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Updated: 05 जनवरी, 2020 06:06 PM
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प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi and Rahul Gandhi) उत्तर प्रदेश (UP Politics) का तूफानी दौरा कर रही हैं - और योगी आदित्यनाथ की सरकार और पुलिस लगातार उनके निशाने पर है. प्रियंका गांधी यूपी का कोई भी छोर नहीं छोड़ रही हैं - सोनभद्र से शुरू होकर उन्नाव और लखनऊ होते हुए मुजफ्फरनगर तक धावा बोल चुकी हैं.

अब तक मायावती के बयानों से बचती रही प्रियंका गांधी ने पलटवार भी किया है. मायावती यूपी में प्रियंका गांधी के दौरे को लेकर लगातार हमलावर रही हैं, लेकिन काफी परहेज के बाद अब प्रियंका ने भी पलटकर चैलेंज कर दिया है.

उन्नाव गैंग रेप के खिलाफ मायावती और अखिलेश यादव के साथ साथ एक ही दिन सड़क पर उतरीं प्रियंका गांधी खुद को दिखाने की भी कोशिश कर रही हैं. फिलहाल तो वो लोगों को यही मैसेज देना चाहती हैं कि कांग्रेस दुख की घड़ी में उनके साथ है और उनकी बात सबके सामने लाने की पूरी कोशिश भी कर रही है.

मायावती के बाद अखिलेश यादव ने भी अगर प्रियंका गांधी को टारगेट करने की कोशिश की तो मान कर चलना चाहिये, जवाब भी वैसा ही मिलेगा जैसा बीएसपी नेता को मिला है.

सवाल ये है कि प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा दुश्मन किसे मानती हैं - योगी आदित्यनाथ को, मायावती को या फिर अखिलेश यादव (Yogi Adityanath Mayawati and Akhilesh Yadav) को?

कांग्रेस का असली सियासी दुश्मन कौन

यूपी पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ प्रियंका गांधी खुद को पीड़ितों साथ खड़े होने की मैसेज दे रही हैं. यूपी में हुई हिंसा को लेकर प्रियंका गांधी ने राज्यपाल को चिट्ठी भी लिखी है. बकौल प्रियंका गांधी, राज्यपाल को लिखी चिट्ठी में बताया है कि पुलिस ने लोगों को किस तरह से पीटा है? कैसे बच्चों को जेल में डाला है? बेगुनाहों के साथ बर्बरता से पुलिस कैसे पेश आयी है.

जब पत्रकारों के बीच होती हैं तब भी प्रियंका गांधी लोगों की शिकायतों की तरफ ध्यान खींचने की कोशिश करती हैं. कहती हैं - पुलिस बेगुनाहों को परेशान कर रही है. उनकी शिकायत दर्ज नहीं कर रही है. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तक नहीं दे रही है और जेल भेज दिये जाने की धमकी भी मिल रही है.

प्रियंका के दौरे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय की तरफ से प्रतिक्रिया आयी है जिसमें उनके उपद्रवियों और दंगाइयों के साथ सहानुभूति व्यक्त करने पर सवालिया निशान खड़ा किया गया है?

प्रियंका गांधी अपने स्टैंड पर कायम हैं. वो जगह जगह लोगों से मिलने के बाद कह रही हैं, 'मैं हर दुख सुख में आपके साथ हूं... पुलिस ज्यादतियों की मुझको खबर है.'

priyanka gandhi vadraप्रियंका गांधी का आश्वासन - 'दुख-सुख में साथ हूं...'

प्रियंका गांधी कांग्रेस को ऐसे वक्त रेस में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं जब वो सूबे में जैसे तैसे सांसे गिन रही है. विधानसभा में सिर्फ सात विधायक बचे हैं और एक लोक सभा सांसद. राहुल गांधी की हार के बाद कांग्रेस अमेठी भी गंवा चुकी है.

प्रियंका गांधी भी मुस्लिम समुदाय के साथ फिलहाल वैसे ही सपोर्ट में खड़ी दिखाने की कोशिश कर रही हैं जैसे राहुल गांधी एक दौर में दलितों के साथ. मायावती की प्रियंका गांधी से चिढ़ की वजह भी यही है. कांग्रेस के खिलाफ मायावती के ताजा बयान देखें तो वो दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के ही नाम लेती हैं - और कहती हैं कि अगर कांग्रेस ने लोगों पर ध्यान दिया होता तो बीएसपी बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. प्रियंका गांधी की सक्रियता भी यही बता रही है कि वो कांग्रेस का खोया हुआ वोट बैंक वापस दिलाना चाहती हैं.

2019 के आम चुनाव में पाया गया कि कांग्रेस को यूपी में मुस्लिम समुदाय से सिर्फ 14 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 76 फीसदी सपा-बसपा गठबंधन के खाते में गया था. कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा फिक्र वाली बात तो ये रही कि बीजेपी ने 62 में से 36 सीटें उन इलाकों में जीती जहां 20 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है.

आगे बढ़ने से पहले और वक्त रहते प्रियंका गांधी को ये तय कर लेना होगा कि कांग्रेस का वोट बैंक वापस किससे लेना है - भारतीय जनता पार्टी से, समाजावादी पार्टी से या फिर बहुजन समाज पार्टी से? तभी प्रियंका गांधी ये भी तय कर पाएंगी कि कांग्रेस का असली सियासी दुश्मन कौन है - योगी आदित्यनाथ, मायावती या फिर अखिलेश यादव?

प्रियंका गांधी भी वही कर रही हैं जैसी राजनीति कभी राहुल गांधी करते रहे

यूपी में भी बीजेपी के सत्ता में होने के कारण पूरे विपक्ष के निशाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही रहते हैं. उन्नाव गैंग रेप को लेकर प्रियंका गांधी, मायावती और अखिलेश यादव तीनों एक ही दिन सड़क पर एक ही साथ उतरे थे - लेकिन मुद्दे को अलग अलग तरीके से उठाया.

प्रियंका गांधी ने उन्नाव में बढ़ी रेप की घटनाओं को लेकर आवाज उठायी और योगी सरकार को आंकड़ों के जरिये घेरने की कोशिश की. मायावती और अखिलेश यादव विरोध तो अलग अलग कर रहे थे, लेकिन हैदराबाद एनकाउंटर पर दोनों की राय एक जैसी दिखी. हैदराबाद एनकाउंटर पर मायावती ने यूपी पुलिस को सबक लेने की नसीहत दी तो अखिलेश यादव ने भी माना कि इंसाफ हुआ है.

प्रियंका गांधी यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ लोगों के हर गुस्से को भुनाने की कोशिश कर रही हैं. चाहे वो सोनभद्र का नरसंहार हो या उन्नाव में बलात्कार की तमाम घटनाएं - या फिर नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ पुलिस एक्शन. कानून और व्यवस्था के नाम पर बीजेपी सरकार को घेरने के साथ साथ प्रियंका गांधी भगवा रंग पर कांग्रेस का बदला नजरिया भी पेश करती हैं - आतंक से अहिंसा की ओर. प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को चिट्ठी भी लिखी है. जहां कहीं भी कांग्रेस महासचिव को लगता है कि सरकार के खिलाफ लोगों की सहानुभूति बटोरी जा सकती है, वो फौरन पहुंच जाती हैं. लोगों से मिलती-जुलती हैं और फिर मीडिया के सामने आकर यूपी पुलिस की ज्यादती की कहानियां भी बताती हैं.

प्रियंका गांधी की लोगों से मुलाकात की तस्वीरें ट्विटर पर शेयर की जाती हैं और मीडिया में भी ठीक-ठाक जगह भी मिल जाती हैं - लेकिन ये सब सिर्फ उसी जगह जहां प्रियंका गांधी मौजूद होती हैं. किसी और जगह कांग्रेस की तरफ से कोई हलचल नहीं नजर आती.

प्रियंका गांधी ने सोनभद्र के पीड़ित परिवारों से दोबारा मिला का वादा किया था. वादा पूरा भी किया, लेकिन शायद ही किसी को याद हो कि प्रियंका गांधी के सोनभद्र से लौट आने के बाद स्थानीय कांग्रेस नेताओं की ओर ऐसी कोई हलचल हुई हो जिसके बारे में सूबे के और लोगों को कुछ पता हो. उन्नाव में रेप पीड़ित के परिवार वालों से मुलाकात के बाद भी कोई पूछने नहीं गया.

जो राजनीति प्रियंका गांधी फिलहाल कर रही हैं, राहुल गांधी भी ऐसे ही तूफानी दौरे किया करते थे. दलितों के घरों में राहुल गांधी के लंच और डिनर खूब सुर्खियां बटोरते रहे. फिर मायावती का बयान आता था - जब राहुल गांधी दलितों के घर से लौट कर दिल्ली जाते हैं तो एक विशेष प्रकार के साबुन से नहाते हैं.

राहुल गांधी के तूफानी दौरों का असर यही हुआ कि धीरे धीरे मायावती भी सत्ता से बाहर हो गयीं और एक दिन अखिलेश यादव भी. सिर्फ यही नहीं, जब दोनों गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे तो भी नुकसान समाजवादी पार्टी और बीएसपी को ही हुआ - और फायदा तो कांग्रेस को भी नहीं मिला. फायदा मिला तो बीजेपी को जो बरसों के वनवास के बाद यूपी की सत्ता पर काबिज हो गयी है.

क्या प्रियंका गांधी को मालूम है कि उनकी हालिया राजनीतिक गतिविधियों का कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा? आम चुनाव हुए कुछ ही दिन हुए हैं और यूपी में विधानसभा के चुनाव 2022 में होने हैं - दो साल का वक्त काफी लंबा होता है, लेकिन लोकस्मृतियां उतनी लंबी नहीं होतीं. पब्लिक कम ही बातें याद रख पाती है, बाकी बातें बड़ी जल्दी भूल जाती है.

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