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Updated: 28 जनवरी, 2017 07:04 PM
मौसमी सिंह
मौसमी सिंह
  @mausami.singh.7
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आजकल कांग्रेस का फ्लेवर प्रियंका गांधी वाड्रा हैं. कांग्रेस दफ्तर की कैंटीन से लेकर हरे भरे बगीचे में टिकेट मांगने वालों की जुबान पर प्रियंका का नाम है. मानो मिनी यूपी कांग्रेस, 24 अकबर रोड में सिमट गई हो. कोई गठबंधन से गद गद है तो कोई इसके खिलाफ गेट पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठा है.

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कांग्रेस दफ्तर में एंट्री की ही थी, कि वहीं काम करने वाले एक सज्जन ने कहा 'देखा 84 सीटें नहीं मिलीं. 100 से उपर सीट पर बनेगी बात मैंने कहा था'. जनाब बड़े जोश में थे और क्यों न हों उनका तीर कुछ थोड़ा बहुत निशाने के पास लगा था. हां भाई क्यों ना हो? आज लगभग 140 साल पुरानी पार्टी खुश तो बहुत होगी...भारत के सबसे बड़े, सियासी तौर पर सबसे अहम प्रदेश, जिसने देश को 15 में से 8 और नरेंद्र मोदी को भी जोड़ लें तो 9 पीएम दिए, वहां कांग्रेस उस पार्टी के पीछे चल पड़ी जिसका जन्म कांग्रेस का विरोध करते हुआ. कांग्रेस के झोली में सपा ने 403 में से 105 सीटें डालीं.

सियासत में चाटुकार, नेताओं के लिए ऑक्सिजन के सामन है. चाटुकारों की फौज के बगैर नेता महान नहीं बनते. कांग्रेस में चाटुकारों की स्पेशल फौज है. मौका देख ये चाटुकार कभी पेड़ पर चढ़ते हैं, तो कभी बिजली के खंभे पर, कभी भी मीडिया पर भड़क सकते हैं और तो और जो वरिष्ठ टाइप के चाटुकार हैं वो आलाकमान को इम्प्रेस करने के लिए इस्तीफा भी दे सकते हैं.

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जनवरी का महीना प्रियंका के चाटुकारों के नाम रहा. 2017 के चुनाव पर फोकस करें तो अभी तो वो कांग्रेस की स्टार प्रचारक की लिस्ट में हैं, 9 नंबर पर हैं पर प्रचार करने के लिए उनके पास 9 विधान सभा सीटें भी नहीं हैं (मौजूदा परिस्थिति). सपा-कांग्रेस के नायाब गठबंधन के सील होते ही प्रियंकानामा पढ़ने वालों की होड़ लग गई. तो डिंपल भाभी के साथ बहन प्रियंका भी पोस्टर में नजर आने लगीं. नारी सशक्तिकरण का डंका भी बजने लगा. कांग्रेस का भविष्य क्या होगा यह किसी को पता हो ना हो पर यह साफ है कि कांग्रेस का भविष्य राहुल गांधी हैं, और उनका अपनी बहन प्रियंका पर अटूट विश्वास इस बात का प्रमाण है कि आने वाले दिनों में प्रियंका कांग्रेस पार्टी की सूत्रधार हो सकती हैं.

वैसे न्यूज़ चैनलों पर अफवाहों के बाजार को गर्म देख प्रियंका के दफ्तर ने साफ किया है कि 2017 में भी वो रायबरेली और अमेठी की लक्षमण रेखा को नहीं तोड़ेंगी. पर सवाल ये कि, अगर कांग्रेस को गांधी के गढ़ में लड़ने के लिये मात्र एक-दो सीट मिल रही हैं तो प्रियंका किसके लिए और कितनी सीमाओं के भीतर प्रचार करेंगी?

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ये सवाल एक बार फिर हमें गठबंधन के गणित पर ले आता है. समझ नहीं आता कि कांग्रेस का कौन सा लक्ष्य इससे सिद्ध होता है? ऐसा कौन सा खरगोश प्रियंका ने टोपी से निकाला की अखबारों के फ्रंट पेज प्रियंका के नाम से पट गए. क्या मकसद है बीजेपी को रोकना? या अखिलेश को यूपी का ताज दोबारा पहनाना? या फिर अखिलेश के जरिये राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में रीलॉन्च करना? क्योंकि राहुल का सिक्का यूपी में 2007 से चलाने की कोशिश हो रही है. तब बहनजी के हाथी के सामने कांग्रेस का हाथ टिक नहीं पाया. 2012 में अखिलेश ने अपनी साईकल से राहुल के विकास की हाईटेक बस को मीलों पीछे छोड़ दिया. प्रियंका ये तो जानती ही होंगी कि 2012 से 2017 तक काफी पानी सर से ऊपर बह चुका है. केंद्र में यूपीए सरकार को खदेड़ एनडीए सरकार तख्त पर बैठी है और 'विराट' मोदी का साया उत्तर प्रदेश पर मंडरा रहा है. ऐसे में प्रियंका कहीं अर्थशास्त्री डार्विन के 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ फॉर्मूले पर तो नहीं चल रहीं?

मगर खतरा कांग्रेस के लिए दोनों तरफ से है. अगर अखिलेश और राहुल की जोड़ी चल पड़ी तो बड़े पार्टनर होने के नाते अखिलेश का कद कांग्रेस उपाध्यक्ष से कहीं बड़ा हो जायेगा. जीत से पहले ही उत्तर प्रदेश सीएम के करीबी माने जाने वाले नरेश अग्रवाल जैसे नेता अखिलेश यादव को 2019 के भावी पीएम के तौर पर देख रहे हैं. अगर जोड़ी फ्लॉप होती है तो कांग्रेस का बचा खुचा कार्यकर्ता भी चिटक जायेगा और इसके साथ ही कांग्रेस यूपी में निस्तानबूत हो सकती है.

कांग्रेस भले दिखाने के लिए 'यूपी को ये साथ पसंद है' का नारा भरे. हकीकत ये भी है कि ये साथ कांग्रेस को महंगा पड़ा है. कांग्रेस के ही एक कद्दावर नेता ने बताया कि ‘कई जिले ऐसे है जहां कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार नहीं, कई अच्छी सीटें जिस पर कांग्रेस के सिटिंग विधायक हैं या फिर कांग्रेस नंबर 2 पर है उनसे हाथ धोना पड़ा. हम 2019 में किस मुंह से कार्यकर्ताओं के पास जाएंगे? कैसे कहेंगे हमें जिताओ?’

ऐसे में राहुल के इशारे पर ही सही, प्रियंका का ये दाव अगर सफल हुआ तो प्रियंका पार्टी के चाणक्य के तौर पर उभरेंगी. अगर दाव फेल हो गया तो कांग्रेस के अर्जुन के सारथी के लिए 2019 की महाभारत जीतना उतना ही मुश्किल हो जायेगा.

...ये और बात है कि कांग्रेस के चाटुकारों के लिए तो घड़ी गलत हो सकती है, समय गलत हो सकता पर प्रियंका दीदी के लिए 'ना खाता, ना बही, जो प्रियंका कहे वो सही'.

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लेखक

मौसमी सिंह मौसमी सिंह @mausami.singh.7

लेखिका आज तक में विशेष संवाददाता हैं.

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