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Updated: 30 सितम्बर, 2017 03:47 PM
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रोहिंग्या मामले में संघ ने मोदी सरकार के स्टैंड पर मुहर लगा दी है. आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने रोहिंग्या शरणार्थियों को रोजगार और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. सिर्फ रोहिंग्या ही नहीं, भागवत के विजयदशमी भाषण में आर्थिक नीति और कश्मीर नीति के साथ ही मुस्लिमों के प्रति संघ और बीजेपी का क्या रुख होगा, तस्वीर साफ है. गौर से देखें तो संघ की ओर से 2019 के लिए बीजेपी और मोदी सरकार के लिए लाइन दे दी गयी है.

आर्थिक नीति कैसी हो?

संघ प्रमुख भागवत ने मोदी सरकार की आर्थिक नीति को लेकर छिड़े विवाद पर सीधे सीधे कोई टिप्पणी नहीं की है. ऐसा भी नहीं लगता कि संघ वित्त मंत्री अरुण जेटली से बहुत खुश है और ऐसा भी नहीं कि यशवंत सिन्हा ने जो कहा है वो नजरअंदाज किये जाने लायक है.

भागवत का कहना है, "जो अर्थनीति सबका हित नहीं साधती उस पर विचार हो, हमें सभी तबके को साथ लेकर चलने वाली नीति चाहिए, हमें अपने देश के हिसाब से अपनी नीति पर काम करना होगा, दुनिया के घिसे-पिटे मानक क्यों मानें."

mohan bhagwatसंघ ने 2019 के लिए मोदी सरकार को दी गाइडलाइन...

भागवत की बातों से इतना तो लगता है कि संघ मोदी सरकार की आर्थिक नीति से संतुष्ट नहीं है. संघ को हॉर्वर्ड और हार्डवर्क का घालमेल भी ठीक नहीं लग रहा.

तो क्या भागवत सरकार को समझाना चाहते हैं कि जो बातें यशवंत सिन्हा ने उठायी हैं उन पर गौर करना जरूरी है? भागवत का कहना है कि जीडीपी एक अधूरा विश्लेषण है और हर मुल्क की तरक्की के अपने मानक हैं. संघ चाहता है कि देश काल और परिस्थिति के अनुसार आर्थिक नीति तैयार हो लेकिन उसमें स्वदेशी का भाव पूरा हो. फिलहाल इन पैमानों पर मोदी सरकार की आर्थिक नीति खरी नहीं उतर रही, संघ के नजरिये से इसे अभी इसी रूप में समझा जा सकता है.

रोहिंग्या पर सरकारी रुख का समर्थन

भागवत की नजर में भी रोहिंग्या शरणार्थी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं - और उनके मामले में लचीला रुख अपनाया गया तो वे रोजगार पर संकट बनेंगे. रोहिंग्या मामले में इंसानियत की दुहाई देने को लेकर भागवत का कहना है, "मानवता के नाम पर हम अपनी मानवता नहीं खो सकते."

भागवत पूछते हैं, 'वो वहां से यहां क्यों आये हैं? वहां क्यों नहीं रह सके?' और बताते भी हैं, 'दरअसल, उनके वहां जिहादियों से संपर्क उजागर हो गए.'

rohingya refugeesसंघ भी रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ

भागवत समझाना चाहते हैं कि रोहिंग्या और बाकी शरणार्थियों में बड़ा फर्क है - और लगे हाथ वो कश्मीर विस्थापितों का भी मामला उठाते हैं.

इसका अर्थ ये है कि संघ चाहता है कि सरकार कश्मीरी पंडितों के मामले में ठोस पहल करे और जो भी जरूरी कदम हो उठाये.

कश्मीर नीति कैसी हो?

रोहिंग्या के साथ ही भागवत बताते हैं कि संघ को कश्मीरी पंडितों को लेकर कितनी फिक्र है. भागवत ने कहा कि जम्मू कश्मीर के शरणार्थियों की समस्या का अब तक समाधान नहीं हो पाया है - उनके पास मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है और उन्हें अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है.

भागवत कश्मीर के संदर्भ में संविधान में आवश्यक सुधार पर भी जोर देते हैं - 'जम्मू कश्मीर से जुड़े पुराने प्रतिबंधों को बदला जाए.'

साफ है भागवत की इन बातों के तार धारा 370 और 35 A से यूं ही जुड़ जाते हैं. मोदी सरकार के बनते ही मंत्री जितेंद्र सिंह के धारा 370 वाले बयान पर विवाद खड़ा हो गया था. धारा 35 A का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है और इस को लेकर जम्मू और कश्मीर सरकार में बीजेपी की पार्टनर पीडीपी भी नेशनल कांफ्रेंस और घाटी की दूसरी पार्टियों के साथ खड़ी हो गयी है.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तो यहां तक कह चुके हैं कि बीजेपी संवैधानिक रास्ते से नाकाम होने पर इसके लिए कानूनी रास्ता अख्तियार कर सकती है. वैसे मोदी सरकार ने महबूबा सरकार को भरोसा दिलाया है कि केंद्र सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है.

मगर, भागवत ने अपने भाषण में संघ की कश्मीर नीति को फिर से अपडेट कर दिया है - और इसे तो मोदी सरकार के लिए दिशानिर्देश ही समझा जाना चाहिये.

मुस्लिम भी गैर नहीं...

गौरक्षा का मुद्दा उठाकर संघ प्रमुख ने मुस्लिमों को लेकर अपना रुख स्पष्ट करने की कोशिश की है. अभी कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व चर्चा में है. गुजरात में राहुल गांधी के मंदिर दर्शन के बाद ये विचार बना है.

संघ प्रमुख भागवत की राय में गौरक्षा के मुद्दे को हिंसा से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये. उनका कहना है कि मुस्लिम भी गौरक्षक हैं और उन पर भी हमले हुए हैं. यहां तक कि, भागवत बोले, बहुत सारे मुस्लिमों ने गौरक्षा के लिए अपनी जान दी है. भागवत ने कहा, "ये दुखद है कि गौरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या की गई... कई गाय तस्करों ने भी लोगों की हत्या कर दी. हमें गौरक्षा के मुद्दे को धर्म से ऊपर उठकर देखना चाहिए."

गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार बयान दे चुके हैं, लेकिन हिंसा के मामलों में कोई फर्क नहीं पड़ा है.

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