प्रियंका गांधी-जयंत चौधरी की मुलाकात के बाद ही सही अखिलेश यादव के 'ज्ञानचक्षु' खुल गए!
प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने गठबंधन के लिए कांग्रेस (Congress) के दरवाजे सभी के लिए खोले हुए हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ अगर आरएलडी (RLD) नेता जयंत चौधरी और चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) का गठबंधन नहीं हो पाता है, तो यूपी चुनाव से तकरीबन बाहर मानी जा रही कांग्रेस की ओर से आरएलडी और शिवपाल यादव के साथ सीटों का बंटवारा कहीं से भी मुश्किल नहीं होगा.
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उत्तर प्रदेश में इन दिनों हवाई जहाज में अचानक हो रही मुलाकातों का दौर चल रहा है. कुछ दिनों पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi) की सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से हवाई जहाज में मुलाकात के बाद अब प्रियंका गांधी की आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) की एयरपोर्ट पर हुई मुलाकात और चार्टर्ड विमान से एक साथ दिल्ली लौटने के घटनाक्रम ने अचनाक से सूबे का सियासी पारा बढ़ा दिया है. आनन-फानन में ही सही, लेकिन इस मुलाकात के दूसरे दिन सपा अध्यक्ष (SP) अखिलेश यादव की ओर से बयान सामने आ गया. जिसमें आरएलडी (RLD) के साथ गठबंधन तय होने का दावा किया गया और चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) के साथ आने में कोई समस्या न होने की बात की गई. आसान शब्दों में कहा जाए, तो प्रियंका गांधी (Congress) और जयंत चौधरी की मुलाकात के बाद ही सही अखिलेश यादव के 'ज्ञानचक्षु' खुल गए हैं.
प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी की इस मुलाकात ने गठबंधन की राजनीति में तेजी ला दी है.
झटका देने को तैयार बैठे हैं जयंत चौधरी
प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी के बीच हुई मुलाकात के बाद राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों ने नए सियासी समीकरणों के बारे में कयास लगाने शुरू कर दिए थे. लेकिन, कांग्रेस और आरएलडी की ओर से इस मुलाकात पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई थी. हालांकि, आरएलडी की ओर से कहा गया था कि इत्तेफाक से हुई इस मुलाकात के सियासी मायने नहीं निकालने चाहिए. लेकिन, सपा के साथ गठबंधन का दावा कर चुके आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी ने लखनऊ में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर अपनी पार्टी का अलग संकल्प पत्र जरूर जारी कर दिया था. वैसे, इसे दबाव की राजनीति का नाम दिया जा सकता है. लेकिन, ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि संकल्प पत्र जारी करने का दांव जयंत चौधरी ने केवल दबाव बनाने के लिए ही चला है. दरअसल, किसान आंदोलन के अपने चरम पर पहुंचने के दौरान इसी साल मार्च के महीने में जयंत चौधरी और अखिलेश यादव ने गठबंधन में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने का एलान किया था. लेकिन, लंबा समय बीत जाने के बाद भी सपा प्रमुख और आरएलडी नेता के बीच विधानसभा सीटों को लेकर बात नहीं बन पा रही थी.
अखिलेश यादव ने छोटे सियासी दलों से गठबंधन की बात कही थी. लेकिन, इस दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले लाजिमी कहे जाने वाले दल-बदल में कांग्रेस, बसपा और भाजपा के बागी विधायकों को सपा में शामिल करने का कार्यक्रम भी जारी रखा हुआ था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो वैचारिक रूप से सपा अध्यक्ष के साथ गठबंधन हो गया था. लेकिन, अखिलेश यादव गठबंधन धर्म के विपरीत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में छोटे-बड़े नेताओं के सहारे लगातार सपा को मजबूत करने में जुटे हुए थे. यही कारण रहा है कि गठबंधन में चुनाव लड़ने के एलान के बावजूद जयंत चौधरी और अखिलेश यादव को काफी दिनों से एक साथ नहीं देखा गया है. वहीं, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर की कुछ विधानसभा सीटों को लेकर अखिलेश और जयंत दोनों आमने-सामने हैं. वैसे, आरएलडी और सपा के बीच सीटों के बंटवारे पर बात बनेगी या नहीं बनेगी, ये भविष्य में पता चल जाएगा. लेकिन, एक बात तो तय है कि प्रियंका गांधी के साथ मुलाकात कर जयंत चौधरी ने इतना जता दिया है कि अगर सपा मुखिया किसी भी तरह से आरएलडी को कमजोर मानने की गलती करेंगे, तो उनके पास कांग्रेस का 'हाथ' थामने का विकल्प खुला हुआ है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी का ग्राफ नरेंद्र मोदी काल में गिरा है. और, ये एक ऐसी चीज है, जो केवल आरएलडी के साथ ही नहीं हुई है. सपा, बसपा, कांग्रेस समेत सभी दलों का सियासी गणित भाजपा और नरेंद्र मोदी के सामने बिगड़ गया है. लेकिन, आरएलडी की बात करें, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की वजह से जाट मतदाताओं के बीच जयंत चौधरी की स्वीकार्यता बढ़ी है. जाट बिरादरी से आने वाले और इसी समाज की राजनीति करने वाले आरएलडी का पश्चिमी यूपी के 13 जिलों में फैले जाट मतदाताओं पर प्रभाव कहा जा सकता है. जाट और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे लंबे समय तक आरएलडी ने पश्चिमी यूपी में अपना दबदबा बनाए रखा है. और, किसान आंदोलन की वजह से उसका ये दबदबा वापस आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इतना ही नहीं, अजीत चौधरी की कोरोना से हुई मौत के बाद जयंत चौधरी को सहानुभूति वोट भी मिलना तय है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के प्रभाव से लहलहा रही राजनीतिक फसल को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने हिसाब से काटना चाहते हैं, जो आरएलडी के बिना किसी भी हाल में संभव नहीं है.
यूपी चुनाव से पहले अगर कांग्रेस और सपा का गठबंधन हो जाए, तो चौंकने वाली बात नहीं होगी.
आ गई चाचा शिवपाल को सम्मान देने की याद
प्रियंका गांधी की जयंत चौधरी से मुलाकात के घटनाक्रम के दौरान ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की अखिलेश यादव के साथ आने की इच्छा का जिक्र भी छेड़ा था. लेकिन, शिवपाल सिंह यादव ने ये भी घोषणा कर रखी थी कि सपा से गठबंधन नहीं हुआ, तो किसी राष्ट्रीय दल से गठबंधन किया जाएगा. जिसके बाद अखिलेश यादव की ओर से ये बयान आना ही था कि चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ उन्हें गठबंधन करने में कोई समस्या नहीं है. उन्हें और उनके लोगों को सपा में उचित सम्मान दिया जाएगा. दरअसल, अखिलेश यादव इस समय अकेले ही चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं. पार्टी के स्टार प्रचारक और मु्स्लिम नेता आजम खां इन दिनों जेल में हैं. मुलायम सिंह यादव की खराब तबीयत की वजह से सपा को 'धरतीपुत्र' का मार्गदर्शन मिलना मुश्किल है. वहीं, गठबंधन के सहारे अगर चाचा शिवपाल से छिड़ी लड़ाई अगर खत्म हो जाती है, तो अखिलेश यादव की राह काफी हद तक आसान हो जाएगी.
दरअसल, संगठन और चुनाव प्रबंधन के मामले में अखिलेश यादव अभी भी 'टीपू' ही नजर आते हैं. वहीं, शिवपाल सिंह यादव कई मौके पर सपा के लिए कोई सीढ़ी खोज ही लाते थे. वहीं, शिवपाल के बेटे आदित्य यादव भी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में नई उड़ान भरना चाह रहे हैं. शिवपाल यादव अपने बेटे के मामले में शायद ही किसी तरह का जोखिम उठाने का ख्याल गलती से भी अपने मन में लाएंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जितनी जरूरत शिवपाल सिंह को सपा की है, उससे ज्यादा अखिलेश यादव को शिवपाल की है. क्योंकि, अखिलेश यादव फिलहाल इस स्थिति में नही हैं कि भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक स्टार प्रचारकों के सामने अकेले दम पर पूरा यूपी चुनाव मैनेज कर ले जाएं.
प्रियंका गांधी का दांव चला, तो 'टीपू' हो जाएंगे ढेर
सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ और भाजपा के खिलाफ खुलकर बैटिंग कर रहीं प्रियंका गांधी ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के बाद अखिलेश यादव पर रणनीतिक तौर पर दिमागी बढ़त बना ली है. प्रियंका पूरे सूबे में घूम-घूमकर मतदाताओं के बीच कांग्रेस को मजबूत दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं. वैसे, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के हिसाब से देखा जाए, तो सपा के साथ आरएलडी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का गठबंधन नहीं हो पाता है, तो इस स्थिति में जयंत चौधरी और शिवपाल सिंह यादव के पास कांग्रेस के अलावा और कोई विकल्प नहीं रहेगा.
जानना जरूरी है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी और कांग्रेस के गठबंधन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश और तराई के क्षेत्रों में 27 सीटों पर कब्जा जमाया था. अगर इस गठबंधन में शिवपाल भी आ जाते हैं, तो वह सीधे तौर पर सपा को ही नुकसान पहुंचाने वाला होगा. तो, शायद ही अखिलेश यादव इन हालातों में फंसना चाहेंगे. कहना गलत नहीं होगा कि प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी की मुलाकात के बाद ही सही अखिलेश यादव के 'ज्ञानचक्षु' खुल गए हैं. और, यहां इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सपा अध्यक्ष जीत की चाह में यूपी चुनाव से पहले कांग्रेस से भी गठबंधन की घोषणा कर सकते हैं.
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