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Updated: 14 नवम्बर, 2019 09:15 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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राफेल डील (Rafale Deal) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ अवमानना केस (Rahul Gandhi Defamation case) में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला (Supreme Court on Rafale Deal) सुना दिया है. राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राफेल खरीद फरोख्त मामले में करप्शन के आरोप को लेकर यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण की याचिका को खारिज कर दिया. मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं लगता कि राफेल विमान सौदे के मामले में एफईआर दर्ज करने या बेवजह जांच का आदेश देने की जरूरत है. ध्यान रहे कि राफेल को लेकर कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 को एक फैसला दिया था जिसके बाद ये पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गई थी. वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी द्वारा कोर्ट की अवमानना के मामले को भी अदालत ने खारिज कर दिया और राहुल गांधी को भविष्य में ध्यान रखने को कहा है. राहुल गांधी द्वारा माफी मांग लिए जाने के बाद कोर्ट ने इस मामले को बंद कर दिया और भविष्य में राहुल को ध्यान रखने को कहा है. गांधी ने कहा था कि, कोर्ट ने भी माना है कि चौकीदार चोर है. इसके बाद मीनाक्षी लेखी ने उनके खिलाफ केस दायर किया था.

राहुल गांधी, राफेल, सुप्रीम कोर्ट, फैसला, मोदी सरकार,Rahul Gandhi  राफेल पर सुप्रीम कोर्ट ने देश को वो जवाब दिया जो राहुल को 4 महीना पहले ही पता चल गया था

राफेल विमान सौदे को 2019 के आम चुनाव के लिए कांग्रेस की तरफ से एक बड़े और अहम मुद्दे के रूप में पेश किया गया था. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दो पीआईएल दायर की गई थी जिसमें इस पूरे सौदे में करप्शन का आरोप लगाया गया था. साथ ही विमान की कीमत, कंपनी की भूमिका और कांन्ट्रैक्ट को लेकर भी कई सवाल खड़े किए गए थे. तब मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का तर्क था की इस मामले में वो दखल नहीं दे सकती. कोर्ट के इस फैसले के बाद पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी. याचिका दायर करने वाले लोगों यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि केंद्र सरकार ने कोर्ट को गुमराह किया है.

गौरतलब है कि राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस पार्टी विशेषकर राहुल गांधी ने  पीएम मोदी और उनकी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. तब कांग्रेस की तरफ से लगाए गए सभी आरोप विमान खरीदने के दौरान नाजायज तरीका अपनाने से जुड़े था. वहीं बात अगर केंद्र सरकार की हो तो केंद्र सरकार शुरू से ही कांग्रेस के इन आरोपों को बेबुनियाद बता रही है.

विपक्ष ने मोदी सरकार द्वारा की गई इस डील को एक बेहद महंगी डील बताया था जिसके जवाब में मोदी सरकार ने कहा था कि उसने ये डील यूपी से ज्यादा बेहतर कीमतों पर की. विपक्ष इस डील से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग कर रहा था और तर्क दे रहा था कि जब ये डील सही तरीके से हुई है तो इससे जुड़े दस्तावेज छुपाए क्यों जा रहे हैं.

अब जब इस मामले में अंतिम फैसला आ गया है तो हमारे लिए भी इन पक्षों पर बात करना बहुत जरूरी हो जाता है जिनके बाद हम इस बात को समझ जाएंगे कि चाहे वो राफेल खरीद फरोख्त का मामला रहा हो या फिर राहुल गांधी से जुड़ा अवमानना का मामला राहुल गांधी और टीम ने जनता और सुप्रीम कोर्ट दोनों को पहले ही कन्विंस कर लिया था आज आए फैसले के लिए.

राहुल गांधी, राफेल, सुप्रीम कोर्ट, फैसला, मोदी सरकार,Rahul Gandhi    राफेल पर आए फैसले पर पुनर्विचार याचिका डालने वाले प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी

चुनाव से पहले बड़ा मुद्दा, दाम को लेकर कन्फ्यूजन फिर पसरी ख़ामोशी

2019 के लोक सभा चुनाव पर अगर नजर डाली जाए तो राफेल को कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक बड़े मुद्दे की तरह पेश किया जाए. बात अगर राहुल गांधी की हो तो वायनाड से लेकर अमेठी और राय बरेली तक मंच कोई भी रहा हो राहुल गांधी ने इस बारे में बात की और खूब बात की और ऐसा करते हुए उन्होंने सरकार खासतौर से देश के प्रधानमंत्री मोदी को अपने सवालों की जद में लेने की कोशिश की.

कई मौके ऐसे आए जब उन्होंने ये तक बताया कि सौदा कितने करोड़ का हुआ? उससे अनिल अम्बानी को कितना फायदा हुआ और कितने पैसे अनिल अंबानी की जेब में डाले गए. राहुल जिस वक़्त ये बातें कर रहे थे कई मौकों पर उनकी बातों में विरोधाभास दिखा. इस बात को हम एक उदहारण के जरिये समझ सकते हैं. मान लीजिये राहुल गांधी ने कभी इस मुद्दे को लेकर वायनाड में रैली की हो तो उस रैली में उनके द्वारा उठाए गए फिगर उस रैली से अलग होते जो उन्होंने रायबरेली में की. यानी तमाम मौके ऐसे आए जब देश के प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के लिए राहुल और कांग्रेस पार्टी दोनों ने झूठ का सहारा लिया.

राहुल इस बात को भूल गए कि जब भी आरोप लगाए जाए स्पष्ट रहा जाए इसे हम बोफोर्स से भी समझ सकते हैं. बोफोर्स मामले में जब आरोप लगे तो शुरू से लेकर अंत तक मामला 64 करोड़ पर लटका रहा जोकि राफेल से खासा अलग है. बात अगर वर्तमान की हो तो 2019 के लोक  सभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद से कांग्रेस इस मुद्दे प् बिलकुल चुप है. अब इसे लेकर कोई बात नहीं हो रही. राफेल जैसे अहम मसले पर ख़ामोशी पसरी है. आज जबकि सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना चुकी है तो कह सकते हैं कि ये चुप्पी ही वो कारण हैं जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आधार बनी.

राफेल को लेकर राहुल का एजेंडा अलग टीम की राहें अलग

ये इस मामले का सबसे अहम पहलू है. राफेल को लेकर राहुल की मंशा कुछ और थी जबकि बात अगर उस टीम की हो जिसमें प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी हैं.उनका एजेंडा अलग था. राहुल पीएम मोदी और उनकी ईमानदारी पर हमला कर रहे थे जबकि राफेल की खरीद फरोख्त को लेकर पीएमओ की कार्यप्रणाली टीम के निशाने पर थी. बात समझने के लिए हम राहुल गांधी के उस इंटरव्यू का भी जिक्र कर सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि चूंकि देश की जनता पीएम मोदी को ईमानदार नेता के रूप में देखती है.

राहुल ने ये भी कहा था कि वो अपनी बातों से लोगों के दिल से इस विचार को निकालना चाहते हैं. यानी राहुल ने खुद अपना मोटिव बताकर ये साफ़ कर दिया था कि राफेल तो बहाना है वो पीएम की छवि को धूमिल करना चाहते हैं. कह सकते हैं कि राहुल और टीम साथ होती तो शायद सुप्रीम कोर्ट में कुछ सम्भावना बन सकती थी.

बहरहाल अब जबकि राफेल से लेकर अवमानना तक दोनों ही मामलों में फैसला आ गया है और कोर्ट ने कई अहम बातों को स्पष्ट कर दिया है. तो ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि सिद्ध हो गया है कि चौकीदार ईमानदार है और चौकीदार पर आरोप लगाने वाला अपरिपक्व जिसने आज आए इस फैसले को 4 महिना पहले उस वक़्त मान लिया था जब उसने अपना इस्तीफ़ा दिया था और पूरी तरह से परदे से गायब हो गया था. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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