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Updated: 03 जुलाई, 2019 06:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मामलों में खामोशी को हजार जवाबों से अच्छी बेशक मानते हों, लेकिन कुछ मामलों में वो बेहद सख्त लहजे में बोलते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सीनियर बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे की आकाश की करामात पर भी सख्त ऐतराज जताया है और कड़ी कार्रवाई की सलाह दी है. बीजेपी विधायक आकाश विजयवर्गीय के जेल से छूट कर आने के बाद उनके गर्वपूर्ण रिएक्शन - और स्वागत समारोह को भी लगता है प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े गौर से देखा है.

क्रिकेट विश्व कप के मैचों के बीचोंबीच मध्य प्रदेश में एक सरकारी अफसर के खिलाफ बीजेपी विधायक की चर्चित बल्लेबाजी से पार्टी की जो फजीहत हो रही है, उसमें प्रधानमंत्री का बयान बेहद जरूरी था - और ये बात मोदी के अंदज से समझ में भी आ रही है. देश का प्रधानमंत्री और बीजेपी का सबसे बड़ा नेता यूं ही ऐसे नहीं बोलता.

सवाल ये है कि प्रधानमंत्री के बयानों का असर क्यों नहीं देखने को मिलता?

मोदी का ब्रेकिंग मैसेज कहां तक पहुंच पा रहा है?

किसी भी मुद्दे पर जब प्रधानमंत्री खामोश रह जाते हैं तो विपक्ष सवाल उठाता है कि चुप्पी क्यों साधे हुए हैं - कुछ बोलते क्यों नहीं? जैसे शिखर धवन की चोट पर ट्वीट के बाद लोगों ने सवाल उठाया कि बिहार के चमकी बुखार पर भी वैसा ही ट्वीट क्यों नहीं आया? लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता, भूल सुधार भी देखने को मिलता है. 'सबका साथ, सबका विकास' के साथ 'सबका विश्वास' जोड़ा जाना तो यही बता रहा है.

प्रधानमंत्री ने गोरक्षकों के उत्पात पर कई बार सख्त बयान दिया. यहां तक कहा कि वो साध्वी प्रज्ञा को कभी माफ नहीं कर पाएंगे. ऊना में दलितों को नंगा करके पीटने वालों से कहा था - चाहे मेरी जान ले लो, लेकिन दलितों पर अत्याचार मत करो.

क्या प्रधानमंत्री मोदी की नसीहत का मकसद सिर्फ सवाल उठाने वालों को चुप कराने भर के लिए ही है?

क्या बगैर आकाश का नाम लिये प्रधानमंत्री मोदी का बयान बीजेपी की छवि को बचाये रखने की कोशिश भर है?

modi messages fail to reach bjp leaders, why?प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातें बाकी लोग तो समझ जाते हैं, लेकिन बीजेपी नेता क्यों नहीं?

प्रधानमंत्री किसी का नाम नहीं लेते लेकिन संदेश साफ होता है. जो नेता प्रधानमंत्री का बयान मीडिया के जरिये लोगों से साझा करते हैं वे मोदी के संदेश को और भी साफ तौर पर पेश करते हैं ताकि मैसेज हर किसी तक पहुंच जाये. क्या इतने भर से मकसद पूरा हो जाता है?

बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी बताते हैं, 'कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय की घटना के मामले में प्रधानमंत्री नाराज हैं. फिर बताते भी हैं कि प्रधानमंत्री ने कहा क्या है - 'ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है, चाहे वह किसी का बेटा हो, सांसद हो. अहंकार नहीं होना चाहिए. ठीक से व्यवहार करना चाहिए और ऐसे लोग पार्टी में नहीं होने चाहिए.'

ऐसी कोई जरूरत नहीं कि प्रधानमंत्री नाम लेकर ही किसी को संदेश दें. अगर मर्यादा में रहते संदेश साफ और पहुंच जाये तो बेहतर ही है. प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ आकाश विजयवर्गीय ही नहीं, उनके समर्थकों को भी पार्टी से बाहर करने की बात कह दी है.

बकौल राजीव प्रताप रूडी, मोदी ने कहा है, 'किसी का भी बेटा हो, उसकी ये हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी. जिन लोगों ने स्वागत किया है, उन्हें पार्टी में रहने का हक नहीं है. सभी को पार्टी से निकाल देना चाहिए.'

क्या ये सब भी 'मन की बात' वाली कैटेगरी में ही आते हैं? जैसे सत्यनारायण स्वामी की कथा सुनने के बाद लोग प्रसाद लेते हैं. आगे बढ़ते हैं और फिर से काम पर लग जाते हैं. देख कर तो लगता है कि फिलहाल हो तो यही रहा है.

आकाश विजयवर्गीय की करतूत पर प्रधानमंत्री के बयान की चर्चा तो खूब है, लेकिन उससे आगे का असर तो सिफर ही नजर आ रहा है. मीटिंग के बाद एक बार प्रधानमंत्री की की बातें बताने के बाद हर तरफ खामोशी फिर से छा गयी है. कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है. ठीक है. ये सब भी चलेगा.

अब सवाल ये है कि प्रधानमंत्री ने जो कुछ भी कहा है उसे बीजेपी में कहां तक सबक के तौर पर लिया जा रहा है? मोदी का मैसेज कहां तक पहुंच पा रहा है?

सिर्फ बीजेपी से या विधानसभा से भी बाहर होंगे आकाश?

गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी संसदीय दल की जिस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने आकाश विजयवर्गीय के कारनामे का जिक्र कर रहे थे, उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय भी मौजूद थे. कोई भी पिता बेटे की तारीफ तो सुनना चाहता है, लेकिन ऐसी बातों के लिए तो कतई नहीं. जाहिर है जब तक बैटिंग प्रकरण की चर्चा चली होगी, जलालत तो महसूस हुई ही होगी. वैसे ये जान लेना भी जरूरी है कि बेटे की करतूत पर कैलाश विजयवर्गीय की राय क्या थी - 'ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझे लगता है आकाश और नगर निगम के कमिश्नर दोनों पक्ष कच्चे खिलाड़ी हैं. यह एक बड़ा मुद्दा नहीं था, लेकिन इसे बहुत बड़ा बना दिया गया.'

modi angry with akash vijayvargiyaकैलाश विजयवर्गीय ने बेटे आकाश विजयवर्गीय को 'कच्चे खिलाड़ी' बताया है - बाकी आप अपने हिसाब से समझ सकते हैं!

कच्चे खिलाड़ी मतलब? क्या आकाश ने जो कुछ किया वो कम था, अधूरा था? पक्के खिलाड़ी कितनी उम्मीद की जानी चाहिये? या कहने का मतलब ये है कि कोई और तरीका अख्तियार करना चाहिये था? जो भी हो, पक्के खिलाड़ी का प्रदर्शन कैसा होता है - देखने के लिए इंतजार करना होगा. दिलचस्प बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने आकाश विजयवर्गीय की गौरवपूर्ण टिप्पणी 'निवेदन, आवेदन, दनादन' का भी जिक्र किया, और बोले, 'ये किस तरह की भाषा है?' दरअसल, आकाश विजयवर्गीय के धुआंधार प्रदर्शन का वीडियो वायरल होने के बाद जब गिरफ्तार कर लिया गया तो मीडिया से मुखातिब होकर कहे थे, 'पहले आवेदन, फिर निवेदन और फिर दनादन...'

आकाश के मामले में प्रधानमंत्री मोदी काफी नाराज नजर आ रहे हैं, तभी तो कहना पड़ा - 'अगर हमें एक विधायक खोना पड़ता है, तो यही सही... ऐसा दोबारा होने से रोकने के लिए हमें उदाहरण प्रस्तुत करना होगा...'

लगता तो यही है कि मोदी के सख्त रूख के चलते बीजेपी आकाश विजयवर्गीय के खिलाफ एक्शन तो लेगी - लेकिन कार्रवाई क्या होगी और कितनी असरदार होगी, ये देखना होगा.

यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने ट्विटर पर रिएक्ट किया है - लेकिन बीएसपी नेता को ऐसा लगता कि स्थिति में कोई सुधार होने वाला है.

वैसे आकाश विजयवर्गीय जैसे नेता को सिर्फ बीजेपी में ही नहीं रहना चाहिये कि विधानसभा से भी बाहर होना चाहिये? आखिरी फैसला तो मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर का होगा - लेकिन संस्तुति तो बीजेपी को ही औपचारिक तौर पर करनी होगी.

बेनाम संदेश बैरंग क्या लौट जाते हैं?

प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद बीजेपी के एक्शन का इंतजार हो रहा है. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कभी माफ न कर पाने के प्रधानमंत्री के बयान के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का कहना रहा कि अनुशासन समिति नोटिस देकर जवाब मांगेगी और फिर देखा जाएगा क्या करना है. अंदर ही अंदर जो भी हुआ हो - बाहर न तो सूत्रों के हवाले से कोई खबर आयी है, न ही किसी बीजेपी नेता ने औपचारिक तौर पर कुछ बताया है. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से बीजेपी सांसद हैं. कांग्रेस के सीनियर नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह को हरा कर उन्होंने चुनाव जीता था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर बीजेपी नेताओं को नसीहत देने की कोशिश करते हैं. मोदी का अंदाज कभी सेंस ऑफ ह्यूमर लिए तो कभी आक्रामक नजर आता है, लेकिन नसीहत की भाषा कभी कभी इतनी साहित्यिक हो जाती है कि लगता है बीजेपी के ही लोगों को ठीक से समझ में आती. राजनीतिक विरोधियों और आम अवाम तक बात पहुंच जाये ये अलग बात है.

चुनाव नतीजों के बाद, खासकर बीजेपी की जीत के पश्चात, मोदी बीजेपी नेताओं को उनकी हालिया हरकतों से बाज आने की सलाह देते रहे हैं. 2019 का आम चुनाव जीतने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेताओं में खुद के अंदर सेवा भाव विकसित करने की सलाह दी थी. प्रधानमंत्री के निशाने पर सुल्तानपुर से सांसद मेनका गांधी और उन्नाव वाले साक्षी महाराज को माना गया. मेनका गांधी ने चुनावों के दौरान कह दिया था कि जो उन्हें वोट नहीं देंगे वो उनके काम नहीं करेंगी. साक्षी महाराज का कहना था कि अगर लोग उन्हें वोट नहीं देंगे तो वो श्राप दे देंगे.

2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनावों के बाद भी मोदी ने बड़बोले नेताओं के प्रति तंज भरे लहजे में आभारा जताया था - 'मुंह के लालों का भी शुक्रिया, जो चुप रहे'. मोदी को बातों को योगी आदित्यनाथ के उन बयानों से भी जोड़ कर देखा गया जिनमें वो दादरी में एखलाक की हत्या से लेकर लव जिहाद पर बयान देकर विवादों में बने रहते थे. ये बात तब की है जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री नहीं बने थे. प्रधानमंत्री मोदी की बीजेपी नेताओं को सलाह रही कि जीत से उत्साहित होकर वे बहक जाने की बजाये विनम्र बने रहने की कोशिश करें.

संसद के सेंट्रल हाल में दोबारा एनडीए का नेता चुने जाने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने बड़बोले नेताओं को समझाने की कोशिश की कि वे सुबह सुबह कैमरा देखते ही राष्ट्र के नाम संदेश देने से बाज आयें. मोदी के कहने का मतलब था कि ऐसे बयानों से सबकी फजीहत होती है. आकाश विजयवर्गीय का फॉर्म देख कर तो ऐसा लगा कि बीजेपी नेता मोदी की बात मानते हुए बयानबाजी की जगह सीधे एक्शन की तैयारी में हो चले हैं.

जहां तक कैमरा देखकर राष्ट्र के नाम संदेश देने की बात है, कई नेता ऐसे हैं जिन तक लगता नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी का संदेश पहुंच पाया है. ताजा मिसाल तो यूपी के बलिया में बैरिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह हैं जिन्होंने डॉक्टरों को राक्षस और पत्रकारों को दलाल करार दिया है. ये वही सुरेंद्र सिंह हैं जिन्होंने साक्षी महाराज के उन्नाव से आने वाले बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के बचाव में पीड़ित को लेकर कह डाला था कि चार बच्चों की मां से कोई बलात्कार करता है क्या? वैसे कभी ये तो नहीं बताया कि ऐसे मामलों में वो कैसे पैरामीटर के पक्षधर हैं.

आकाश के मामले में प्रधानमंत्री मोदी की बातों को वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ ने 'सात्विक क्रोध' बताया है. अपनी फेसबुक पोस्ट में राकेश कायस्थ लिखते हैं, 'जैसा क्रोध उन्हें बल्लामार विधायक पर आया है, वैसा ही सात्विक क्रोध उन्हें साध्वी प्रज्ञा पर भी आया.'

सात्विक क्रोध को श्रीलाल शुक्ल की क्लासिक किताब राग दरबारी के प्रसंग से जोड़ते हुए राकेश कायस्थ लिखते हैं, 'लगता है जल्द ही राग दरबारी वाले वैद्यजी की वाणी में आकाशवाणी सुनाई देगी - शांत हो जाओ रूप्पन इस कुव्यवस्था का अंत होनेवाला है.'

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन बीजेपी के लिए इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि मोदी को मिसाल देने के लिए पार्टी से बाहर निकल कर नेताओं की तलाश करनी पड़ रही है. गनीमत बस ये है कि एनडीए से बाहर नहीं झांकना पड़ा - एलजेपी में ही चिराग पासवान मिल गये. संसद में चिराग पासवान की उपस्थिति और तैयारी के साथ आने की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी नेताओं को उनसे सीखने की सलाह दी है. अमित शाह ने बीजेपी को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी तो बना दी, लेकिन कितने ताज्जुब की बात है कि मिसाल देने लायक एक भी नेता नहीं मिल रहा है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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