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Updated: 18 अप्रिल, 2019 04:18 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मिशन शक्ति के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने चुनाव आयोग में आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत दर्ज करायी थी. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी महाराष्ट्र की एक रैली में पुलवामा और बालाकोट के नाम पर वोट मांगने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव आयोग को पत्र लिखा था.

आचार संहिता के मामलों में सख्त कार्रवाई न करने को लेकर चुनाव आयोग लगातार निशाने पर रहा है. नौकरशाहों के पत्र के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग को इसके लिए तलब किया था - लेकिन उसके बाद निर्वाचन आयोग सख्ती दिखाने लगा है. ये बात अलग है कि अपने खिलाफ एक्शन से नाराज मायावती जैसे नेता आयोग को बुरा भला भी कहने लगे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले की तलाशी लेने की कोशिश करने वाले एक अफसर को सस्पेंड कर दिया गया है. ओडिशा की संबलपुर संसदीय सीट के जनरल ऑब्जर्वर मोहम्मद मोहसिन को चुनाव आयोग ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर अगले आदेश तक कहीं न जाने का आदेश दिया है.

SPG सुरक्षा के चलते PM को कुछ छूट जरूर मिली हुई है, लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि प्रधानमंत्री को आचार संहिता के दायरे से बाहर रखा जाये? अगर चुनाव आयोग अपने स्तर पर ये काम नहीं भी कर सके तो योग्य अथॉरिटी को सिफारिशें तो भेज ही सकता है.

आयोग के ऑब्जर्वर का निलंबन क्यों?

16 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओडिशा के संबलपुर चुनावी रैली के लिए पहुंचे थे. उसी दौरान चुनाव आयोग के एक उड़न दस्ते ने उनके हेलीकॉप्टर की तलाशी लेने की कोशिश की थी.

हाल ही में चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के हेलीकॉप्टर की तलाशी ली थी. इसी तरह ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के हेलीकॉप्टर की भी चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर ने तलाशी ली थी.

एकबारगी तो ऐसा लगता है कि अगर येदियुरप्पा और नवीन पटनायक के हेलीकॉप्टरों की तलाशी ली जा सकती है तो प्रधानमंत्री के काफिले की क्यों नहीं? लगता है चुनाव आयोग के जनरल ऑब्जर्वर मोहम्मद मोहसिन को भी ऐसा ही लगा होगा. हालांकि, एक सीनियर आईएएस अफसर को भी ऐसा लगे थोड़ा अजीब लगता है - क्योंकि नियमों की जानकारी होने की अपेक्षा तो उनसे बनती ही है.

अप्रैल, 2014 के आदेश के तहत SPG सुरक्षा प्राप्त नेताओं को ऐसी किसी तलाशी से छूट मिली हुई है. चुनाव आयोग के सचिव की तरफ से चुनाव अधिकारियों को भेजे गये 2014 के आदेश (464/INST/2014/EPS) कहा गया है कि संभावित खतरों के मद्देनजर प्रधानमंत्री और दूसरे राजनीतिक शख्सियतों को चुनाव कैंपेन और उससे संबंधित यात्राओं के लिए सरकारी वाहनों के इस्तेमाल की छूट दी जाती है. इसी आदेश के पैराग्राफ 10(a) में आयोग ने साफ किया है कि अगर लगता है कि सुरक्षा के नाम पर कुछ ऐसी चीजें हो रही हों जिससे चुनाव प्रक्रिया पर असर पड़ने की आशंका हो तो उसे दुरूस्त करने के लिए सरकार के नोटिस में लाया जाये.

narendra modiक्या प्रधानमंत्री को आचार संहिता के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता?

आदर्श आचार संहिता लागू होने की स्थिति में जनरल ऑब्जर्वर को अधिकार होता है कि नकदी ले जाये जाने की आशंका होने पर वो जिला निर्वाचन अधिकारी या उसके समकक्ष अधिकारियों से वाहनों को चेक करने का आदेश दे सकते हैं. संबलपुर के जनरल ऑब्जर्वर ने अपने इसी अधिकार का इस्तेमाल किया था - लेकिन नियमों की ठीक जानकारी के अभाव में उनसे चूक हो गयी.

चुनाव आयोग ने बिहार के रहने वाले कर्नाटक कॉडर के 1996 बैच के आईएएस अधिकारी मोहम्मद मोहसिन को तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हुए संबलपुर में ही रहने का आदेश दिया है. चुनाव आयोग के आदेश में मोहम्मद मोहसिन को ड्यूटी में लापरवाही वजह मानी गयी है.

प्रधानमंत्री को आचार संहिता से छूट क्यों मिलनी चाहिये?

मिशन शक्ति की कामयाबी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में पूरे जोश में बताया था कि कैसे अंतरिक्ष में टारगेट को मार गिराया गया. प्रधानमंत्री के इस संबोधन के बाद देश में दोनों तरह की प्रतिक्रिया हुई थी. मोदी समर्थक जहां खुशी से उछलने लगे थे, वहीं विरोधी इसे आचार संहिता का उल्लंघन बता रहे थे. सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने तो चुनाव आयोग से बाकायदा शिकायत कर कार्रवाई की मांग भी की थी, लेकिन आयोग ने अर्जी खारिज कर दी. चुनाव आयोग की नजर में प्रधानमंत्री का वो भाषण आचार संहिता का उल्लंघन नहीं था. वैसे ये उन दिनों की बात है जब चुनाव आयोग संहिता के उल्लंघन के मामलों में भी चेतावनी देकर छोड़ दिया करता था. आम चुनाव की घोषणा के साथ ही 10 मार्च से देश में आचार संहिता लागू हो गयी थी - और प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन 27 मार्च का वाकया है.

प्रधान मंत्री ने एक रैली में पहली बार वोट डालने वालों से पुलवामा और बालाकोट के नाम पर वोट देने की अपील की थी. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तो इस पर आपत्ति जताते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को शिकायती पत्र भी भेज चुके हैं. प्रधानमंत्री की एक सभा में शहीदों की तस्वीरों पर भी कड़ी आपत्ति जतायी गयी थी.

लोकपाल की बात और है क्योंकि वो भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करता है - लेकिन क्या प्रधानमंत्री को आचार संहिता के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता या कम से कम कुछ विशेष छूट नहीं दी जा सकती?

जब प्रधानमंत्री को सुरक्षा के नाम पर चुनाव प्रचार के लिए सरकारी वाहन के इस्तेमाल की छूट दी जा सकती है, तो आचार संहिता में उसे विशेष छूट क्यों नहीं दी जा सकती?

पांच साल सरकार चलाने के बाद अगर कोई प्रधानमंत्री वोट मांगने जनता के दरबार में जाएगा तो क्या कहेगा? आखिर क्या कह कर वोट मांगेगा? आखिर वो अपनी सरकार की उपलब्धियां नहीं बताएगा तो क्या बताएगा?

अब ये क्या बात हुई कि प्रधानमंत्री एक उपलब्धि बता सकता है, लेकिन दूसरी और तीसरी तो बिलकुल नहीं!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही लें तो चुनाव आयोग अंतरिक्ष में मिसाइल से मार गिराने पर राष्ट्र के नाम संबोधन को आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानता और पुलवामा या बालाकोट के जिक्र पर पाबंदी लगा देता है.

अगर प्रधानमंत्री बगैर छुट्टी लिये लगातार 18-20 घंटे काम करेगा तो चुनावी भाषण के लिए अलग से कोई काम करेगा? जब नोटबंदी का ही फैसला प्रधानमंत्री ही लेता है और सर्जिकल स्ट्राइक का भी - और देश को मिलने वाली हर कामयाबी और नाकामी के लिए जिम्मेदार होता है तो क्या उसे वोट मांगने के लिए अपना काम बताने की छूट नहीं मिलनी चाहिये?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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