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Updated: 26 मई, 2015 01:19 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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न जनता परिवार ठीक से खड़ा हो पा रहा है. न आरजेडी और जेडीयू में गठबंधन हो पा रहा. बिहार में सियासी खेल खेले तो खूब जा रहे हैं, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नहीं नजर आ रहा जो पूरी तरह नीतीश के पक्ष में नजर आता हो. एनडीए को छोड़ लालू प्रसाद से हाथ मिलाने के बाद बस दो मौके आए जब नीतीश के खाते में कामयाबी दर्ज हो पाई. पहला, महागठबंधन से उपचुनावों में सफलता और दूसरा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दोबारा कब्जा.

मौजूदा हालात में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास बस ये पांच ऑप्शन हैं, जिन्हें वो विधानसभा चुनावों में उतरने से पहले आजमा सकते हैं:

1. मांझी से दोस्ती कर लें: मुश्किल तो है, मगर नामुमकिन नहीं. जब वो दुश्मनी की हद तक जा चुके आरजेडी नेता लालू प्रसाद से से दोस्ती कर सकते हैं तो कुछ ही महीने पहले तक अपने आदमी रहे जीतनराम मांझी में क्या बुराई है. अगर दोनों चाहें तो समझौता हो सकता है. इसमें नीतीश चाहें तो ताजातरीन जनक्रांति अधिकार मोर्चा बनाने वाले पप्पू यादव की भी मदद मिल सकती है. पप्पू यादव हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा मांझी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं - और उन्हें खुद भी सपोर्ट की जरूरत है. चाहें तो पप्पू को भी साथ ले सकते हैं. ऐसा करके नीतीश एक तीर से दो शिकार कर सकते हैं. लालू प्रसाद और बीजेपी दोनों को झटका दे सकते हैं.

2. लालू की बात मान लें: लालू प्रसाद की तरफ से कहा गया है कि गठबंधन की स्थिति में उन्हें लोक सभा में प्रदर्शन के हिसाब से सीटें चाहिए. लालू की ओर से आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने ये फॉर्म्युला दिया है. इसके मुताबिक 142 विधानसभा सीटों पर आरजेडी की दावेदारी बनती है जहां पार्टी पहले या दूसरे नंबर पर रही है. इसी तरह नीतीश की पार्टी जेडीयू के खाते में 37 सीटें बनती हैं. विधान सभा में कुल 243 सीटें हैं. बाकी सीटें गठबंधन के दूसरे साथियों या फिर आपस में बांटी जा सकती हैं.

3. फिर से एनडीए का हिस्सा बन जाएं: ये कुछ ज्यादा मुश्किल है, लेकिन असंभव तो कतई नहीं. जब 20 साल बाद वो लालू से दोस्ती का हाथ मिला सकते हैं, तो एनडीए में क्या बुराई है. उसके साथ तो उनका 17 साल का रिश्ता रहा है. टूटे भी तो ज्यादा दिन नहीं हुए. ऐसा होने पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना उनके लिए आसान होगा. ये बात वो चुनाव में अपने वोटर को समझा सकते हैं. लेकिन ये रिश्ता तो अभी 50 ही फीसदी पक्का हुआ. अब ये बीजेपी पर निर्भर करता है कि वो क्या स्टैंड लेती है. वैसे बीजेपी ऐसा करती है तो दोनों के लिए सौदा फायदे का ही होगा.

4. नया गठबंधन तलाशें: नीतीश के सामने बड़ा सवाल ये है कि गठबंधन के लिए अब बचता कौन है? लालू, मांझी और बीजेपी से तौबा कर लेने के बाद बचते हैं - सिर्फ वाम दल और कांग्रेस. इन दोनों ही दलों की स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है. फिर भी अगर मरता क्या न करता जैसी हालत हो जाए तो ये ऑप्शन उतना बुरा भी नहीं होना चाहिए.

5. या फिर एकला चलो रे: इस सीरीज में ये शायद आखिरी ऑप्शन होगा. जिस तरह मोदी ने लोक सभा चुनावों में बीजेपी के बजाए खुद के लिए वोट मांगा. जिस तरह केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार के लिए माफी मांग कर दोबारा जीत हासिल की. फिर क्या नीतीश कुमार किसी से कम हैं? न तजुर्बे में न काबिलियत में. चाहें तो अपनी साफ सुथरी छवि और सुशासन के नाम पर वोट तो मांग ही सकते हैं. वैसे भी अपने हाथ में तो कर्म ही होता है, राजनीति में फल तो जनता देती है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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