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Updated: 09 दिसम्बर, 2015 05:50 PM
पंकज शर्मा
पंकज शर्मा
  @pankajdwijendra
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70 के दशक में चुनिंदा चापलूसों की कोटरी के जरिए देश की राजनीति करने वाली और बाद के दशकों में राज्यपालों के जरिए विपक्षी सरकारों को असंवैधानिक रूप से हटाकर लोकतंत्र का मजाक उड़ाती रहने वाली कांग्रेस पार्टी अब जब संसद में लोकतंत्र की दुहाई देकर रक्तपात की धमकी तक दे रही है तो उसकी बौखलाहट को समझना बेहद जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र की आड़ में कांग्रेस कुतर्कों का कुचक्र रचकर देश की जनता को उलझाए रखना चाहती है.

संसद में कांग्रेस के अलमबरदार मल्लिकार्जुन खड़गे जब चीखकर ये कहते हैं कि विपक्ष को डराया जा रहा है और साथ में उनके साथी जिस तरह हंगामा करते हैं तो उनकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है. क्योंकि कांग्रेस का इतिहास लोकतंत्र और संविधान की मूल अवधारणा का उल्लंघन करने का दोषी है. देश संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा है ऐसे में कांग्रेस की पूरी राजनीति को संविधान के नजरिए से समझने की जरूरत है.

मौजूदा मामला नेशनल हेराल्ड केस का है. पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के 44 सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में जिस तरह संसद के दोनों संदनों में हंगामा काट रहे हैं वो एक साजिश की तरफ इशारा करता है और जिसे आम जनता को अब समझना ही होगा. 2012 में जब सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में याचिका दायर की थी तब पहले तो कांग्रेस सत्ता में थी, दूसरी बात सुब्रमण्यम स्वामी बीजेपी का हिस्सा नहीं थे, तीसरी बात इस मामले की सुनवाई देश की किसी छोटी अदालत में अदालत नहीं हो रही थी, लिहाजा जो आदेश है वो देश के उच्च न्यायालय के आदेश हैं लेकिन कांग्रेस संसद के दोनों सदनों में हंगामा कर रही है देश की चुनी हुई सरकार के खिलाफ और आरोप लगा रही है बदले की भावना से की गई कार्रवाई का. जिसका सीधा सीधा अर्थ है कि कांग्रेस ने तय कर रखा है कि मुद्दा हो या ना हो वो संसद नहीं चलने देगी. और अगर ऐसा है तो ये देश के लोकतंत्र के लिए घातक है क्योंकि सरकारें आगे भी बनती बिगड़ती रहेंगी लेकिन जो गलत परंपरा कांग्रेस शुरू कर रही है उसका खामियाज़ा देश की जनता को भुगतना पड़ेगा.

अब एक नज़र डाल लेते हैं कांग्रेस की लोकतंत्र और संविधान में आस्था को लेकर जिसकी दुहाई कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी बाबा साहेब अंबेडकर की 125 वीं जन्मशती पर लोकसभा में दे रही थीं. जिस तरह सोनिया गांधी ने लोकसभा में हंसी ठिठोली के बीच संविधान निर्माता पर अपना वक्तव्य दिया वो उनकी बाबा साहेब अंबेडकर के सम्मान को लेकर गंभीरता पर सवाल खड़ा करता है. दूसरी बात संविधान और लोकतंत्र पर बोलते हुए सोनिया गांधी को एक बार कांग्रेस के इतिहास पर भी नजर डाल लेनी चाहिए ज़्यादा नहीं तो अपनी उन सास के कालखंड पर ही नज़र डाल लेना चाहिए जिनकी बहू होने का दंभ भरके वो किसी से ना डरने की बात कह रही हैं. देश कभी नहीं भूल सकता आपातकाल के उस दौर को जब इंदिरा गांधी ने देश के लोकतंत्र को बंधक बनाकर संविधान की मूल प्रस्तावना को ही बदल दिया था. ये ऐसा बदलाव था जिसने देश से गणतंत्र और लोकतंत्र होने का अधिकार ही छीन लिया था और विपक्ष की क्या हालत की थी इसे भी मौजूदा कांग्रेस को समझकर आत्म चिंतन करने की जरूरत है.

और सोनिया गांधी को ये नहीं भूलना चाहिए कि उनकी सरकारों ने जिस तरह राज्यपालों को मोहरा बनाकर राज्यों की सत्ता को साधने की कोशिश की है वो संविधान और लोकतंत्र के इतिहास के काले अध्याय हैं. अभी याद ही होगा लोगों को जब 1998 में कांग्रेस के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने किस तरह कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करके जगदंबिका पाल को एक दिन का मुख्यमंत्री बनवा दिया था और दुनिया भर में देश के लोकतंत्र का मज़ाक बनवाया था हालांकि कोर्ट के दखल के बाद कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने. दूसरा उदाहरण तो सोनिया गांधी के सामने का ही है जब मार्च 2005 में झारखंड के राज्यपाल सिब्ते रज़ी ने एनडीए के सदस्यों को नजरअंदाज करते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन को कमान सौंप दी बाद में राष्ट्रपति कलाम ने सिब्ते रजी के फैसले को बदला और अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन एक ये उदाहरण था दशकों से चले आ रही कांग्रेस की उस नीति का जिसके चलते वो राज्यपालों की बिसात पर अपनी सत्ता के मोहरे चलती है. और गोवा में क्या हुआ वो भी सोनिया गांधी एंड कंपनी को समझ लेना चाहिए जब राज्यपाल ज़मीर अहमद ने 2005 में ही गोवा की बीजेपी की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त करके कांग्रेस के मुख्यमंत्री को सरकार में बैठा दिया था जिसको लेकर देश का लोकतंत्र और संविधान शर्मिंदा हुआ था.

ये कांग्रेस का इतिहास रहा है कि सत्ता में आते ही वो विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने की कोशिशों में लग जाती है और अब जबकि वो विपक्ष में है तो उसे हजम नहीं हो रहा है जनता का लोकतांत्रिक फैसला. तभी शैलजा कुमारी जिस जातिवादी प्रकरण का ज़िक्र कर रही हैं वो कांग्रेस की सरकार के दौरान हुआ था लेकिन कांग्रेस पार्टी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर अब संसद नहीं चलने दे रही. मल्लिकार्जुन खड़गे आरक्षण के मुद्दे पर अनापशनाप बातें करते हुए संसद में खड़े होकर रक्तपात की धमकी दे रहे हैं जबकि इस बात का जवाब नहीं दे रहे कि 60 सालों में कांग्रेस की सरकारों ने पिछड़े और अतिपिछड़ों के लिए क्या किया. तमाम उदाहरण ऐसे हैं जिनसे पता चलता है कि कांग्रेस की आस्था ना लोकतंत्र में है ना संविधान में और ना ही देश की न्याय व्यवस्था में तभी कोर्ट के सम्मन को दरकिनार करते हुए राहुल गांधी तमिलनाडु के दौरे पर निकल गए.

खैर मोदी सरकार हो या कांग्रेस की पराजय दोनों ही अनंतकाल तक नहीं रहने वाली लेकिन ये देश रहेगा और वर्तमान की कसौटी पर भविष्य का निर्माण करेगा जिसमें कांग्रेस के शासन काल की तानाशाही के उदाहरण नए भारत के निर्माण की नींव रखेंगे.

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लेखक

पंकज शर्मा पंकज शर्मा @pankajdwijendra

लेखक आजतक न्यूज चैनल में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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