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Updated: 05 जुलाई, 2021 04:22 PM
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पंजाब को लेकर कांग्रेस आलाकमान का फैसला अभी सामने नहीं आया है, लेकिन लगता है संबंधित पक्षों को भनक पहले ही लग चुकी है. कांग्रेस की तरफ से बताया गया था कि अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी 10 जुलाई तक पंजाब के मामले में आखिरी फैसला ले सकती हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा की मदद से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मुलाकात के बाद नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) फॉर्म में लौट आये हैं - और कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ ट्विटर पर ताबड़तोड़ बैटिंग भी शुरू कर चुके हैं. सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को नसीहत देते हुए पंजाब के बिजली संकट पर एक ही साथ 9 ट्वीट कर डाले हैं.

नवजोत सिद्धू जहां दिल्ली में डेरा डाले रहे, वहीं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बगैर मिले लौटा दिये जाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) पंजाब में अपने काम में लग गये. नतीजा ये हुआ कि सिद्धू को गांधी परिवार में एक्सेस मिलने के साथ ही अमरिंदर सिंह ने अपनी चालें चलनी शुरू कर दी.

कैप्टन ने चाल भी ऐसी चली है कि सिद्धू के मंसूबों को तो सीधे सीधे काउंटर करे ही, अपने खिलाफ कांग्रेस आलाकमान के किसी भी कदम को आसानी से न्यूट्रलाइज भी कर दे - नौबत ये हो चली है कि आलाकमान का फैसला आने के पहले ही कैप्टन ने सिद्धू के खिलाफ नया पेंच फंसा दिया है.

अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे राहुल गांधी ने सिद्धू को मनाने के लिए जो भी वादे कर रखे हैं उन पर अमल करने में भी काफी अड़चन आ सकती है - ये तो लगने लगा है कि राहुल गांधी ने पंजाब का झगड़ा सुलझाने की जगह और बढ़ा दिया है!

ज्यों ज्यों दवा की त्यों त्यों मर्ज बढ़ता गया!

भीषण गर्मी के दौरान पंजाब में बिजली की डिमांड इतनी हो गयी है कि पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड को मजबूरन बिजली कटौती करने के साथ ही उद्योगों पर पाबंदियां तक लगानी पड़ रही हैं. बिजली को लेकर विपक्ष जहां कांग्रेस सरकार पर हमलावर हो गया है, लोगों में भी गुस्सा बढ़ रहा है.

बिजली संकट की वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने कुछ पाबंदियों के साथ सरकारी दफ्तरों का समय भी बदल कर सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक कर दिया है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सभी सरकारी दफ्तरों को संभल कर बिजली के इस्तेमाल की सलाह दी है. मुख्यमंत्री के मुताबिक हालात बहुत विकट हैं क्योंकि पंजाब में बिजली की डिमांड 14,500 मेगावॉट तक जा पहुंची है.

navjot singh sidhu, rahul gandhi, capt. amrinder singhराहुल गांधी की पंजाब पॉलिटिक्स को एक बार फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चैलेंज किया है!

नवजोत सिंह सिद्धू ने बिजली संकट को अपने लिए राजनीतिक मौका बना डाला है - वैसे भी सिद्धू को तो कैप्टन के खिलाफ बोलने के लिए किसी न किसी मौके की ही तलाश रही होगी. बस, ऐसा करने के लिए सिद्धू को अपने कैप्टन राहुल गांधी की परमिशमन की दरकार रही और वो एक मुलाकात में ही मिल गया.

सिद्धू का कहना है कि अगर सरकार सही दिशा में काम करती तो पंजाब में बिजली कटौती या दफ्तरों का समय बदलने की जरूरत ही नहीं पड़ती. सिद्धू ने चीजों को दुरूस्त करने के लिए सबसे पहले पिछली बादल-बीजेपी सरकार में हुए बिजली खरीद समझौते को रद्द करने की मांग की है.

बिजली संकट पर अपने सुझाव सिद्धू ने एक के बाद एक कुल 9 ट्वीट में दिये हैं - और आठवें में दिल्ली मॉडल का जिक्र किया है जिसकी कोई और भी राजनीति हो सकती है.

अपने आठवें ट्वीट में सिद्धू लिखते हैं, 'पंजाब में 9 हजार करोड़ पावर सब्सिडी दी जाती है - जबकि दिल्ली में सिर्फ 1699 करोड़ ही. अगर पंजाब भी दिल्ली मॉडल को फॉलो करे तो केवल 1600 - 2000 करोड़ सब्सिडी ही देनी होगी.'

पंजाब के बिजली संकट के बीच सिद्धू के दिल्ली मॉडल के जिक्र के राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं क्या? वैसे सिद्धू ये जरूर कहते हैं कि पंजाब के पास अपना मॉडल होना चाहिये किसी और का कॉपी मॉडल नहीं. ध्यान देने वाली बात ये है कि AAP नेता अरविंद केजरीवाल ने अभी अभी पंजाब में सत्ता में आने पर बिजली के दिल्ली जैसे मॉडल का वादा किया है - और 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की बात कही है.

बताया तो ये गया है कि कांग्रेस नेतृत्व ने पंजाब कमेटी के माध्यम से कैप्टन अमरिंदर सिंह से 200 यूनिट बिजल मुफ्त देने के घोषणा करने को कहा था. कांग्रेस नेतृत्व की एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर सरकार के कामकाज को हाईलाइट कराने की अपेक्षा थी, लेकिन कैप्टन से ये चूक हो गयी और वो अरविंद केजरीवाल से इस मामले में पिछड़ गये - अब सिद्धू बिजली का दिल्ली मॉडल समझा रहे हैं और ये भी बता रहे हैं कि पैसा बचाकर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी सुविधाओं पर खर्च किया जा सकता है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह जितने तो नहीं, लेकिन राहुल गांधी नाराज तो नवजोत सिंह सिद्धू से भी थे, हालांकि, तभी तक जब तक कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने पंजाब कांग्रेस के संकट को अपने हाथ में नहीं लिया था - और सिद्धू की बातों से इत्तेफाक रखते हुए राहुल गांधी के साथ साथ सोनिया गांधी को नहीं समझाया था.

देखा जाये तो पंजाब संकट के समाधान का जो रास्ता निकाला गया है वो कांग्रेस का अपना एक्सक्लूसिव मॉडल है - और हमेशा ही फेल हो जाने के बावजूद ये मॉडल कभी मॉडिफाई करने की जरूरत भी नहीं समझी जाती.

ऐसे हर झगड़े के बाद गांधी परिवार एक पक्ष के लिए दरवाजे बंद कर देता है. फिर अपने फेवरेट पक्ष के मनमाफिक किसी नतीजे पर पहुंच भी जाता है. बाद में बीच का रास्ता निकालने के लिए एक कमेटी बनायी जाती है. कमेटी का काम जैसे भी संभव हो सके मामले को लंबे समय तक टाले रखना होता है - और फिर वही झगड़ा एक न एक दिन विस्फोटक रूप ले लेता है.

पंजाब के केस में भी बिलकुल ऐसा ही हुआ है - और इससे पहले राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे झगड़ों में भी मिलती जुलती ही कहानी सुनने में आती है. होता ये भी है कि जब भी जो भी अपने विरोधी गुट पर भारी पड़ता है, आलाकमान पर दबाव डाल कर अपने मनमुताबिक काम करा लेता है.

2017 से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रताप सिंह बाजवा को हटाने के लिए मजबूर कर खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. ऐसा ही मिलता जुलता फैसला सोनिया गांधी को 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों से कुछ ही दिन पहले लेना पड़ा था - और मान कर चलना चाहिये कि 2023 से पहले राजस्थान में भी सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत के झगड़े में भी ऐसा ही हो सकता है.

पंजाब में भी 'ज्यों ज्यों दवा की त्यों त्यों मर्ज बढ़ता गया' वाला हाल हुआ है - और राहुल गांधी के कैप्टन अमरिंदर सिंह को भरोसे में नहीं का ही ये नतीजा भी देखने को मिल रहा है.

क्या आलाकमान जोखिम उठाने को तैयार होगा?

जब नवजोत सिंह सिद्धू दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की कोशिश में लगे थे और आखिरकार कामयाब भी रहे, पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अपनी चाल चल रहे थे - और अपने समर्थक नेताओं के साथ लंच का कार्यक्रम भी अपने लक्ष्य के प्रति सतर्कता बरतते हुए ही बनाया था. बताते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने ही कैप्टन को नेताओं से मिल कर बातचीत करने का मैसेज दिया था. लगता है कैप्टन को मुलाकात के लिए नेताओं की कोई सूची नहीं दी गयी थी और उसी का फायदा उठाते हु्ए वो लंच डिप्लोमेसी में नयी पॉलिटिक्स कर डाले.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लंच पर कांग्रेस के हिंदू नेताओं के बुलाया था और उसका भी खास मकसद था - उनकी तरफ से एक खास डिमांड. कैप्टन ने जो डिमांड पंजाब कमेटी के सामने रखी थी, उसे ही अब पंजाब के हिंदू नेताओं के हवाले से जगजाहिर कर दिया है.

खबर है कि लंच पर मिलने वाले नेताओं ने नया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हिंदू समुदाय से होने की मांग की है. ध्यान देने वाली बात ये है कि इस मीटिंग में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ नहीं पहुंचे थे - ये भी हो सकता है उनको न्योता नहीं मिला हो. असल में सुनील जाखड़ भी हिंदू समुदाय से ही हैं.

पंजाब में हिंदुओं की आबादी 39 फीसदी है. नेताओं की शिकायत रही कि पंजाब में कांग्रेस को जीत दिलाने के बावजूद पार्टी ने जैसे मुंह फेर ली हो. नेताओं ने याद दिलाया कि बठिंडा, अमृत्सर, मोहाली, लुधियाना और गुरदासपुर जैसे शहरों में हिंदू बहुल आबादी ही है - और उनकी अनदेखी कांग्रेस को बहुत भारी पड़ सकती है.

नौबत यहां तक आ पहुंची है कि कुछ नेताओं ने सुखबीर बादल से भी मुलाकात करने की बात भी बतायी है - और चेतावनी दी है कि अगर हिंदू समुदाय की कांग्रेस में उपेक्षा जारी रही तो वे वैकल्पिक उपायों के लिए मजबूर हो सकते हैं. बीजेपी ने पहले ही दलित मुख्यमंत्री की चर्चा छेड़ कर सारे दलों के लिए मुसीबत खड़ी कर रखी है.

सिद्धू को मनाने के लिए प्रियंका गांधी ने जो प्रस्ताव रखा था वो मंजूर होने के बाद ही बात आगे बढ़ी. तभी प्रियंका गांधी वाड्रा ने राहुल गांधी से मुलाकात का इंतजाम किया और सोनिया गांधी से मंजूरी ली.

दरअसल, खबर आयी थी कि सिद्धू को पंजाब कांग्रेस में सम्मानजनक तरीके से एडजस्ट किया जाना तय हुआ है. बाद में मालूम हुआ कि ये सम्मानजनक तरीका सिद्धू को पंजाब कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया जाना हो सकता है या फिर चुनाव कैंपेन कमेटी का नेतृत्व सौंपा जाना.

कैप्टन अमरिंदर सिंह को जब भी इस बात की भनक लगी हो, लेकिन ये सब मंजूर कैसे होता. ये तो झगड़े की नयी जड़ होती - और दोनों ही स्थितियों में सबसे ज्यादा बवाल कांग्रेस उम्मीदवारों के टिकट बंटवारे के वक्त होना भी तय है. हरियाणा विधानसभा चुनाव के वक्त सोनिया गांधी ने ऐसा ही किया था. भूपिंदर सिंह हुड्डा को कैप्टन अमरिंदर की तरह पूरी जिम्मेदारी नहीं सौंपी थी, बल्कि कुमारी शैलजा के साथ बांट दिया था. तब सोनिया गांधी की करीबी समझी जाने वाली कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष और हुड्डा को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया गया. जब टिकटों के बंटवारे का समय आया तो हुड्डा ने पूरी मनमानी की और शैलजा अपने आदमियों को टिकट दिलाने के लिए तरस कर रह गयी थीं.

कैप्टन ने एक ही चाल से सिद्धू के दोनों अरमानों पर पानी की तेज धार छोड़ दी है. कैप्टन अमरिंदर की तरह ही सिद्धू भी जट्ट सिख हैं, जबकि मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ हिंदू हैं. सुनील जाखड़ को भी बदले जाने की चर्चा काफी दिनों से चल रही थी. सिद्धू के दिल्ली में बढ़ते दखल को देखते हुए प्रताप सिंह बाजवा ने कैप्टन की तरफ दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया था. हो सकता है बाजवा को अपने लिए प्रदेश अध्यक्ष पद की दोबारा उम्मीद जगी हो.

बहरहाल, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कैप्टन की पंसद भी सामने आ गयी है - एक नाम तो पूर्व केंद्रीय मंत्री और आनंदपुर साहिब से लोक सभा सांसद मनीष तिवारी का है और दूसरी पसंद, कैप्टन के कैबिनेट साथी विजय इंदर सिंगला का नाम है. मनीष तिवारी फिलहाल कांग्रेस के सीनियर राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.

पिछली बार तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस के टूट जाने का डर दिखा कर सब कुछ अपने मनमाफिक कराया था - और एक बार फिर हिंदू कार्ड चल कर पहले से ही 'मुस्लिम पार्टी' की तोहमत ढो रहीं सोनिया गांधी को नये सिरे से पसोपेश में डाल दिया है.

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