्टी हाईकमान को करना है. जिसके बाद भाजपा और संघ ने 'लंच डिप्लोमेसी' के जरिये इस विरोध को खत्म करने का बीड़ा उठाया. पार्टी और संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ योगी आदित्यनाथ ने केशव मौर्य के घर पहुंचकर भोजन किया. जिसके बाद मौर्य की ओर से कहा गया कि वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ थे, हैं और रहेंगे.

योगी को सर्वस्वीकार्य नेता बनाने में जुटा संघ

इस बात को मानने से शायद ही इनकार किया जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री का पद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की वजह से नहीं, बल्कि संघ की इच्छा से मिला था. उत्तर प्रदेश की रगों में अंदर तक बसी जाति और धर्म की सियासत को खत्म करने के लिए संघ ने योगी आदित्यनाथ के नाम का प्रयोग किया था. यही वजह रही कि मनोज सिन्हा का नाम फाइनल होने के बाद योगी को बुलावा भेजा गया. दरअसल, अपनी स्थापना के समय से ही संघ पूरे देश में सोशल इंजीनियरिंग के जरिये हिंदुत्व के आगे जाति को एक गौड़ मुद्दा बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. योगी आदित्यनाथ के रूप में संघ के हाथ एक ऐसा चेहरा लगा है, जो जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर सकता है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने अपने कौशल से इसे काफी हद तक पूरा कर दिखा भी दिया है. विपक्ष के जातिवादी होने के आरोपों को छोड़ दिया जाए, तो सूबे के मुखिया पर किसी जाति विशेष से लगाव के आरोप शायद ही लगे हैं. कहना गलत नहीं होगा कि संघ योगी आदित्यनाथ को भविष्य में मिलने वाली 'बड़ी भूमिका' के लिए तराशने में लगा हुआ है.

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का 'हस्तक्षेप'

सूत्रों के हवाले से कहा गया कि इस पूरी भागादौड़ी में योगी आदित्यनाथ ने सीधे संघ प्रमुख मोहन भागवत तक अपनी बात पहुंचा दी थी. योगी ने संघ को स्पष्ट कर दिया था कि वह कैबिनेट विस्तार जैसे फैसलों पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का हस्तक्षेप मंजूर नहीं करेंगे. योगी आदित्यनाथ के हवाले से कहा गया कि प्रदेश सरकार के अब तक के कार्यकाल में केंद्र के हर फैसले का पालन किया गया है. सरकारी कामकाज से लेकर नियुक्तियों में भी केंद्र का दखल बना रहा है. वहीं, अगर अरविंद शर्मा को गृह मंत्रालय दे दिया जाएगा, तो एक मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी शक्तियां ही क्या रह जाएगी? केंद्र सरकार के भारी दबाव के बीच उन्होंने इस्तीफा सौंपने की बात भी कह डाली थी. जिस पर संघ तैयार नहीं हुआ और भाजपा नेतृत्व को इस मामले पर पीछे हटने की सलाह दी. जिस तरह योगी को मुख्यमंत्री बनने के लिए संघ का वरदहस्त मिला था, इस मामले पर भी संघ की ओर से छूट दे दी गई.

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 'केशव' के द्वार पर 'योगी' ने पहुंचकर उनकी नाराजगी दूर कर दी है.2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 'केशव' के द्वार पर 'योगी' ने पहुंचकर उनकी नाराजगी दूर कर दी है.

रणनीति के तहत विरोध को दी गई हवा

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 'केशव' के द्वार पर 'योगी' ने पहुंचकर उनकी नाराजगी दूर कर दी है. एकजुटता के जिस संदेश का भाजपा और संघ को इंतजार था, वो भी सबके सामने आ चुका है. लेकिन, इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अहम भूमिका संघ की रही है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा दिल्ली तलब किए जाने के बाद योगी आदित्यनाथ शांत ही नजर आए. माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में आए इस सियासी भूचाल को हवा देने का काम संघ की ओर से ही किया गया था. योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठाने और उनसे असहमति रखने वालों को सामने लाने के लिए यह पूरा घटनाक्रम एक फिल्मी पटकथा की तरह लिखा गया. कहा जा रहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले संघ की ओर से साफ निर्देश था कि सभी समीकरणों को दुरुस्त कर लिया जाए. इसमें संगठन के अंदरुनी समीकरण भी शामिल थे.

इसी के तहत योगी आदित्यनाथ पर अरविंद शर्मा को कैबिनेट में शामिल करने का दबाव बनाया गया. भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष और प्रभारी राधा मोहन सिंह के जरिये इस दबाव को और बढ़ाया गया. संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की तीन दिवसीय लखनऊ यात्रा के दौरान सीएम योगी प्रदेश का दौरा करने चले गए. जिसके बाद उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा तक बदलने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया. इन सबके बाद भी योगी आदित्यनाथ अपने फैसले पर नहीं झुके. जिसकी वजह से मजबूर होकर अरविंद शर्मा को योगी सरकार की जगह संगठन में जगह दी गई. वहीं, असंतोष के स्वरों को संघ ने खुद आगे बढ़कर शांत करने का निर्णय लिया.

मुख्यमंत्री आवास पर हुई बैठक में सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच मनमुटाव सामने आया था. जिसके दूसरे ही दिन संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ केशव प्रसाद मौर्य के घर पर 'लंच डिप्लोमेसी' के जरिये मामले को सुलझाया गया. दरअसल, इस तरह की खींचतान के चलते भाजपा के साथ ही संघ की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी थी. योगी आदित्यनाथ के अलावा उत्तर प्रदेश में जितने भी चेहरे हैं, वो एक खास जाति के चेहरे को तौर पर जाने जाते हैं. जो संघ की दूरगामी योजना में कहीं से भी फिट नहीं बैठते हैं. यही वजह रही कि योगी आदित्यनाथ को संघ का भरपूर साथ मिला. तय पहले ही हो चुका था कि सीएम योगी ही यूपी में पार्टी का चेहरा होंगे. लेकिन, केशव प्रसाद मौर्य की नाराजगी खत्म होने के साथ तमाम कयासों पर पूर्ण विराम लग गया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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