नीतीश कुमार पर भी होगा जहर का असर
क्या जहर सिर्फ लालू प्रसाद ने ही पिया है, नीतीश कुमार ने नहीं. अरे नीतीश तो उसी दिन पी लिए थे जब बरसों पुरानी दुश्मनी भुला कर लालू से दोस्ती का हाथ मिलाया.
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नीतीश कुमार को बिहार में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने को लालू प्रसाद ने जहर पीना बता चुके हैं. क्या जहर सिर्फ लालू प्रसाद ने ही पिया है, नीतीश कुमार ने नहीं. अरे नीतीश तो उसी दिन पी लिए थे जब बरसों पुरानी दुश्मनी भुला कर लालू से दोस्ती का हाथ मिलाया. ये बात अलग है कि नीतीश ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया. तो क्या नीतीश कुमार पर जहर का जरा भी असर नहीं होगा? ऐसा कैसे संभव है?
खैर, आरजेडी और जेडीय के बीच गठबंधन होने के बाद नीतीश कुमार के लिए दोबारा कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता जरूर मिला है, लेकिन इसमें चुनौतियां बहुत हैं.
1. बिहार में चुनावी अभियान के तहत जो होर्डिंग और पोस्टर अभी लगे हैं, उनमें सिर्फ नीतीश कुमार की तस्वीर लगी है. किसी भी होर्डिंग में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद अभी साथ नजर नहीं आ रहे हैं. यादव वोट बैंक नीतीश के नाम पर पहले से ही भड़का हुआ है और ऐसे में वो नीतीश को कैसे वोट देगा? लालू को भी यही डर सता रहा था, फिर भी मजबूरी में उन्होंने जहर का प्याला होठों से लगा लिया. उधर, लालू से छिटक कर बीजेपी में जा मिले सांसद राम कृपाल यादव कह रहे हैं कि पीठ की मार तो लोग बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन पेट की लात कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता है और नीतीश कुमार ने अपने शासनकाल में यादवों के पेट पर लात मारने का काम किया है.
2. नीतीश कुमार के सामने ड्युअल चैलेंज है. आखिर वो लोगों को कैसे समझाएंगे कि बीजेपी सांप्रदायिक पार्टी है और लालू प्रसाद पूरी तरह सही हैं. 'जंगलराज' से मुक्ति दिलाने के लिए बीजेपी के ही साथ मिल कर उन्होंने लालू प्रसाद को सत्ता से बेदखल किया था. लोगों को ये बात समझानी होगी, जो शीर्षासन से कई गुना ज्यादा मुश्किल है. वैसे भी रिवर्स गियर में गाड़ीं कुछ दूर तो चल सकती है, पूरा सफर नहीं तय कर सकती. ऐसे में नीतीश को लालू प्रसाद के माय फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव वोट बैंक का फायदा कैसे मिलेगा?
3. ईमानदारी से लैस फेस वैल्यू और सुशासन की जादुई छड़ी. नीतीश कुमार के यही दो ब्रह्मास्त्र हैं. क्या लालू प्रसाद की मदद से चुनावी वैतरणी पार कर लेने के बाद नीतीश कुमार अपनी जादुई छड़ी का प्रभाव कायम रख पाएंगे? क्या नीतीश के शासन में लालू का जरा भी असर नहीं होगा? क्या नीतीश कुमार का लालू प्रसाद पर इतना असर होगा कि वो जंगलराज की जगह सुशासन में यकीन करने लगेंगे?
4. जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे एक कारण ये भी था कि नीतीश कुमार अपना दलित वोट बैंक कायम रखना चाहते थे. लेकिन मांझी ने डबल झटका देते हुए अब उनके दुश्मन बीजेपी का दामन थाम लिया है, लिहाजा नुकसान भी डबल होगा. वैसे तो मांझी को वो विभीषण जैसा समझाने की कोशिश कर रहे हैं. मगर वो ये भूल रहे हैं कि मांझी दलितों के मसीहा बन कर उभरे हैं. इस मामले में नीतीश के लिए सबसे बड़ा नुकसान है कि उन्होंने मांझी फैसलों को सत्ता संभालते ही खत्म कर दिया. लालू मांझी को भी गठबंधन में लेना चाहते थे, लेकिन नीतीश को ये मंजूर नहीं था. अब नीतीश वो वोट बैंक कैसे बचाएंगे?
5. लोक सभा चुनाव में आरजेडी ने 20.1 फीसदी और जेडीयू ने 15.8 फीसदी वोट हासिल किए थे, जबकि कांग्रेस के हिस्से में 8.6 फीसदी वोट आए थे. इस तरह नीतीश जिस गठबंधन के नेता बने हैं उसका 44.5 फीसदी वोट बन रहा है. नीतीश को बिहार की राजनीति में चाणक्य तक बताया जाता है. क्या नीतीश इस आंकड़े को वोट में बदल पाएंगे, खासकर लालू प्रसाद से हाथ मिलाने के बाद. ये मामला भी डॉन को पकड़ने जैसा ही है.
कौन ड्रॉप होगा?
एक प्रेस कांफ्रेंस में बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, "मैं तो काल ड्रॉप ठीक करने में लगा हूं, लेकिन बिहार की जनता कुछ ही महीनों में उन्हें ड्राप करने जा रही है." इस पर नीतीश कुमार ने भी चुटकी ली, "हमेशा कॉल ड्रॉप की समस्या रहती है और बात होती नहीं है. कहीं ऐसा न हो कि कॉल ड्रॉप की तरह स्वयं ही ड्रॉप न हो जाएं."
वैसे बिहार में नीतीश कुमार के मुकाबले बतौर मुख्यमंत्री पद उम्मीदवार कोई और चेहरा नहीं होगा. बीजेपी गठबंधन ने साफ कर दिया है कि एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव मैदान में उतरने जा रहा है. यानी लोक सभा की ही तरह अब विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार और मोदी आमने-सामने होंगे. फर्क सिर्फ ये होगा कि इस बार लालू उनके साथ खड़े होंगे.

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