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Updated: 05 मार्च, 2019 08:30 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
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मेरे प्यारे विपक्षी नेताओं,

बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में मारे गये आतंकवादियों की संख्या को लेकर आप लोगों को इतना संदेह नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से “उल्टे बांस बरेली को” वाली कहावत के चरितार्थ होने का पूरा-पूरा ख़तरा है.

पूछिए, कैसे? तो मैं आपको बता रहा हूं. हमारी महान वायु सेना के अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने स्पष्ट कर दिया है कि सेना ने सही टार्गेट को हिट किया है और अगर हमने पेड़ गिराए होते, तो पाकिस्तान जवाब नहीं देता.

बात को ज़रा ठीक से समझ लीजिए. अगर सेना ने सही टार्गेट को हिट किया, तो इसका मतलब ही है कि उस टार्गेट पर बड़ी संख्या में आतंकवादी होंगे, वरना चंद पेड़ गिराने के लिए दुनिया की कोई भी वायु सेना अपने 12 विमानों और पायलटों को दूसरे मुल्क की सरहद में 80 किलोमीटर भीतर तक भेजने का रिस्क नहीं ले सकती. इसलिए मुझे तो पक्का विश्वास है कि उस टार्गेट पर कम से कम 200 से 400 आतंकवादी रहे होंगे, तभी सेना ने इतना बड़ा कदम उठाया. पुलवामा में हमारे 44 जवान शहीद हुए थे. अब अगर बालाकोट में दो-चार सौ आतंकवादी भी नहीं रहे होंगे, तो उसे एयरस्ट्राइक के लिए उसे चुना ही क्यों जाता?

आप लोगों को समझना चाहिए कि वहां पर 200 से 400 आतंकवादियों के होने का ठोस इंटेलीजेंस इनपुट होगा, तभी इतने आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया जा रहा है. जब हमारी वायु सेना वहां बम गिराकर चली आई, तो लाशों की गिनती वहां बैठकर कौन करता? आप लोगों के इसी भोलेपन से रीझते हुए वायु सेना अध्यक्ष ने साफ कहा कि लाशें गिनना हमारा काम नहीं है. यह कोई हमारी-आपकी सरहद के अंदर की घटना तो थी नहीं कि अगली सुबह सरकार आपको लाशें गिनकर बता देती कि कुल इतने लोग मारे गए.

सर्जिकल स्ट्राइक 2, पाकिस्तान, भारत, सेना, विपक्षसरकार पर नहीं तो कम से कम सेना पर तो भरोसा करना चाहिए न

अब मान लीजिए कि कल को सरकार ने अगर देश और दुनिया के सामने सबूत रखने का फैसला कर भी लिया, तो उसमें आपको केवल ध्वस्त किए गए आतंकवादी ठिकानों के कुछ फुटेज ही दिखाई देंगे, लाशों की गिनती तो फिर भी स्पष्ट नहीं हो पाएगी. अगर सरकार किसी दिन उस इंटेलीजेंस इनपुट को भी ज़ाहिर कर दे, जिसके आधार पर यह एयरस्ट्राइक किया गया, तो उससे भी केवल आपको वहां मौजूद रहे आतंकवादियों की अनुमानित संख्या का ही पता चल सकेगा, पक्की संख्या तो फिर भी मालूम नहीं हो सकेगी.

तो सवाल है कि ऐसे सबूतों के लिए बालहठ करना ही क्यों, जिसे दुश्मन देश के साथ तनाव के इस माहौल में जारी किया जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं, क्योंकि आप वायु सेना अध्यक्ष को स्पष्ट सुन चुके हैं कि ऑपरेशन अभी ख़त्म नहीं हुआ है. आखिर क्या चाहते हैं आप लोग कि सेना का ऑपरेशन जारी रहते सरकार अपने सीक्रेट डॉक्यूमेंट्स और फुटेज जारी कर दे, जिससे दुश्मन को हमारी संवेदनशील जानकारियां मिल जाएं और हमारे भावी ऑपरेशनों पर बुरा असर पड़े?

आप लोगों को वायु सेना अध्यक्ष की इस दलील का भी आदर करना चाहिए कि अगर बालाकोट में बड़ी संख्या में आतंकी मारे नहीं गए होते, तो पाकिस्तान बौखलाया क्यों? जवाबी कार्रवाई करने की कोशिश क्यों की? उसकी जवाबी कार्रवाई को विफल करते हुए जब हमारे बहादुर विंग कमांडर अभिनंदन ने उसके एक एफ-16 को मार गिराया और इस क्रम में पाकिस्तान पहुंच गए और पकड़ लिए गए, तो 48 घंटे के भीतर उन्हें रिहा कैसे कर दिया? क्या चंद पेड़ों को गिराने वाली सेना से कोई दुश्मन देश इतना भयभीत हो सकता है? क्या एक मिसगाइडेड और विफल हमले से डरकर पाकिस्तान के लोगों ने Say No To War कैम्पेन शुरू कर दिया?

आप लोगों ने इस देश पर करीब 60 साल तक राज किया है. क्या आप लोगों को कूटनीति की इतनी समझ भी नहीं कि दुश्मन को डराने के लिए, उसपर दबाव बनाने के लिए, उसे दुनिया में शर्मिंदा करने के लिए, उसका मनोबल तोड़ने के लिए और अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए अगर दुश्मनों की मौत के आंकड़े को थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर भी कह दिया, तो इससे हमको-आपको या किसी भी भारतीय को क्या नुकसान है? जब पाकिस्तान के साथ आप ऑलरेडी एक प्रॉक्सी वॉर और प्रोपगंडा वॉर में हैं, तो मारे गए आतंकियों के अनुमानित आंकड़े को भारत का प्रोपगंडा समझकर ही सही, थोड़ा तो चुप रह लीजिए. आपको इसमें हर्ज क्या है?

बोलने दीजिए न पाकिस्तान को कि भारत की वायु सेना हमारे यहां चील-कौवों को मारकर या चंद पेड़ों को गिराकर चली गई. आप क्यों बोल रहे हैं पाकिस्तान की ज़ुबान? अगर 200 से 400 आतंकियों की मौत के दावे करने वालों ने बालाकोट जाकर लाशें नहीं गिनी हैं, तो क्या आप लोगों ने गिनी हैं? अगर नहीं, तो आप भी किन तथ्यों के आधार पर संदेह जता सकते हैं कि वहां इतने आतंकवादी नहीं मारे गए?

आप कहेंगे कि कुछ विदेशी पत्रकारों ने दावा किया है. तो सवाल है कि विदेशी पत्रकारों की झूठी-सच्ची रिपोर्टों के आधार पर आप अपने ही देश की सेना के पराक्रम को संदेह के दायरे में कैसे ला सकते हैं? वो भी तब, जबकि आपको पता है कि जब भी कोई आतंकवादी पकड़ा या मारा जाता है, तो पाकिस्तान कभी भी इसे कबूल करने को तैयार नहीं होता.

क्या आप भूल गए कि यूपीए के शासन के दौरान भी सुरक्षा बलों ने न जाने कितने पाकिस्तानी आतंकियों को पकड़ा, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी उन्हें अपना नागरिक नहीं माना. क्या आप भूल गए कि मुंबई पर हमले के बाद ज़िंदा पकड़े गए अजमल कसाब तक को पाकिस्तान ने लंबे समय तक अपना नागरिक स्वीकार नहीं किया. यहां तक कि उसे फांसी दिए जाने के बाद उसकी लाश पर दावा जताने के लिए भी पाकिस्तान से कोई नहीं आया. ऐसे में अगर पाकिस्तान यह कबूल करने को तैयार नहीं है कि बालाकोट में उसके सैकड़ों आतंकी मारे गए हैं, तो आप उस पर इतना भरोसा कैसे कर सकते हैं?

क्या आपको इस बात में भी संदेह है कि बालाकोट के आतंकी कैम्पों पर भारतीय वायुसेना के हमले के बाद पाकिस्तानी सेना ने उस पूरे इलाके को घेर लिया और स्थानीय प्रशासन तक को वहां जाने नहीं दिया? क्या आतंकवादी देश पाकिस्तान में इतनी हिम्मत, सच्चाई और पारदर्शिता है कि वह एयरस्ट्राइक की जगह पर आतंकियों की लाशें और मलबे बिखरे रहते हुए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को एक्सेस दे सकता था?

ज़ाहिर है कि अपनी फितरत के मुताबिक, पाकिस्तान ने दुनिया से वहां कोई आतंकी कैम्प होने या आतंकियों के मारे जाने के सबूत छिपाने की हर संभव कोशिश की होगी. इसके बावजूद, अगर एक तरफ कुछ अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने वहां आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि नहीं की है, तो दूसरी तरफ इटली की एक पत्रकार ने तो बताया है न कि एक चश्मदीद ने कम से कम 35 लाशें वहां से निकालते हुए देखा था.

आप लोग भारतीय मीडिया को उन्मादी, बिका हुआ, गोदी मीडिया वगैरह मानते हैं तो मानें, लेकिन क्या मेरी आदरणीया नेता श्रीमती सोनिया गांधी जी की जन्मभूमि से जुड़े पत्रकारों के बारे में भी आप लोगों की ऐसी ही राय है? ससुराल के लोगों पर भरोसा न करें, तो न करें, लेकिन मायके के लोगों पर भी भरोसा न करेंगे, तो कैसे काम चलेगा?

आखिर में आपको एयर वाइस मार्शल आरजी के कपूर की प्रेस कांफ्रेंस की भी याद दिलाना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि सेना के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि हम जो नुकसान पहुंचाना चाहते थे, उसमें कामयाब रहे और इसे कब और कैसे जारी करना है या नहीं करना है, इसका फैसला राजनीतिक नेतृत्व को लेना है.

इसलिए राजनीति में इतना न गिरें कि आपको लेने के देने पड़ जाएं. अगर आपके लगातार प्रोवोकेशन से परेशान होकर सेना या सरकार ने बिल्कुल चुनाव की गर्मी सर पर चढ़ने के बाद बालाकोट के सबूत जारी कर दिए, फिर आप क्या करेंगे? फिर तो आप रोते ही रह जाएंगे कि भाजपा बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.

इसलिए हे मेरे प्यारे विपक्षी नेताओं, राजनीति में शह की ऐसी चाल न चलो, जिससे सामने वाला भी मात की चाल चलने को मजबूर हो जाए और आपके पैरों तले से आपकी समूची ज़मीन ही खिसक जाए.

आपका शुभचिंतक

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लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

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