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Updated: 13 जनवरी, 2020 06:27 PM
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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) देश में लागू होने के साथ साथ राजनीतिक विरोध भी तेज होने लगा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने एक साथ विपक्ष पर CAA को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है. कोलकाता पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने बेलूर मठ में छात्रों से कहा कि छोटे-छोटे छात्र भी नागरिकता संशोधन कानून को समझ गये हैं, लेकिन कुछ नेता है जो इसे समझना नहीं चाहते हैं. मोदी का ये मैसेज खासतौर पर ममता बनर्जी के लिए रहा. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि कोई कितना भी विरोध करे नागरिकता वो देकर रहेंगे. शाह ने प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को चुनौती दी है कि वे साबित करें कि CAA देश के मुसलमानों के खिलाफ है.

CAA के विरोध में सड़क पर तो अकेले प्रियंका गांधी ही नजर आ रही हैं, लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति ने सपोर्ट किया है. प्रियंका गांधी के साथ कांग्रेस के कुछ नेता जरूर होते हैं, लेकिन राहुल गांधी या सोनिया गांधी नहीं होतीं. कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में नागरिकता कानून और NRC का विरोध जारी रखने का फैसला किया है.

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक CAA के विरोध के फैसले ने जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का जोश काफी बढ़ा हुआ नजर आ रहा है. अब तो प्रशांत किशोर ने ये भी ऐलान कर दिया है कि बिहार में नागरिकता कानून लागू नहीं होगा जबकि जेडीयू ने संसद के दोनों सदनों में बिल का सपोर्ट किया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के फायदे के लिए प्रशांत किशोर एक झटके में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति को ही दांव पर लगा दे रहे हैं.

प्रशांत किशोर की रणनीति क्या है

ये प्रशांत किशोर ही हैं जिन्होंने नागरिकता कानून के खिलाफ कांग्रेस नेतृत्व को ललकारते रहे हैं. खास बात ये है कि कांग्रेस नेतृत्व ने खुद को हनुमान की तरह और प्रशांत किशोर को जामवंत की भूमिका में समझा है. कम से कम इस मुद्दे पर तो ऐसा ही लगता है. कांग्रेस की तरफ से नागरिकता कानून पर हुई कई पहल इस बाते के नमूने हैं.

प्रशांत किशोर ने ही सबसे पहले गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से नागरिकता कानून के बहिष्कार की अपील की थी. इस मामले में पश्चिम बंगाल और केरल सभी से दो कदम आगे ही रहे. ममता बनर्जी जहां कोलकाता में मार्च करने लगीं, वहीं मुख्यमंत्री पी. वियजन ने केरल विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव ही पास करा दिया. प्रशांत किशोर चाहते थे कि कांग्रेस की तरफ से भी ऐसी कोई औपचारिक घोषणा हो.

प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर लिखा था कि कांग्रेस के बडे़ नेता नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर नजर नहीं आते - कम से कम कांग्रेस के मुख्यमंत्री तो ऐसा कर ही सकते हैं. कांग्रेस की तरफ से राजघाट पर धरने का प्रोग्राम भी उसके बाद ही बना है - और उसमें सोनिया गांधी के साथ साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सभी मौजूद रहे. सोनिया गांधी ने तो वहां संविधान की प्रस्तावना का पाठ भी किया.

प्रशांत किशोर ने ऐसा कदम क्यों उठाया है? प्रशांत किशोर का ये स्टैंड भले ही ममता बनर्जी के पक्ष में जाता हो, भले ही ये अरविंद केजरीवाल के लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद हो, लेकिन नीतीश कुमार के लिए तो फजीहत कराने वाला ही है.

नागरिकता कानून के विरोध के लिए गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक मंच पर खड़ा करने की कोशिश और बिहार में लागू न होने देने की घोषणा दोनों बिलकुल अलग बातें हैं. अगर नीतीश कुमार की तरफ से प्रशांत किशोर के ट्वीट पर कोई रिएक्शन नहीं आता तब तक हर कोई इसमें उनकी सहमति ही देखेगा.

अब तक यही देखने को मिला है कि प्रशांत किशोर की बातों का जेडीयू के कुछ नेता जवाब देते रहते हैं और आरसीपी सिंह उसमें आगे रहते हैं. आरसीपी सिंह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं - और प्रशांत किशोर के बारे में कहना ही क्या. प्रशांत किशोर ने 2015 में चुनाव का जिता दिया, सीधे उनके लिए नया पोस्ट बना कर जेडीयू का उपाध्यक्ष ही बना दिया. वैसे जब भी मौका मिलता है आरसीपी सिंह ऐसी बातों के पूरी तरह खारिज की करते नजर आते हैं.

nitish kumar, prashant kishor, arvind kejriwalप्रशांत किशोर CAA के नाम पर किसे फायदा दिलाना चाहते हैं?

आरसीपी सिंह ने हाल ही में कहा था, 'प्रशांत किशोर की अपनी कोई जमीन नहीं है. प्रशांत किशोर ने पार्टी के लिए आज तक क्या किया? आज तक एक भी सदस्य नहीं बनाया - जिन्हें पार्टी से जाना है जाये.' मालूम नहीं आरसीपी सिंह क्यों भूल जा रहे हैं कि जेडीयू आज बिहार में शासन कर रहा है तो प्रशांत किशोर के हुनर की बदौलत ही संभव हो सका है. जेडीयू ज्वाइन करने के बाद प्रशांत किशोर को युवाओं को जोड़ना का टास्क दिया गया था - प्रशांत किशोर ने पटना विश्वविद्यालय में जेडीयू का परचम लहरा दिया था.

क्या ये केजरीवाल के लिए नीतीश पर दांव है?

कोई माने या न माने प्रशांत किशोर के ताजा ट्वीट से नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अगर प्रशांत किशोर के ट्वीट में नीतीश कुमार की सहमति है तो मान कर चलना होगा कि ये सब बीजेपी नेतृत्व को कतई रास नहीं आने वाला. आगे जेडीयू और बीजेपी के रिश्तों का क्या हश्र होगा कहना मुश्किल जरूर है लेकिन समझना नहीं.

अगर नीतीश कुमार वाकई प्रशांत किशोर की बातों से सहमत होते हैं और नागरिकता कानून के खिलाफ जाने की बात करते हैं तो ये भी समझाना होगा कि संसद में बिल के सपोर्ट की क्या वजह रही - और जब सपोर्ट कर दिया तो पीछे कदम किस वजह से खींच रहे हैं. ऐसे में जबकि नीतीश के विरोधी उन पर पलटू बोल कर हमला करता है, नीतीश के लिए नया स्टैंड लेना ज्यादा चुनौती भरा होगा.

अब समझना जरूरी हो जाता है कि प्रशांत किशोर आखिर नीतीश कुमार को बड़ी मुसीबत की ओर घसीट कर क्यों ले जा रहे हैं?

तात्कालिक वजह तो एक ही लगती है. दिल्ली में प्रशांत किशोर फिलहाल अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का चुनाव कैंपेन संभाल रहे हैं और नागरिकता कानून पर विरोध का मजबूत होना उनके पक्ष में जाता है. ऐसा करने से बीजेपी को घेरा जा सकता है. सोनिया गांधी ने भी 13 जनवरी को विपक्षी दलों की एक मीटिंग बुलायी है, लेकिन ममता बनर्जी ने पहले ही उससे दूरी बना ली है. अरविंद केजरीवाल के जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.

अभी तो अरविंद केजरीवाल ही ऐसे नेता हैं जो नागरिकता कानून का सपोर्ट भी नहीं कर रहे हैं लेकिन उनके विरोध का तरीका बड़ा ही बैलेंस लिये हुए है. नागरिकता कानून के विरोध में केजरीवाल इतना भर ही कहते हैं कि इसकी अभी जरूरत क्या थी - जब देश के सामने बड़ी बड़ी समस्याएं खड़ी पड़ी हैं.

असल में ये बदले हुए केजरीवाल हैं जो प्रधानमंत्री मोदी को भला-बुरा कहते हुए कोसना छोड़ कर काम पर ध्यान देने लगे हैं. कहते भी हैं तो बस इतना ही कि गाली क्यों देते हो - काम बताओ ना अब तक नहीं कर पाये तो अगली पारी में पूरा कर देंगे.

तो क्या प्रशांत किशोर नागरिकता कानून के विरोध का ये ताना-बाना फैला कर अरविंद केजरीवाल का सपोर्ट करने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन ये क्या तरीका हुआ कि नीतीश कुमार को मुश्किल में फंसा दिया जाये!

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